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Monday, December 2, 2024

गुरु पूर्णिमा: गुरु सत्ता एवं भक्ति का रहस्य: एस के शर्मा, अंबाला

सीतापुर -अनूप पाण्डेय,रियासत अली सिद्दिकी /NOI-उत्तरप्रदेश जनपद सीतापुर…..

गुरु शान मे शान है, गुरु मान मे मान। गुरु ज्ञान मे ज्ञान
है, सुयश करो गुरु गान।। गुरु की प्रतिष्ठा मे ही शिष्य की प्रतिष्ठा है एवं गुरु की मर्यादा मे ही अपनी मर्यादा स्थित है। गुरु के ज्ञान मे ही अपना ज्ञान है। इसलिए गुरु के गुणों का गान कर अपने जीवन को सफल करें। जय श्री सदगुरुदेवाय
नमो नमः  शरण शरण मैं शरण हूं, हे गुरुबंदी छोड़! मोहि उबारो हे गुरु, यह सौबार निहोर..बारम बार निहोर! सुरति फंसी संसार में तासे पर गए दूर, सुरति बांध स्थिर करो, आठों पहर हुज़ूर!!                           ।।गुरुस्तोत्र सार्थ।। अखंडमंडलाकाराम व्याप्तम येन
चराचरम। तत्पदम दर्शितम येन तस्मै श्रीगुरवे नमः।। अज्ञानतीमीरानधनस्य ज्ञानाज्जनशलाकया। चक्षुरूणमिलतम येन तस्मै श्रीगुरवे नमः।। गुरुब्रह्मा गुरुविष्णुः गुरुदेवो महेश्वर:। गुरुरेव परम ब्रह्म तस्मै श्रीगुरूवे नमः।। स्थावरम जरगमम व्यापतम यतकिंचितसचराचरम।
तत्पदम दर्शीतम येन तस्मै श्रीगुरूवे नमः।। चिन्मयम व्यापि यत्सर्व त्रैलोक्य सचराचरम। तत्पदम दर्शितम येन तस्मै श्रीगुरुवे नमः।। सर्वश्रुतिशिरोरत्नविराजितपदामबुजः। वेदानतामबुजसूर्यो य: तस्मै श्रीगुरूवे नमः।। शोषणम भवसिंधोष्च ज्ञापनम सारसंपद:। गुरो: पादोदकम
सम्यक तस्मै श्रीगुरूवे नमः।। मननाथ: श्रीजगननाथ: मदगुरू: श्रीजगदगुरू:। मदात्मा सर्वभूतात्मा तस्मै श्रीगुरूवे नमः।। इस गुरु पूरणिा के अवसर पर आज हम एक आध्यात्मिक जीवन जीने की कला सिखाने वाले सद्गुरु प्रभु के विषय में जानने का प्रयास करेंगे l आज हम मानव जीवन
को देखते हैं तो महसूस होता है कि मानव जीवन किसी खोज को समर्पित हो चुका है l हर इंसान कुछ ना कुछ पाने के लिए तत्पर है मनुष्य का जीवन किसी ना किसी खोज को समर्पित है l कुछ पाने की यह प्रयास शायद कभी खत्म नहीं होता क्योंकि उसे पाने के बाद कुछ और पाने की प्रबल
इच्छा स्वभाविक है और इस प्रकार संपूर्ण जीवन एक से बढ़कर एक इच्छा को पूर्ण करने में ही व्यतीत हो जाता है एवं यही हमारा मुख्य आधार बन जाता है l हमें यह ज्ञान याद नहीं हो पाता है की कुछ ऐसा भी हमारे जीवन में है जिसे पा लेने के बाद फिर कुछ और पाने की कल्पना या
सोच शांत हो जाती है l

 

