संपादकीय
कोरोना संक्रमण के साथ ही लोग महंगाई की मार झेल रहे है। पेट्रोल-डीजल के दाम तो आसमान छू ही रहे थे। अब एक बार फिर रसोई गैस के घरेलू सिलिंडर की कीमत पच्चीस रुपए बढ़ोत्तरी ने लोगों की कमर तोड़ दी है। लोगों के घर का बजट बिगड़ गया है। घरेलू गैस सिलेंडर पर अभी 15 दिन पहले ही 25 रुपये बढ़ें थे। राजधानी दिल्ली में अब रसोई गैस के घरेलू सिलिंडर की कीमत आठ सौ चौरासी रुपए पचास पैसे हो गई है। वहीं के कुछ शहरों में इसके लिए लोगों को 947 रुपए चुकाने पड़ेंगे। इसी तरह वाणिज्यिक सिलिंडर की कीमत में 75 रुपए की बढ़ोतरी की गई है। लगता है, सरकार को ईंधन की बढ़ती कीमतों की कोई परवाह नहीं है।
कोरोना काल में काम-धंधे बंद हो जाने, रोजगार छिन जाने की वजह से बहुत सारे लोगों के लिए दो वक्त का भोजन जुटाना मुश्किल है। मुफ्त सरकारी राशन पर निर्भर हो गए हैं। वे भला रसोई गैस खरीदने की हिम्मत कैसे जुटा पाएंगे। इस तरह रसोई गैस की मांग भी कोई खास नहीं बढ़ी है। फिर भी सरकार इसकी कीमत पर काबू नहीं पा रही। रसोई गैस की कीमत बढ़ने से न केवल परिवारों का मासिक खर्च बढ़ जाता है, बल्कि बहुत सारी चीजों की कीमत पर भी इसका असर पड़ता है।
वाणिज्यिक सिलिंडर का उपयोग बहुत सारे होटल, रेस्तरां, रेहड़ी-पटरी पर कारोबार करने वाले लोगों के अलावा कल-कारखाने भी करते हैं। जब गैस की कीमत बढ़ती है, तो वस्तुओं की उत्पादन लागत भी बढ़ जाती है। पेट्रोल, डीजल की कीमतें बढ़ने से पहले ही माल ढुलाई महंगी हो गई है। ऐसे में वस्तुओं की कीमतों पर नियंत्रण पाना मुश्किल बना हुआ है। मगर पिछले दिनों जिस तरह वित्तमंत्री ने ईंधन की बढ़ती कीमतों का दोष कांग्रेस सरकार के ऊपर मढ़ दिया है। वित्त मंत्री ने कहा था कि कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में तेल कम्पनियों का बकाया राशि का भुगतान भाजपा सरकार कर रही है। इससे जाहिर हो गया कि उनकी चिंता के केंद्र में महंगाई कहीं नहीं है। अगर सरकार इसी तरह व्यावहारिक उपाय तलाशने के बजाय अपनी जिम्मेदारी से बचती रहेगी, तो आने वाले दिनों में ये समस्याएं और बढ़ेंगी।
भाजपा सरकार ने अपने पिछले कार्यकाल में उज्ज्वला योजना के तहत हर गरीब परिवार को मुफ्त गैस सिलिंडर उपलब्ध कराए थे और दावा किया गया था कि अब इससे गृहिणियों के स्वास्थ्य पर बुरा असर नहीं पड़ेगा। उसी दौरान प्रधानमंत्री ने लोगों से अपील की थी कि वे स्वेच्छा से जो रसोई गैस पर मिलने वाली सब्सिडी छोड़ें सकता है। वह छोड़े। जिससे गरीब परिवारों को उसका लाभ पहुंचाया जा सके। जिससके बाद लाखों लोगों ने सब्सिडी छोड़ दी थी। भाजपा सरकार ने अपने दूसरे कार्यकाल में उज्ज्वला योजना-2 की शुरुआत की है। इस तरह ज्यादातर परिवार अब सब्सिडी वाले सिलिंडर नहीं लेते। जब सिलिंडर की कीमत साढ़े पांच सौ रुपए थी, तब तक तो सबसिडी मिला करती थी, पर अब सरकार उसके बोझ से मुक्त है। उधर जिन गरीब परिवारों को उज्ज्वला योजना के तहत सिलिंडर उपलब्ध कराए गए थे, उनकी क्षमता उनमें गैस भराने की नहीं रह गई है।
विनीत तिवारी, लखनऊ