चाइल्ड राइट्स एंड यू ने चंदौली सहित देश के 4 जिलों के चिन्हित गाँवों में किए गए अध्ययन में बाल विवाह से जुड़े महत्वपूर्ण रुझान आये सामने
वाराणसी। हाल ही में जारी किए गए राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 (2020-21) के अनुसार यूपी के चंदौली जिले में 18 साल से कम उम्र मे शादी करने वाली 20-24 साल की महिलाओं के प्रतिशत में उल्लेखनीय कमी आई है। रिपोर्ट के अनुसार, जिले ने पिछले 5 वर्षों मे उल्लेखित आयु वर्ग की महिलायें जिनका बाल विवाह हो चुका है के प्रतिशत में 16.5% गिरावट दर्ज की है। यह प्रतिशत देश (3.5%) एवं प्रदेश (5.3) दोनों से काफी बेहतर है।
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण -4 (2015-16) के आंकड़ों के अनुसार, इस जिले में लड़कियों और लड़कों दोनों के लिए बाल विवाह का प्रचलन अधिक था। वर्ष 2015-16 मे चंदौली जिले में 20 से 24 वर्ष की उम्र के बीच की 33.7% महिलाओं की शादी 18 साल की उम्र से पहले हो जाती थी। यह आंकड़ा वर्ष 2020-21 मे घटकर 17.2% हो गया।
क्राई द्वारा राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के बाल विवाह से जुड़े आंकड़ों के विस्तृत विश्लेषण एवं बाल विवाह से जुड़े सामाजिक मानदंड, प्रथाओं एवं धारणाओं को गहराई से समझने के उद्देश्य से देश के 4 राज्यों – उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, ओडिशा एवं महाराष्ट्र के 40 गाँव मे किए गए अध्ययन में कईं तथ्य उजागर हुए। अध्ययन में उत्तर प्रदेश के चंदौली जिले के साहबगंज एवं चकिया विकासखण्ड के 10 गाँव को शामिल किया गया। इस अध्ययन मे बालक एवं बालिकाएँ जिनका बाल विवाह हो चुका है और ऐसे माता पिता जो अपने बच्चों का बाल विवाह करवा चुके हैं को शामिल किया गया है।
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ एवं प्रधान मंत्री कौशल विकास योजनाओ के बारे मे जारूकता अधिक- क्राई अध्ययन
अध्ययन मे बाल विवाह से जुड़े विभिन्न पहलुओं का आंकलन किया गया। बालिका शिक्षा एवं किशोरियों और युवाओं के लिए रोजगार को बढ़ावा देने के लिए सरकारी पहलों के बारे में बाल वधुओं और वरों का जागरूकता स्तर को जानने के लिए उनसे विभिन्न सरकारी योजनाओं के बारे मे प्रश्न किए गए। अध्ययन के आंकड़ों के अनुसार 88% बाल वधुओं एवं वर, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना से अवगत थे। वहीं 85% प्रधान मंत्री कौशल विकास योजना के बारे मे जागरूक थे। दीन दयाल अंत्योदया योजना (65%), दीन दयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल्य योजना (45%) और सर्व शिक्षा अभियान (35%) अन्य एसी योजनाएँ हैं जिनके बारे मे अधिक जागरूकता देखी गई।
अध्ययन की महत्वता को समझाते हुए क्राई की क्षेत्रीय निदेशक सोहा मोईत्रा ने कहा “राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के आँकड़े सरकार द्वारा बाल विवाह को रोकने के लिए किए जा रहे सकारात्मक प्रयासों का परिणाम है। चंदौली एवं राज्य के आँकड़े दर्शाते है कि हम सही दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। लेकिन यह भी सत्य है की बाल विवाह जैसी कुरीति आज भी समाज मे प्रचलित है और हमें इसे पूरी तरह से खत्म करने के लिए और भी ज्यादा प्रयास करने की आवश्यकता है।”
उन्होंने बाल विवाह के बालिकाओं के स्वास्थ्य पर पढ़ने वाले नकारात्मक प्रभावों के बारे मे जानकारी देते हुए कहा “बाल विवाह का बच्चियों के यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है, क्योंकि उनमें से अधिकांश वयस्कता प्राप्त करने से पहले ही गर्भवती हो जाती हैं, ऐसे मे उच्च जोखिम वाले गर्भावस्था का खतरा बड़ जाता है। चंदौली के हमारे अध्ययन क्षेत्र के किशोरियों के बाल विवाह एवं गर्भावस्था के आँकड़े बेहद चिंतनीय है। आँकड़े दर्शाते हैं 57% बच्चियाँ विवाह के एक वर्ष मे ही माँ बन गई। वहीं, 56% मामलों मे 2 बच्चों के बीच का अंतर 2 साल से भी कम था, यह आंकड़ा अन्य तीन राज्यों के अध्ययन क्षेत्र की तुलना मे सबसे अधिक है।”