इसी को पाने का नाम अथवा इस जीवन की यात्रा का नाम ही वास्तविक जीवन है और यह आध्यात्मिक ज्ञान से ही प्राप्त हो सकता है l हर किसी व्यक्ति के आंखों में देखने से हमें यह महसूस होता है की हर कोई कुछ ना कुछ पाने के लिए बेचैन है , परेशान है,
व्यग्र है अथवा पाने की चाहत है । बस उसे यह नहीं पता यह चाहत कैसी है क्या है जिससे कि संतुष्टि प्राप्त हो सके l आज का युग इन्हीं अतिरिक्त अतृप्त कामनाओं और निरर्थक सपनों के पीछे भाग भाग कर मृत्यु लोक को प्राप्त कर जाती है और शायद इसी भाव ने आज जीवन का रूप ले
रखा है l इंसान मैं पाने की इच्छा सुबह से शाम तक हजारों बार बदलती रहती है जितनी चाहते हैं उतनी ही दूर है , जितनी दौरे हैं उतनी ही कम है , और जितने कर्म हैं उतने ही बंधन है और जितने ही बंधन है उतने ही जीवन है।  इसीलिए यह जीवन यह दौर के रूप में अंत काल तक चलती
जाती है और उसका कोई सार्थक निष्कर्ष नहीं निकल पाता है l संसार की योजनाओं के मध्य जो परमात्मा को पाने में सहायक बनता है एवं इस कर्म बंधन के ज्ञान के अलावे भी अध्यात्मिक ज्ञान को पाने के लिए एक सहारा बनता है एवं आत्मा एवं परमात्मा के संबंध को संयुक्त रुप से
जोड़ने का ज्ञान देकर परम प्रभु की भक्ति का ज्ञान प्रदान करते हैं उन्हीं का नाम सद्गुरु है और आज का दिन:  गुरु पूर्णिमा उन्हें समर्पित है l सद्गुरु वह होते हैं जिनसे  मिलते ही जीवन का अंधकार  छटने लगता है एवं ज्ञान का प्रकाश फैलने लगता है l सद्गुरु से जुड़
जाने का नाम ही उपासना है एवं उनके पथ का अनुसरण करना ही साधना है l सतगुरु की महिमा प्रायः सभी सद्गृथ में बताई गई है l सदगुरु की महिमा अनंत है साहब कहते हैं, गुरु बिन ज्ञान न उपजे, गुरु बिन मिले ना भे व l गुरु बीनू संशय ना मिटे,  जय जय जय गुरुदेव l
साहिब कहते हैं की बिना गुरु के ज्ञान उदय नहीं होता है । गुरु के बिना भेद नहीं मिलता है । गुरु के बिना मन से संदेह नहीं  मिटता । इसलिए गुरुदेव की जय हो , भाव यह है की सर्व क्षेत्रों में अध्यात्मिक धार्मिक तथा राजनीतिक इन तीनों क्षेत्रों में गुरु की जय हो जिनके
ज्ञान से प्रकृति से अध्यात्म तक प्रफुल्लित होता है l सद्गुरु की महिमा अनंत, अनंत किया उपकार l लोचन अनंत उधारीया , अनंत दिखावन हार l सामान्य अर्थ में प्राय:  यह कहा जाता है कि जो हमें अलौकिक ज्ञान प्रदान करते हैं उन्हें गुरु कहते हैं एवं जिनके
द्वारा अज्ञान के अंधकार को मिटाकर जिज्ञासु आत्मा में ज्ञान का प्रकाश भर दे , उन्हें सद्गुरु कहते हैं । मगर  प्रसंग विशेष में कहीं-कहीं सद्गुरु और गुरु पर्यायवाची भी बन जाते हैं। पूरे सद्गुरु के बिना, पूरा शिष्य ना होए l  गुरु लोभी  शिष्य लालची, दूने दlक्षण
होय l साहेब कहते हैं, बिना सद्गुरु के पूरा शिष्य कोई नहीं हो सकता है l  इसीलिए अनुरागी एवं  वीरही  जीवो को अपने कल्याण के लिए सद्गुरु  की खोज  करनी चाहिए एवं सच्चे सद्गुरु के शरण में जाना चाहिए l पूरा  सहेजें गुण करें , गुण नहीं आवे  छेह l सागर पोषण सर
भरें, दान ना मांगे मैंह। साहब कहते हैं चेतन सहज प्रतिभा पूर्ण पूरा गुण करती है, सीख सिखाया ज्ञान अथवा कागजी ज्ञान से वह गुण नहीं आता ।  समुद्र के पोर से भाप से सारे तालाब सर्व भर जाते हैं परंतु जब उसका समय आता है तो अपने आप ही मेघ बृष्टि होकर संसार को जल्
से पूर्ण कर देता है। उसी प्रकार गुरु के सहज प्रतिभा, प्रभावशाली ज्ञान एवं कृपा से पूर्ण ज्ञान प्राप्त कर ईश्वर की भक्ति करने के लिए जीव जागृत होता है।  क्योंकि गुरु एक नित्य सत्ता है एवं सहज प्रकाश है, और  वही पूरा गुरु सद्गुरु है ।  दूसरे बने बनाए गुरु उनके
अधूरे गुरु से पूर्ण विवेक पूर्ण ज्ञान नहीं प्राप्त होता है । भाव यह है की जो स्वयं दूसरों से सीखता है वह गुरु पद कैसे प्राप्त कर सकता , पूरा गुरु वही है जिसमें ईश्वरीय ज्ञान की पूर्ण धारा प्रवाहित है और उस गुरु के प्रकाश से जब जीवो को  मोह एवं अंधकार दूर होगा,
ऐसे ही सतगुरु की हमें तलाश करनी चाहिए और यही मानव जीवन का प्रथम लक्ष्य है। पूरा सद्गुरु ना मिला , सुनी अधूरी सीख ।  स्वांग यती का पहरी के , घर-घर मांगी भीख। आज के समाज के ऊपर साहब ने कटाक्ष किया है की जिन को पूरा गुरु अर्थात सद्गुरु नहीं मिलता है वह झूठे
गुरुओं की अधूरी और अपूर्ण शिक्षा सुनते हैं पाते हैं और यूं ही जीवन को व्यर्थ गमाते हैं  और झूठे गुरुओं की अधूरी अपूर्ण शिक्षा में ही जीवन व्यतीत कर लेते हैं । इस प्रकार के लोग ही अपूर्ण ज्ञान बस  नकली सन्यासी के भेष बनाकर घर घर भिक्षा मांगते फिरते हैं।  वह
तो साधु सन्यासी नहीं है उनका तो केवल  भेष यती का है , अतः जीव के कल्याण के लिए सच्चे सद्गुरु अति आवश्यक है। गुरु बिन ज्ञान न उपजे , गुरु बिन मिले न भव,। गुरु बिन संशय ना मिटे , जय जय जय गुरुदेव । साहब कहते हैं कि बिना गुरु के ज्ञान उदय नहीं होता है गुरु
के बिना  संदेह  संशय नहीं  मिटता , इसलिए सतगुरु देव की जय हो।  अध्यात्मिक , धार्मिक और राजनीतिक इन तीनों क्षेत्रों में गुरु की कृपा से ही सद्गति को प्राप्त कर पाना संभव है । गुरु बिन ज्ञान न उपजे,  गुरु बिन मिले न मोक्ष।  गुरु बिन लखे ना सत्य को, गुरु बिन
