नई दिल्ली, एएनआइ। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि राज्य सरकारें वर्तमान और पूर्व सांसदों और विधायकों के खिलाफ किसी भी आपराधिक मामले को राज्य उच्च न्यायालयों के पूर्व आदेश के बिना वापस नहीं ले सकती हैं। यह टिप्पणी भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) नुथलापति वेंकट रमना की अध्यक्षता में सर्वोच्च न्यायालय की तीन-न्यायाधीशों की पीठ और न्यायमूर्ति सूर्यकांत और विनीत सरन द्वारा की गई।
सीजेआई रमामा ने मामले में स्टेटस रिपोर्ट दाखिल नहीं करने के लिए सीबीआई (केंद्रीय जांच ब्यूरो) को भी फटकार लगाई। सीबीआई द्वारा स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने में विफल रहने पर नाराजगी व्यक्त करने के बाद सीजेआई ने कहा, ‘रिपोर्ट क्यों नहीं दर्ज कराई गई? जब यह मामला शुरू हुआ, तो हमें विश्वास है कि सरकार इस मुद्दे को लेकर बहुत गंभीर है और कुछ करना चाहती है। लेकिन कुछ नहीं हुआ है। अभी तक कोई प्रगति नहीं हुई है। जब आप (सीबीआई) स्टेटस रिपोर्ट दाखिल करने से भी कतराते हैं, तो आप हमसे क्या कहने की उम्मीद कर सकते हैं?
शीर्ष अदालत वकील और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेता अश्विनी कुमार उपाध्याय द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें दोषी विधायकों और सांसदों को आजीवन चुनाव लड़ने और विशेष अदालतें स्थापित करने और उनके खिलाफ मामलों के त्वरित निपटान के लिए निर्देश देने की मांग की गई थी।
वरिष्ठ वकील, विजय हंसरिया, जो इस मामले में न्याय मित्र (अदालत के मित्र) हैं, ने सर्वोच्च न्यायालय को प्रस्तुत किया कि उन्हें प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) से स्थिति रिपोर्ट मिली थी, लेकिन सीबीआई से नहीं। इस पर, सीबीआई की ओर से सॉलिसिटर जनरल (एसजी) तुषार मेहता ने स्पष्ट किया कि उन्होंने अभी तक रिपोर्ट दर्ज नहीं की है और इसे दायर करने के लिए और समय मांगा है।