अध्ययन के अनुसार बाल विवाह कर चुके लगभग 81% बाल वधू एवं वर और बाल विवाह करवाने वाले 76% माता-पिता भी यह मानते हैं की कम उम्र मे गर्भावस्था की वजह से माँ एवं बच्चे के स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव पड़ सकता है। 47% बच्चियाँ ने यह माना की बाल विवाह मे घरेलू हिंसा एवं शोषण का खतरा बड़ सकता है।
आँकड़े यह भी दर्शाते हैं कि चंदौली के इन 10 गाँव के 47% बाल वधु एवं वर इस बात से अवगत हैं की बाल विवाह से बच्चियों के साथ घरेलू हिंसा एवं शोषण हो सकता है। इस बारे मे 27% माता पिता का भी यही मानना है। वहीं 28% बाल वधुएँ और 20% माता पिता का यह मानना है की बाल विवाह की वजह से बच्चियों को स्कूली शिक्षा छोड़नी पड़ सकती है। बाल विवाह से लड़कों के जीवन पर होने वाले प्रभावों को लेकर आँकड़े दर्शाते हैं की वह पढ़ाई छूटने, कम उम्र मे काम करने, जल्दी पिता बनने की जिम्मेदारी उठाने, पैसे कमाने के मानसिक तनाव इत्यादि जैसे जोखिमों को लेकर अवगत हैं।
चाइल्ड लाइन, महिला हेल्पलाइन, पोकसों ऐक्ट, बाल विवाह निषेध अधिकारी जैसे मौजूदा कानूनी प्रावधान और सुरक्षा तंत्र को लेकर अधिकांश उत्तरदाता अनवगत
बाल विवाह के मुद्दे से निपटने के लिए बाल विवाह निषेध अधिकारी को विशेष रूप से नियुक्त किया जाता है बावजूद इसके एक भी उत्तरदाता को इसके बारे मे कोई जानकारी नहीं थी। अध्ययन के निष्कर्षों मे सामने आया की केवल 11% माता-पिता और 4% बालक एवं बालिकाएँ को पोकसो अधिनियम के बारे मे जानकारी थी, केवल 18% माता पिता और 11% बच्चों को महिला हेल्पलाइन के बारे मे जानकारी थी वहीं चाइल्ड लाइन को लेकर यह प्रतिशत केवल 15 और 8% है।
बाल विवाह को रोकने के लिए त्वरित एवं मजबूत प्रणालीगत सरकारी और सामुदायिक तंत्र आवश्यक हैं। इसलिए, मौजूदा कानूनी प्रावधानों और सुरक्षा तंत्रों के संबंध में जागरूकता, पहुंच और अनुपालन की पहचान करना महत्वपूर्ण है। अध्ययन के निष्कर्ष यह दर्शाते हैं कि सरकारी योजनाओं के बारे मे जानकारी होने के बावजूद बाल विवाह, घरेलू हिंसा एवं शोषण का सामना करने पर किससे संपर्क करना है इसे लेकर बच्चियों मे जानकारी का अभाव है।
अध्ययन की आवश्यकता पर प्रकाश डालते हुए मोईत्रा कहती हैं “इस अध्ययन के निष्कर्ष केवल चंदौली के 10 गाँव या देश के 4 राज्यों तक सीमित नहीं है बल्कि इसके मायने राज्य एवं राष्ट्र स्तर पर बाल विवाह से जुड़े सामाजिक मानदंडों और प्रथाओं पर प्रकाश डालने के लिए बेहद महत्वपूर्ण है जो की समाज में कम उम्र में शादी की धारणा को प्रमुख रूप से प्रभावित करता है। बाल विवाह में योगदान देने वाले अन्य कारक अत्यधिक गरीबी, जबरन प्रवास और लैंगिक असमानता हैं। अध्ययन के निष्कर्षों का यह भी अर्थ है कि पहुंच, उपलब्धता और सामर्थ्य के मुद्दों के कारण शैक्षिक अवसरों की कमी लड़कियों को स्कूल छोड़ने के लिए प्रेरित करती है, जिससे लड़कों की तुलना में लड़कियों के लिए बाल विवाह का खतरा ज्यादा बढ़ जाता हैं। लोग सरकारी योजनाओं से भी अवगत हैं लेकिन नागरिक समाज संघठनों के रूप में हमारे लिए सफलता तब होगी जब यह ज्ञान व्यवहार में परिवर्तित हो जाए “
बाल विवाह को रोकने के लिए जरूरी प्रयासों के बारे मे बताते को मोईत्रा ने कहा, “सरकार और नागरिक समाज संगठनों द्वारा ग्रामीण स्तर पर बाल संरक्षण तंत्र को मजबूत करना, साथ ही आजीविका के विकल्प बनाकर गरीबी और सामाजिक असमानता को कम करने के निरंतर प्रयास कुछ ऐसे तरीके हैं जिनका बाल विवाह खत्म करने मे दूरगामी प्रभाव होगा।“
उन्होंने इस बात पर भी प्रकाश डाला कि शिक्षा तक लड़कियों की पहुंच बढ़ाना बाल विवाह को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। “अध्ययन के निष्कर्षों से पता चला है कि 86% बाल वधुएं जो कभी स्कूल गई थीं, शादी के बाद बाहर हो गईं। उन्होंने कहा कि यह सुनिश्चित करना कि लड़कियों को 18 साल की उम्र तक स्कूलों में रखा जाए, बाल विवाह को रोकने के लिए एक रणनीतिक कदम होगा।”