मिटे ना दोक्ष । अर्थात गुरु बिना ना ज्ञान संभव है ना गुरु बिना मोक्ष का मार्ग ही प्रशस्त हो सकता है , ना हीं गुरु बिना कोई सत्य को लख सकता है , ना ही प्राकृतिक दोष दुर्गुण  मिट सकता है । भाव यह है कि गुरु के प्रसाद से सब कुछ होता है अपने मन से नहीं । अतः
गुरुशरण ही केवल मानव जीवन का आश्रय है। गुरु नारायण रूप है,  गुरु ज्ञान के घाट । सद्गुरु वचन प्रताप से,  मन के  मिटते नीचे उच्चाट ।। अर्थात गुरु नारायण का रूप है तथा गुरु अनंत ज्ञान के घाट है एवं सद्गुरु के वचन के प्रताप से ही मन का समस्त उपद्रव  अथवा
ऊंचा नीचा समझ में आता है । भाव यह है कि गुरुप्रकाश में ही मन शांत कर जीवो के आज्ञा में चलता है और जीव अपने काम को करते हैं बिना गुरु युक्ति विधान के मन किसी का भी शांत नहीं होता मन शांति की युति गुरु के पास ही हैं और उसे गुरु ही प्रदान कर सकते हैं अतः गुरु
नारायण रूप है जिससे सर्वज्ञान प्राप्त होता है एवं गुरु प्रसाद से ही मन की बेचैनी एवं शैतानी मिटती है । गुरु महिमा अनंत है ,अनंत किया उपकार । चक्षु अनंत  उधारीया , अनंत दिखावन हार।। सतगुरु की महिमा अनंत है ,  सद्गुरु अनंत उपकार करने वाले हैं,  सद्गुरु दिव्य
दृष्टि प्रदान करने वाले हैं,  अनंत ज्ञान के आनंद को प्रदान करने वाले हैं एवं अंतर चाकसू से  अनंत पुरुष,  परब्रह्म को दिखाने वाले हैं। अध्यात्म मार्तंड महर्षि सदाफल देव जी महाराज ने सद्गुरु कृपा विधान एवं अध्यात्म को एक गिरत ईश्वरीय ज्ञान धारा के रूप में जीवो
के कल्याण हेतु समाज एवं देश को प्रदान किया है जिससे पूर्णा अध्यात्मिक ज्ञान की प्राप्ति हो कर मूल स्वरूप का ज्ञान प्राप्त कर ईश्वर की पूर्ण भक्ति प्राप्त करने में जीवात्मा सक्षम हो पाता है। गुरूमूर्ति गति चंद्रमा , सेवक नयन चकोर । पलक पलक निरखत रहे , गुरूमूरति
की ओर। इस दोहा में सदगुरुदेव ने स्पष्ट किया है की अध्यात्म क्षेत्र के जो प्रकाशक अधिष्ठाता हैं वह सद्गुरु है ,  जिनके अंदर ईश्वरीय ज्ञान की धारा पूर्णरूपेण सदैव प्रवाहित रहती है वही सद्गुरु है । ब्रह्मविद्या के पूर्ण सैद्धांतिक और क्रियात्मक ज्ञान के जो प्रदाता
हैं वही सद्गुरु है । इस प्रकार अंतर से हम यह भी कह सकते हैं कि अध्यात्म के सारे तत्व जिन्हें प्रत्यक्ष और जिनके ज्ञान प्रकाश में चलकर अध्यात्म पथिक आत्म दर्शन और तब अंतर परमात्मा दर्शन की प्राप्ति कराने वाले ही सद्गुरु है । इस तरह सद्गुरु ही अध्यात्म पथ के
मार्गदर्शक प्रकाश स्तंभ है। यह सद्गुरु पद केवल नाम वाचक विशेषण मात्र नहीं है बल्कि इस महान पद की प्राप्ति की एक अध्यात्मिक प्रक्रिया भी है । व्याकरण शास्त्र के अंतर्गत गुरु शब्द ,  जिसका अर्थ होता है जो हमें वेद शास्त्र के आचार व्यवहार की भली भांति शिक्षा
देता है वही गुरु है । मगर कोटी भेद  से इस गुरु या सतगुरु शब्द के कई अर्थ है सद्गुरु के ज्ञान  स्वरूप की व्याख्या करते हुए अनेक मंत्र वैदिक ज्ञान सामने आए हैं जिनमें सद्गुरु तत्व की महिमा बताइ  गई है ।  अतः अज्ञान रूपी अंधकार को नष्ट करने वाला जो ब्रह्म स्वरूप
प्रकाश है वही  गुरु हैं। पूरा  सहेजें गुण करें , गुण नहीं आवे  छेह l सागर पोषण सर भरें, दान ना मांगे मैंह। साहब कहते हैं चेतन सहज प्रतिभा पूर्ण पूरा गुण करती है, सीख सिखाया ज्ञान अथवा कागजी जान में वह गुण नहीं आता । जैसे  समुद्र के पोर से भाप से सारे
तालाब सर्व भर जाते हैं परंतु जब उसका समय आता है तो अपने आप ही मेघ बृष्टि होकर संसार को जल् से पूर्ण कर देता है। उसी प्रकार गुरु के सहज प्रतिभा, प्रभावशाली ज्ञान एवं कृपा से पूर्ण ज्ञान प्राप्त कर ईश्वर की भक्ति करने के लिए जीव जागृत होता है।  क्योंकि गुरु
एक नित्य सत्ता है एवं सहज प्रकाश है वही पूरा गुरु सद्गुरु है दूसरे बने बनाए गुरु उनके अधूरे गुरु से पूर्ण विवेक पूर्ण ज्ञान नहीं प्राप्त होता है । भाव यह है की जो स्वयं दूसरों से सीखता है वह गुरु पद कैसे प्राप्त कर सकता , पूरा गुरु वही है जिसमें ईश्वरीय ज्ञान
की पूर्ण धारा प्रवाहित है और उस गुरु के प्रकाश से जब जीवो के  मोह एवं अंधकार दूर होगा,  ऐसे ही सतगुरु की हमें तलाश करनी चाहिए और यही मानव जीवन का प्रथम लक्ष्य है। पूरा सद्गुरु ना मिला , सुनी अधूरी सीख ।  स्वांग यती का पहरी के , घर-घर मांगी भीख। आज के समाज
के ऊपर साहब ने कटाक्ष किया है की जिन को पूरा गुरु अर्थात सद्गुरु नहीं मिलता है वह झूठे गुरुओं की अधूरी और अपूर्ण शिक्षा सुनते हैं पाते हैं और यूं ही जीवन को व्यर्थ गमाते हैं  और झूठे गुरुओं की अधूरी अपूर्ण शिक्षा में ही जीवन व्यतीत कर लेते हैं । इस प्रकार
के लोग ही अपूर्ण ज्ञान बस  नकली सन्यासी के भेष बनाकर घर घर भिक्षा मांगते फिरते हैं।  वह तो साधु सन्यासी नहीं है उनका तो केवल  भेष यती का है , अतः जीव के कल्याण के लिए सच्चे सद्गुरु अति आवश्यक है। गुरु बिन ज्ञान न उपजे , गुरु बिन मिले न भव,। गुरु बिन संशय
ना मिटे , जय जय जय गुरुदेव । साहब कहते हैं कि बिना गुरु के ज्ञान उदय नहीं होता है गुरु के बिना  संदेह  संशय नहीं  मिटता , इसलिए सतगुरु देव की जय हो।  अध्यात्मिक , धार्मिक और राजनीतिक इन तीनों क्षेत्रों में गुरु की कृपा से ही सद्गति को प्राप्त कर पाना संभव
है । गुरु बिन ज्ञान न उपजे,  गुरु बिन मिले न मोक्ष।  गुरु बिन लखे ना सत्य को, गुरु बिन मिटे ना दोक्ष । अर्थात गुरु बिना ना ज्ञान संभव है ना गुरु बिना मोक्ष का मार्ग ही प्रशस्त हो सकता है , ना हीं गुरु बिना कोई सत्य को लख सकता है , ना ही प्राकृतिक दोष
