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Monday, October 7, 2024

बहराइच से ताल्लुक रखने वाले ईलमो फन हज़रत जिगर मुरादाबादी ताल्लुक

अब्दुल नासिर

इलाक़ा अवध हमेशा से इल्मो फ़न का मरकज़ रहा है।इस ख़ित्ते के ज़िला गोण्डा की उर्दू अदब में शिनाख़्त *हज़रत असग़र गोण्डवी* और *हज़रत जिगर मुरादाबादी* के नाम नामी से है हज़रत जिगर मुरादाबादी साहब रहने वाले तो मुरादाबाद के थे लेकिन आप ने अपनी पूरी ज़िन्दगी गोण्डा में गुज़ार दी और यहीं आख़री सांस ली और इसी गोण्डा के मौहल्ला तोपख़ाना में आपकी आख़िरी आरामगह(मज़ार) वाक़े है।
हज़रत जिगर मुरादाबादी का बहराइच से बहुत ही गहरा ताल्लुक़ था।आप *मुंशी अमीरउल्ला तस्लीम* के शागिर्द रशीद थे जिनका भी अहम ताल्लुक़ बहराइच से था, तस्लीम साहब असल में क़स्बा रौनाही ज़िला फ़ैज़ाबाद के रहने वाले थे, आपके एक अहम दोस्त और मशहूर बुज़ुर्ग *हज़रत सैय्यद वलीउल्ला फ़ैज़ाबादी सुम्मा बहराइची (रह.)* जो आपके बचपन के साथी थे और बहराइच आकर सुकूनत अख़्तियार की थी, वलीउल्ला साहब की वफ़ात पर जो तारीख़ी क़तआत लिखे हैं वह आपकी *कुल्लियात* में शामिल है।
लोगों के मुताबिक़ जिगर साहब अक्सर गोण्डा से ट्रेन के ज़रिए बहराइच आ जाते थे और ऐनक फ़रोख़्त करने का काम करते थे।आप बहराइच से निकलने वाले माहनामा *चौदहवीं सदी* के निगरां थे।आप हमारे मौहल्ले क़ाज़ीपुरा
में वाक़े मशहूर व मारुफ़ शायर जनाब *फ़रहत एहसास* साहब के आबाई मकान पर फ़रहत साहब के चचा *हमीदउल्ला ख़ां* (साबिक़ मेम्बर असेम्बली हल्क़ा चर्दा) के मेहमान होते और वहीं क़याम करते और घर के बाहरी सहन में अदबी महफ़िलें होती थी जिसमें शहर के अदबा व शौअ़रा हज़रात शिरकत करते थे। इसी तरह जिगर साहब की आमद पर मौहल्ला क़ाज़ीपुरा में ही वाक़ै *सैय्यद अब्दुल शकूर “जमाल वारिसी”* (वालिद सैय्यद मसऊद उल मन्नान एडवोकेट) के मकान के बाहर मैदान में अक्सर महफ़िलें जमती थी।
इसी तरह आप ने *जामेआ मसऊदिया नूरुल उलूम बहराइच* के सालाना इजलास में शिरकत की और अपने तास्सुरात को वहां क़लमबन्द किया है जो 9 जून 1941 ई. को लिखा है, जिसमें आप ने मदरसा में तालीम के साथ सनअ़तकारी सिखाने का ज़िक्र किया है जो उस वक़्त मदरसे में सिखाया जाता था।

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