लखनऊ। आधुनिक तकनीकों के साथ बोन मैरो ट्रांसप्लांट (बीएमटी) के महत्व को समझाते हुए लोगों के बीच जागरूकता बढ़ाने पर ज़ोर दिया जा रहा हैं। यह उन रोगियों के लिए भी मददगार है, जो टर्मिनल लिम्फोमा से पीड़ित है और उनके पास जीवन जीने के कुछ महीने ही बाकी है। विष्व लिम्फोमा दिवस के मौके पर गुरूग्राम के फोर्टीस अस्पताल के क्लिनिक्ल हेमोटोलॉजी और बोन मैरो ट्रांसप्लांट विभाग के डायरेक्टर व जाने माने लिम्फोमा विशेषज्ञ डॉ. राहुल भार्गव का कहना है, “लिम्फोमा की कई स्थितियां होती है, जिसमें बीमारी के अलग-अलग पैटर्न, अलग-अलग परिणाम और कई तरह के इलाज शामिल है। इलाज की नई तकनीकों की मदद से इस बीमारी के उपचार के दर में काफी इजाफा हुआ है, लेकिन सबसे ज़रूरी है कि इस बीमारी का पता जल्दी चलना। जब हम बड़े हुए लिम्फनोड, या लंबे समय तक बुखार रहना या वज़न कम होना देखते हैं, तो सबसे पहले लिम्फ नोड की बायोप्सी कराने की सलाह देनी चाहिए। होजकिन्स और नॉन होजकिन्स के बीच के अंतर और इसके बारे में विस्तार से जानने के लिए स्पेशल टेस्ट की ज़रूरत होती है, इसे इम्यूनहिस्टेकेमिस्ट्री कहा जाता है। लिम्फनोड बायोप्सी कराना बहुत ज़रूरी है, ताकि बीमारी को फैलने से रोका जा सके। कई बार लिम्फोमा को ट्यूबरकलोसिसस (टीबी) समझ लिया जाता है, इसलिए इसका सही निदान होना बहुत महत्वपूर्ण है और बायोप्सी व खून की जांच से ही इसका सही निदान पता चल सकता है। इस बारे में डॉ. राहुल भार्गव कहते हैं, “ बीमारी का पता चलने पर सही इलाज होना बेहद महत्वपूर्ण है। बीएमटी जैसे इलाज के सुरक्षित व प्रभावी नई तकनीकों की मदद से क्लिनिकल परिणामों में भी सुधार हुआ है।टर्मिनल घोषित हो चुके कई रोगी सफलतापूर्वक रिकवर हुए हैं, क्योंकि हमने नए और प्रभावी इलाज के विकल्पों को चुना है। लिम्फोमा के इलाज का दर बढ़ने से लोगों में जागरुकता लानी चाहिए कि इस कैंसर का इलाज संभव है और फोर्टीस अस्पताल लिम्फोमा के इलाज का एडवांस सेंटर है।“