दुर्गुण  मिट सकता है । भाव यह है कि गुरु के प्रसाद से सब कुछ होता है अपने मन से नहीं । अतः गुरुशरण ही केवल मानव जीवन का आश्रय है। गुरु नारायण रूप है,  गुरु ज्ञान के घाट । सद्गुरु वचन प्रताप से,  मन के  मिटते नीचे उच्चाट ।। अर्थात गुरु नारायण का रूप है
तथा गुरु अनंत ज्ञान के घाट है एवं सद्गुरु के वचन के प्रताप से ही मन का समस्त उपद्रव  अथवा ऊंचा नीचा समझ में आता है । भाव यह है कि गुरुप्रकाश में ही मन शांत कर जीवो के आज्ञा में चलता है और जीव अपने काम को करते हैं बिना गुरु युक्ति विधान के मन किसी का भी शांत
नहीं होता मन शांति की युति गुरु के पास ही हैं और उसे गुरु ही प्रदान कर सकते हैं अतः गुरु नारायण रूप है जिससे सर्वज्ञान प्राप्त होता है एवं गुरु प्रसाद से ही मन की बेचैनी एवं शैतानी मिटती है । गुरु महिमा अनंत है ,अनंत किया उपकार । चक्षु अनंत  उधारीया , अनंत
दिखावन हार।। सतगुरु की महिमा अनंत है ,  सद्गुरु अनंत उपकार करने वाले हैं,  सद्गुरु दिव्य दृष्टि प्रदान करने वाले हैं,  अनंत ज्ञान के आनंद को प्रदान करने वाले हैं एवं अंतर चाक्षू से  अनंत पुरुष,  परब्रह्म को दिखाने वाले हैं। सद्गुरु महर्षि सदाफल देव जी महाराज
ने अपने अनुभव योग विज्ञान को अभी रंजीत करते हुए कहा है की ” लीला अद्भुत अगम है , अनुभव गमन अगाध। साहस बल सद्गुरु दया , महाप्रलय कोई नहीं साथ ।।” विहंगम योग में अनुभव योग समाधि की लीला आश्चर्य में अनुभव गम में और अपार है अपने परम पुरुषार्थ के प्रताप से और सद्गुरु
की दया से कोई मृत्युंजय अमर योगी  कई माह तक  विहंगम योग समाधि में रत रहते हैं । यह है विहंगम योग और उसकी महिमा,  इस अलौकिक चेतन और सहज मार्ग के प्रनेता सद्गुरु सदाफल देव जी महाराज हैं और अभी वर्तमान आचार्य सद्गुरु स्वतंत्र देव जी महाराज इस ब्रह्मविद्या के
प्रदाता है सद्गुरु सता में एक निश्चय विश्वास और भक्ति रखने वाला शिष्य साधक ही यह अमृत फल पाता है।  हमें यह  मानुष तन इसी अमरफल को प्राप्त करने के लिए मिला है।  लेकिन हम इसे विस्मृत कर देते हैं , इसी का स्मरण सद्गुरु कराते हैं,  हमें इस अध्यातम का ज्ञान बदला
कर यह हमें सदैव स्मरण रखने की प्रेरणा देते हैं कि इस मानव जीवन का पूर्ण उद्देश्य ईश्वर प्राप्ति है ईश्वर के ज्ञान के आनंद में अपने आप को विलीन कर लेना है। मनुष्य जीवन का एकमात्र लक्ष्य आत्म शांति ईश्वर की भक्ति और आवागमन के चक्र से मुक्ति प्राप्त करना है ।
यह कार्य पुस्तक विज्ञान और मन मुखी साधना से कदापि संभव नहीं है । लेकिन अक्सर हम इसी आधार पर भक्ति मुक्ति और निर्वाण को प्राप्त करना चाहते हैं । इस अज्ञान यात्रा में ही हमारा समय बर्बाद होता रहता है और हम अंत समय में हाथ मलते रह जाते हैं।  अध्यात्म जगत में
बिना सद्गुरु के दर्शन उपदेश और कृपा के भक्ति भजन और भगवान का मिलना  असंभव है । सद्गुरु सदाफल देव जी महाराज ने स्पष्ट संदेश दिया है की——+++ ” सद्गुरु शरणागत बिना सुमिरन भजन न होय।   पासे कर्म विडंबना मानस  आया मन माया सोए ।।     सद्गुरु शरण में ही सुमिरन
भजन होता है , स्वतंत्र मन मुखी होने पर जीभ मुंह कर्म बंधन में फंसकर आध्यात्मिक जीवन से गिर जाता है।  उसके सभी मन मुखी कार्य मन माया के अंदर होते हैं इसलिए उस मन मुखी तथा स्वतंत्र ग्रामीण व्यक्ति को सुख शांति और भक्ति की प्राप्ति नहीं हो सकती।   ”  साहेब सतगुरु
एक हैं , भेदभाव जन मान ।   व्यक्त रूप दर्शन मिले , दे शिक्षा तत्वज्ञान ।।       यानी परम पुरुष और सद्गुरु एक ही है । दोनों में कोई भेद नहीं है और व्यक्त सत्पुरुष का व्यक्त रूप सतगुरु है सतगुरु में उसी वक्त रूप का दर्शन होता है उन्हीं के द्वारा अध्यात्म के
सभी तत्वों का बोध होता है इस तरह सद्गुरु ही हमारे जीवन रूपी नाव के खेवनहार हैं पार कराने वाले करतार हैं व्यक्त और अव्यक्त हैं ।     सद्गुरु दुआ स्वरूप अनुभव गति अव्यक्त है अंतर शब्द अनूप भक्ति और भजन बिना सद्गुरु कृपा के संभव नहीं है या अनुभव गम यथार्थ है
प्रकृति पर अलग को सदगुरुदेव ही अपनी कृपा और शक्ति से लगा सकते हैं यह सद्गुरु चरणों की अनन्य भक्ति से ही संभव है।      हम बिना गुरु के ही भगवान को पाना चाहते हैं बिना मार्ग के ही जब संसारी की हम बिना गुरु के ही भगवान को पाना चाहते हैं बिना मार्ग के ही जब संसारी
की यात्रा संभव नहीं है तो बिना मार्गदर्शक के आध्यात्मिक यात्रा संभव कैसे हो सकती है।  सद्गुरु महिमा और सतगुरु शक्ति का गुणगान सभी कालों सभी समय में होता रहा है। गुरु शब्द में गू का अर्थ अहंकार अज्ञान और उनका अर्थ प्रकाश अथवा ज्ञान होता है अतः अज्ञान रूपी अंधकार
को नष्ट करने वाला जो ब्रह्म स्वरूप प्रकाश है वही गुरु अर्थात अज्ञान के अंधकार में जो आंखें अंधी हो गई है उनमें ज्ञान का अंजन लगाकर जो न खोल देता है ऐसे गुरु को ही सतगुरु कहते हैं और उन्हें नमस्कार है इस प्रकार सद्गुरु ही ब्रह्म शक्ति का केंद्र है और सद्गुरु
ही ब्रह्म स्वरूप हैं सद्गुरु चार प्रकार के हैं नितिन आदि सतगुरु स्वयं सिद्ध सतगुरु अभ्यास सिद्ध सतगुरु एवं परंपरा सतगुरु सद्गुरु नित्यानंद जी हैं स्वयं सिद्ध गुरु आए सिद्ध गुरु अभ्यास से परंपरा गुरु भाई इसमें नित्यानंद सतगुरु आ सकता है जो सदैव ईश्वरीय ज्ञान
