• देश में आवश्यकता के मुकाबले महज 10 फीसदी लोगों का समय से हो पाता है ट्रांसप्लांट
• शराब, डायबिटीज, मोटापे आदि के चलते नही मिल पाता समय से स्वस्थ लिवर
• स्वस्थ व्यक्ति और नजदीकी रिश्तेदार का लिवर मिलने से रिकवरी जल्दी होती है
लखनऊ 8 सितंबर 2021: अपनी स्थापना के बाद से अपोलोमेडिक्स सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल लखनऊ निरंतर नई और अल्ट्रा मॉडर्न मेडिकल टेक्नोलॉजी से मरीजों को नया जीवनदान दे रहा है। इसी कड़ी में अपोलोमेडिक्स अब एनसीआर के बाद लिविंग डोनर लिवर ट्रांसप्लांट करने वाला यूपी का पहला अस्पताल है। लिवर ट्रांसप्लांट के लिए लाइसेंस हासिल करने के बाद यहां दूसरी लिविंग डोनर ट्रांसप्लांट सर्जरी हुई। हाल ही में 45 वर्षीय लिवर के मरीज की जान लिविंग डोनर ट्रांसप्लांट के जरिये बचाई गई, इस व्यक्ति को लिवर डोनेट करने वाला उनका पुत्र है।
अपोलोमेडिक्स सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल के सीईओ और एमडी डॉ मयंक सोमानी लगातार दूसरी सफल लिविंग डोनर लिवर ट्रांसप्लांट की सफलता से काफी उत्साहित है और कहते हैं, “हमे इस बात की खुशी है कि हमारी टीम लखनऊ, आसपास और पड़ोसी राज्यों के लोगों को एक छत के नीचे ही अल्ट्रा मॉडर्न मेडिकल टेक्नोलॉजी से लैस स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध करा रही है। अपोलोमेडिक्स सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल कोविड प्रोटोकॉल का कड़ाई से पालन करते हुए मरीजों को स्वास्थ्य लाभ पहुंचा रहा है। हमने कई असंभव से लगने वाले केसेज में भी मरीज की जान बचाई है। लगातार दूसरी बार लिविंग डोनर लिवर ट्रांसप्लांट करने के लिए मैं डॉ आशीष कुमार मिश्रा, डॉ सुहांग वर्मा, डॉ वलीउल्लाह, डॉ राजीव रंजन, और उनकी टीम को बधाई और शुभकामनाएं देता हूं और उम्मीद करता हूँ कि हमारी टीम इसी तरह लोगों की उम्मीदों पर हमेशा खरी उतरती रहेगी। मैं सभी से अपील करूँगा कि अपनी दिनचर्या में स्वस्थ खानपान, नियमित व्यायाम और कोविड से बचाव के जरूरी उपाय अवश्य शामिल करें ताकि सभी स्वस्थ रहें और दीर्घायु हों।”
डॉ आशीष कुमार मिश्र, कंसलटेंट, लीवर ट्रांसप्लांट एंड एचपीबी सर्जरीज, अपोलोमेडिक्स सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल ने बताया, “शराब के सेवन की अधिकता, डायबिटीज और मोटापे की बढ़ती प्रवृति से न केवल लिवर के मरीजों की संख्या बढ़ रही है बल्कि स्वस्थ लिविंग डोनर भी मिलने में मुश्किलें आती है। एक अनुमान के मुताबिक प्रतिवर्ष 40 से 50 हजार लिवर के मरीजों को लिवर ट्रांसप्लांट की आवश्यकता होती है। लेकिन स्वस्थ लिविंग डोनर या कैडेवर से स्वस्थ लिवर न मिल पाने के चलते जरूरत के हिसाब से मुश्किल से 10 फीसदी मरीजों का ही ट्रांसप्लांट संभव हो पाता है। कई बार लिविंग डोनर को भी कुछ समय तक मेडिकल सुपरविजन में रखना पड़ता है ताकि ट्रांप्लान्ट के लिए उसका लिवर पूरी तरह स्वस्थ हो जाए। यह आंकड़े अस्पतालों में रजिस्टर होने वाले मरीजों के आधार पर हैं, जबकि सुदूर ग्रामीण इलाकों या चिकित्सा सेवा से वंचित क्षेत्रों में कई मामले संज्ञान में ही नही आते।”
लिविंग डोनर ट्रांसप्लांट सर्जरी के विषय मे डॉ मिश्र ने बताया, ” अपोलोमेडिक्स हॉस्पिटल में 45 वर्षीय विकट सिंह का सफल लिवर ट्रांसप्लांट किया गया। वे बेहद गंभीर हालत में अपोलोमेडिक्स लाये गए थे। वे लगभग बेहोशी की हालत में थे । लिवर इतना खराब हो चुका था कि उसका असर उनके दिमाग, फेफड़े और किडनी पर पड़ने लगा था। इस कंडीशन को मेडिकल भाषा में एन्सेफ्लोपैथी कहा जाता है। वे काफी जगह इलाज करवा चुके थे लेकिन हालत में सुधार नहीं आया बल्कि स्थिति और बिगड़ती चली गईं।”
डॉ मिश्रा ने बताया कि उनका बेटा लिवर डोनेट करने को तैयार हुआ। इसके बाद हमने ट्रांसप्लांट करने के लिए बेटे के लिवर से 60 से 65 हिस्से का लोब लिया। मरीज के ट्रांसप्लांट की सर्जरी 16 से 17 घंटे चली थी, वहीं डोनर की सर्जरी 6 से 7 घंटे चली। ट्रांसप्लांट के बाद मरीज और डोनर दोनों को ऑब्जर्वेशन में रखा गया। लगातार दूसरा सफल लिविंग डोनर लिवर ट्रांसप्लांट करने वाला अपोलोमेडिक्स सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल इलाके का पहला प्राइवेट हॉस्पिटल बन गया है।
डॉ सुहांग वर्मा ने बताया कि लिवर ट्रांसप्लांट दो विधियों से होता है, एक कैडेबर लिवर ट्रांसप्लांट, जिसमे मृत व्यक्ति का लिवर मरीज को लगाया जाता है। लिविंग डोनर ट्रांसप्लांट जीवित व्यक्ति या रिश्तेदार का लिवर का लगभग एक तिहाई हिस्सा निकालकर मरीज के शरीर मे ट्रांसप्लांट किया जाता है। डोनर का लिवर महज कुछ महीनों में वापस अपने वास्तविक आकार में वृद्धि कर जाता है। डोनर के शरीर पर इसका कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ता, केवल कुछ समय तक डॉक्टरों द्वारा बताई गई सावधानियां बरतनी पड़ती हैं।
डॉ वलीउल्लाह के अनुसार, “लिवर सिरोसिस की वजह से ट्रांसप्लांट की सबसे ज्यादा जरूरत पड़ती है। लिवर सिरोसिस कई कारणों से होता है, जिसमें मुख्यत: खानपान में लापरवाही या कोई गम्भीर बीमारी शामिल है। लिवर डोनेट करने को लेकर समाज मे कई भ्रांतियां हैं जिसके कारण लिवर डोनर मिलने में कई बार दिक्कतें आती हैं। लिविंग डोनर के लिए लिवर डोनेट करना बिल्कुल भी हानिकारक नही है, 4 से 6 हफ्ते में ही लिवर अपने वास्तविक आकार में दोबारा विकसित हो जाता है।”