धारा को अपने अंदर धारण किए रहती हैं यानी जिसके अंदर ब्रह्मविद्या का प्रवाह नित्य रूप से है और ईश्वर के संदेश ही दूध के रूप में जो ब्रह्मविद्या के ज्ञान के आदेश था और प्रचारक हैं यानी प्यार आदि सद्गुरु ब्रह्मविद्या के आदि आचार्य हैं और उन्हीं की छत्रछाया में
रहकर स्वयं सिद्ध सतगुरु अभ्यास सतगुरु सतगुरु जगजीवन के कल्याण के लिए ब्रह्मविद्या के प्रचार कार्य का संपादन करते हैं इसी तरह महाप्रभु की प्रेरणा से एवं नितिन आदि सद्गुरु अमरलोक से किसी विशेष मुक्त आत्मा का चयन करके उसे अपने ज्ञान धारा को प्रदान कर संसार के
जीवो के कल्याण और इस धरा धाम पर ब्रह्मविद्या का उपदेश देने के लिए भेजते हैं। सभी ग्रंथों उपनिषदों में गुरु की महिमा एवं कृपा मूल रूप से बतलाई गई है गीता में भी कहां गया है ध्यान मूलम गुरु मूर्ति पूजा मूलम गुरु पदम मंत्र मूलम गुरु वाक्यम मोक्ष मूलम गुरु कृपा
अर्थात परम आराध्य गुरुदेव की मूर्ति ही ध्यान का मूल है उनके चरण कमल ही पूजा के मूल हैं उनके द्वारा कहे गए वाक्य ही मंत्रों के मूल हैं और उनकी कृपा ही मोक्ष का मूल है सद्गुरु व्यक्त और अव्यक्त दोनों रूपों में रहकर ब्रह्मविद्या का प्रचार इस संसार में करते हैं
सद्गुरु के बाहर रूप को ही व्यक्त रूप स्वरूप कहते हैं और सद्गुरु मंडल में यानी चेतन साधना की एक विशेष भूमि में अभ्यांतर भेद साधना द्वारा अनुभव में प्रकट शब्द स्वरूप सतगुरु सत्ता ही अभिव्यक्त रूप है इस स्थिति को और अधिक स्पष्ट करते हुए स्वर्वेद में कहा गया है
व्यक्त और अव्यक्त हैं सद्गुरु दुआएं स्वरूप अनुभव गति अव्यक्त है अंतर शब्द अनूप अर्थात व्यक्त और अव्यक्त सद्गुरु के दो स्वरूप हैं व्यक्त बाय स्वरूप है और अनुभव द्वारा साक्षात प्राप्त शब्द स्वरूप अव्यक्त है अव्यक्त स्वरूप की प्राप्ति के लिए ही व्यक्त स्वरूप
संदेश सद्गुरु की उपासना होती है देख के अंदर जो शब्द आनंद का स्रोत प्रवाहित होता है उसी परिवार को अपनी चेतन शक्ति से संबंधित करने के लिए सद्गुरु की उपासना होती है सद्गुरु में विशेष शक्ति होती है जो पवित्र आत्मा को अपने मौलिक चेतन आकर्षण से अंतर में प्रवेश करा
उसे उर्दू मुख कर देती है इसलिए सद्गुरु की विशेष महिमा है सद्गुरु के व्यक्त शरीर में ही उसका अध्यक्षता की अनुभूति होती है उस महान तत्व का प्रकाश इसी व्यक्ति शरीर में ही प्राप्त हुआ है इसलिए सद्गुरु के इस वक्त शरीर की पूजा की जाती है जिसमें विद्वान होकर उस महान
आत्मा को परमात्मा की अनंत शक्ति का स्रोत प्राप्त हुआ है अतः उस परम प्रकाश को धारण करने वाली सतगुरु के व्यक्त दे की भी पूजा होती है सद्गुरु के व्यक्त मूर्ति को ही व्यक्त और अमूर्त अवस्था को अभिव्यक्त कहते हैं सद्गुरु के अव्यक्त शरीर की प्राप्ति के लिए ही व्यक्ति
शरीर की उपासना की जाती है सद्गुरु आभा लगते हो एक आंख से हंस जीवन मरण सुधारकर अमर भाई श्री वंश सूर्यवंश सुई। इसीलिए यह शब्द प्राया प्रायः उपयुक्त लगता है कि मनुष्य जन्म दुर्लभ हो गए नहीं हो बारंबार 3 वर्ष से फल गिर पड़ा बहुरि ना लागे डर दार मानव जन्म दुर्लभ
है या बारंबार नहीं मिलता जैसे वृक्ष से फल गिर पड़ता है फिर उस दाल में नहीं लगता काश वो नींद भर जागी भेजो करतार 1 दिन ऐसा आएगा लंबे 57 एक दिन ऐसा सोएगा लंबे पांव पसार तुम नींद भर क्यों सोते हो तुम जाग कर जब करता भगवान को क्यों नहीं भेजते तुम एक दिन ऐसे लंबे
पैर पसार कर सोएगा कि फिर ना उठ सकेगा इस इस प्रकार चेतन मार्ग की प्राप्ति के लिए अज्ञान निशा में सोए व्यक्ति को उद्बोधन उद्भव उद्बोधन करते हुए सद्गुरु कहते हैं कि हे अज्ञान अंधकार में भ्रमित व्यक्तियों उठो जागो और प्रा विद्या आचार्य की शरण में जाकर इस श्रेष्ठ
ज्ञान मार्ग को प्राप्त करो किंतु as-11 रखो कि इस मार्ग को तत्व ज्ञानी लोग पीछे सुरे की धार जैसा दुर्गम बतलाते हैं वह आत्म तत्व शब्द स्पर्श रूप रस गंध आदि इंद्रिय गाय विषयों से पृथक तथा पड़े हैं वह अनादि अनंत महत्त्व तत्व से भी अर्थात शुक्र प्रकृति से भी पड़े
हैं उस तत्व को जानकर मुमुक्षु मृत्यु के मुख से छूट जाता है इस शरीर में 10 द्वार हैं इनमें 9 दरवाजों का ज्ञान सबों को है दशम द्वार गुप्त है इसका ज्ञान योगियों को होता है अनंत श्री सद्गुरु सदाफल देव जी महाराज ने इसका ज्ञान विश्व को दिया है नवद वार संसार का दसवां
योगी द्वार एकादश खिड़की बने शब्द महल पठार 10 द्वार से पृथक एक अन्य मार्ग उर्दू भूमि में स्थित एक आदर्श द्वार है उसी एक आदर्श द्वार से आत्म चेतना जब परब्रह्म के मंडल में प्रविष्ट होती है तब आत्मा जीवन मुक्त होती है और देह त्याग पश्चात विदेश मुक्त हो जाती है।
इस प्रकार यह गुरु पूर्णिमा मानव समाज को प्रकृति से चेतन की ओर अग्रसर होने की प्रेरणा देती है एवं कैसे शरीर और इसके अंदर रहने वाले जीव आत्मा को अलग-अलग ज्ञान स्वरूप समझा कर उस आत्मा को परमात्मा की भक्ति का ज्ञान देकर उसे ज्ञानानंद में समर्पित करने का मार्ग
बताना और समझाना किया है। ब्रह्मविधा एक गुरूमुखी विधा है ।और इसके आदि प्रचारक स्वयं नित्य-अनादि सदगुरू बंदीछौर ( सुकृत देव ) कबीर साहब ही है।और कबीर साहब चारो युगो मे आते है।और कबीर साहब अलग-अलग नाम से आते है। सतयुग मे सत सुकृत देव जी, त्रेतायुग मे मुनिद्र
के नाम से और द्वापर मे करुणामय तथा कलियुग मे कबीर साहब के नाम से आते है।

त्वमेव माता च पिता त्वमेव, त्वमेव बंधुष्च सखा त्वमेव।
त्वमेव विद्या द्रविनम त्वमेव, त्वमेव सर्वमम देवदेव।❤️

💐जितने भी संसार मे ऋषि-मुनि, योगी, जपी-तपी और साधु संत और महात्मा जी तथा सभी धर्म गुरूऔ के परम गुरू ,कबीर साहब ही है। इसलिए कबीर साहब को सभी गुरूऔ का गुरू , यानि परम गुरू गुरू तथा नित्य-अनादि सदगुरू बंदीछौर कहा गया है। 🌷
💐

💐नित्य-अनादि सदगुरू का मतलब होता है। कि जिस सदगुरू का आदि और अंत किसी को भी मालूम नही होता। वह तो तीनो कालो मे , यानि भूतकाल ,वर्तमान काल और भविष्य काल मे एक समान रहता है।और वही नित्य-अनादि सदगुरू बंदीछौर कहलाता है। क्योकि किसी भी जीव को जन्म-मरण के बंधन से मुक्त करवाने का अधिकार नित्य-अनादि सदगुरू बंदीछौर कबीर साहब को तथा पूर्ण ब्रह्मनिषठ सदगुरू को ही होता है। कोई भी मनमुखी गुरूआ लोग किसी भी जीव को जन्म-मरण से मुक्त नही करवा सकते। यह अटल सत्य बात है। 🌷

💐वेदो मे और उपनिषद मे तथा मुणोपनिषद आदि ग्रंथो मे वर्णन आता है। कि सदगुरू भी 4 प्रकार के होते है। 🌷
💐प्रथम सदगुरू:-नित्य-अनादि सदगुरू होता है। जो स शरीर अपनी इच्छा से कभी भी और कही पर भी प्रकट हो सकता है। जैसे कबीर साहब हुए है। । 🌷
💐दुसरा सदगुरू:- स्वयं सिद्ध सदगुरू होता है। जो कबीर साहब से परमीशन लेकर आता है। जिसे वशिष्ठ गुरू कहते है। 🌷
💐नित्य-अनादि सदगुरू और स्वयं सिद्ध सदगुरूऔ को ,कोई पढाई करना, या पुजा-पाठ, जप-तप और योग साधना आदि कुछ भी नही करना पड़ता। क्योकि उनके अन्तर-तर मे सब कुछ पहले से ही विधमान रहता है।🌷

💐तीसरा सदगुरू :-अभ्यास सिद्ध सदगुरू होता है। और अभ्यास सिद्ध सदगुरू को चिरकाल तक ब्रह्मविधा विहंगम योग की विधिवत साधना करके , अपने आपको यह सिद्ध करना पडता है। कि हा वाक्य मे यह गुरू जी  अभ्यास सिद्ध सदगुरू बनने लायक है   🌷                                💐सतयुग  ,त्रेतायुग , द्वापरयुग मे भी काफी अभ्यास सिद्ध सदगुरू हुए है। जैसे विशवामित्र जी  , याज्ञवल्क्य जी आदि-आदि भी अभ्यास सिद्ध सदगुरू थे। जिन्होने चिरकाल तक योगाभ्यास किया था और ध्यान-साधना भी किए थे। 🌷
💐और इन अभ्यास सिद्ध  सदगुरू जी को पूर्ण सदगुरू का पद स्वयं नित्य-अनादि सदगुरू बंदीछौर कबीर साहब स शरीर प्रकट होकर उनकी अच्छी तरह से परीक्षा लेकर ही अभ्यास सिद्ध सदगुरू का पद देते है। और उन अभ्यास सिद्ध सदगुरू को ब्रह्मविधा विहंगम योग का प्रचार सारे भूमण्डल मे और सारे विश्व मे करने का आदेश भी खुद कबीर साहब ही देते है।और फिर उस पूर्ण ब्रह्मनिषठ सदगुरू की मदद और हर तरफ से रक्षा भी करते है। 🌷                   💐इसलिए अमर सदगुरू सदाफल देव जी महाराज ने ब्रह्मविधा विहंगम योग की विधिवत रूप से 17 सालो तक लगातार गहन साधना करके यह सिद्ध कर दिया था। कि वह अभ्यास सिद्ध सदगुरू पद के उम्मीदवार है। इसलिए उनको कबीर साहेब ने अभ्यास सिद्ध सदगुरू का पद दिया था। 🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷
💐जब वह अभ्यास सिद्ध सदगुरू जी भारत देश और विदेश मे ब्रह्मविधा विहंगम योग का प्रचार करता है। तब नित्य-अनादि सदगुरू कबीर साहब हर कदम पर अभ्यास सिद्ध सदगुरू के साथ अव्यक्त रूप से साथ रह कर हर तरफ से उनकी रक्षा और मदद करते-रहते है।🌷
💐इस प्रकार से हमारे अमर सदगुरू हिमालय योगी महर्षि श्री सदाफल देव जी महाराज को अभ्यास सिद्ध सदगुरू का पद (सुकृत देव  ) कबीर साहब ने स शरीर प्रकट होकर, ब्रह्मविधा विहंगम योग का प्रचार- प्रसार सारे भूमण्डल मे और सारे विश्व मे प्रचार करने का आदेश दिया था। 🌷

💐हमारे अमर सदगुरू महर्षि श्री सदाफल देव जी महाराज ने विहंगम योग संस्थान की स्थापना सन 1924 मे किया था। तब से लेकर आज तक हमारे संस्थान के आचार्य और विहंगम योग संस्थान के अनुयायी दिन और रात देश-विदेश मे घुम कर ब्रह्मविथा विहंगम योग का प्रचार कर रहे है।🌷

💐चौथा सदगुरू:- परंपरा सदगुरू होता है । और परंपरा सदगुरू का पद अभ्यास सिद्ध सदगुरू द्वारा अपने किसी योग्य शिष्य को, या फिर अपने योग्य सपुत्र को ही देते है। परंपरा सदगुरू को भी जब नित्य-अनादि सदगुरू बंदीछौर कबीर साहब स शरीर प्रकट होकर साक्षात दर्शन देते है । तभी वह परंपरा सदगुरू पूर्ण ब्रह्मनिषठ सदगुरू बनता है। 🌷
💐और फिर वह परंपरा सदगुरू ब्रह्मविधा विहंगम योग का प्रचार- प्रसार देश और विदेश मे दिन और रात घुम कर प्रचार करते-रहते है।🌷

💐हमारे वर्तमान परंपरा सदगुरू श्री स्वतंत्र देव जी महाराज सन 1969 मे परंपरा सदगुरू देव के पद पर नियुक्त किए गए थे। यानि पिछले 51 सालो से लेकर आज तक हमारे वर्तमान सदगुरू श्री स्वतंत्र देव जी महाराज दिन और रात देश-विदेश मे घुम कर ब्रह्मविधा विहंगम योग का प्रचार कर रहे है।🌷
#विहंगमयोग  कोई नया योग नहीँ है । यह ब्रह्मविद्या परक ज्ञान है और इस ज्ञान के अन्दर ही सारे ज्ञान हैं। वेदों में , उपनिषदों में एवं अन्य आध्यात्मिक सद्ग्रन्थों में इस ज्ञान का वर्णन सांकेतिक रूप से किया गया है। मगर मात्र पढ़ लेने से हम उन संकेतों को सही रूप में नहीँ समझ पायेंगे । उन्हें ठीक से समझने के लिए साधन अभ्यास की जरूरत है। प्राचीन काल में अनेक ऋषियों ने इस विहंगम योग की साधना की है। जिसमें भृगु , उन्मोचन , नारायण कुत्स, अथर्वा आदि ऋषियों के नाम प्रमुख हैं । धीरे-धीरे साधन गौण होने लगा और बुद्धि का प्रयोग अधिक होने लगा, तब से अनेक मत-सम्प्रदाय बनने लगे और शुद्ध ब्रह्मविद्या का ज्ञान लुप्त होने लगा । #महर्षिसदाफलदेव जी महाराज ने अपनी अखण्ड साधना से पुनः इस ब्रह्मविद्या विहंगम योग के ज्ञान को प्रकाशित किया ।
💐भारत देश मे तो लगभग सभी राज्यो मे ब्रह्मविथा विहंगम योग का प्रचार हो गया है। तथा विदेश मे भी करीब 50 देशो मे ब्रह्मविधा विहंगम योग का प्रचार हो चुका है। और  अभी 50–100 देशो मे ब्रह्मविधा विहंगम योग का प्रचार करना है।🌷

💐और इस ब्रह्मविधा विहंगम योग का प्रचार तो सारे भूमण्डल मे और सारे विश्व मे होकर ही रहेगा। क्योकि ब्रह्मविधा एक ईश्वरीय धार है। और इस धार के प्रचार को दुनिया की कोई ताकत नही रोक सकती। 🌷
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💐ब्रह्मविधा है ब्रह्मजा, है ईश्वरी धार।🌷
💐दबे न सारी शक्ति से, सदगुरू जगत प्रचार।🌷

☝️☝️इस ईश्वरीय धार को यानि इस ब्रह्मविधा के प्रचार के रक्षक स्वयं नित्य-अनादि सदगुरू बंदीछौर कबीर साहब ही है। 🌷
💐अगर  और किसी भी जीव को सार शब्द का लखाव चाहिए और जन्म-मरण से मुक्ति चाहिए। तो आप लोगौ को ब्रह्मनिषठ सदगुरू देव द्वारा ब्रह्मविधा विहंगम योग की दीक्षा लेनी ही लेनी होगी । और फिर इस सेवा, सत्संग और साधना को विधिवत सुचारू रुप से करना ही करना होगा।🌷

💐ब्रह्मविधा विहंगम योग की साधना और ब्रह्मनिषठ सदगुरू के बिना किसी भी जीव को सार शब्द का लखाव और जन्म -मरण से मुक्ति कभी भी नही मिलने वाली। यह अटल सत्य है।🌷

💐एक मार्ग प्रभू मिलन का, अन्य द्वार नही कोय।🌷
💐ब्रह्मविधा प्रकाश मे, सहज योग रत होय।🌷

💐ब्रह्मविधा के बोध बिना, जप-तप, पुजा-पाठ।🌷
यग ,दान ,व्रत ,नियम , यह सब उकटा काठ। ब्रह्मविधा से हीन वे, अग्यानी जड नीच।
वाक्य सर्वथा त्यागिय, जानिए वे दुख मीच।

💐अर्थात:–ब्रह्मविधा के बोध बिना आप और हम सब लोग कुछ भी जप, तप,पुजा-पाठ, हवन , व्रत, दान और कितने भी शुभ कार्य कर ले। वो सब के सब सुखी लकडी के समान ही है। जैसे सुखी लकडी केवल और केवल जलाने के ही काम आती है।सुखी लकडी कभी भी हमे फल,फूल या सुगंध और छाया आदि कुछ भी नही दे सकती।
और ब्रह्मविधा के बोध बिना हम लोग जो भी भक्ति करते है। वह भक्ति भी कोवे की बीठ और मल-मूत्र के समान बेकार और नीच समझ कर इनका त्याग कर देना चाहिए।

अगर किसी भी भगत जी को और किसी भी जीव को अपने मन और आत्मा का आसन करना है। और इनको शुद्ध करके शांत करना है। और सार शब्द का लखाव करके जन्म और मरण से मुक्त होना है।

तो फिर लोगौ को पूर्ण ब्रह्मनिषठ सदगुरू से ब्रह्मविधा विहंगम योग की दीक्षा लेनी ही लेनी होगी। तभी आपका और हमारा कल्याण हो सकता है।वरना लख-चौरासी की टिकट सुरक्षित है।आप कभी उस लख-चौरासी की गाडी मे यात्रा कर सकते हो।🌷

🙏🙏🌹 नित्य-अनादि सदगुरू बंदीछौर कबीर साहब को शत शत नमन 🌹🌺 🌹

एस के शर्मा, अंबाला

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