नई दिल्ली। गुजरात हाई कोर्ट द्वारा दो बिल्डरों को प्रदान की गई अग्रिम जमानत पर रोक लगाने से सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को इन्कार कर दिया। दोनों बिल्डरों पर अनुसूचित जनजाति के लोगों के खिलाफ अत्याचार और उनकी जमीन कब्जाने के आरोप है। प्रधान न्यायाधीश जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस एएम खानविल्कर और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचारों की रोकथाम) अधिनियम के तहत हाई कोर्ट के आदेश को खारिज करने संबंधी याचिका पर आरोपितों और गुजरात सरकार को नोटिस जारी किया है।
याचिकाकर्ता अर्जुन शंकर भाई राठौर की ओर से पेश वरिष्ठ वकील दुष्यंत दवे ने कहा कि उनका मुवक्किल अनुसूचित जनजाति का है और बिल्डरों ने जाली पावर ऑफ अटॉर्नी के जरिये अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित जमीन उनसे हड़प ली। उन्होंने दलील दी कि दोनों बिल्डरों को अग्रिम जमानत गलत तरीके से प्रदान की गई है। इस पर सर्वोच्च अदालत ने कहा कि वह इस मामले में हाई कोर्ट द्वारा अग्रिम जमानत प्रदान किए जाने के औचित्य पर ही विचार करेगी।
बता दें कि हाई कोर्ट ने 22 मार्च को सुप्रीम कोर्ट के ही 20 मार्च के आदेश के मुताबिक आरोपितों को अग्रिम जमानत प्रदान की थी। सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचारों की रोकथाम) अधिनियम के प्रावधानों को शिथिल करते हुए अदालतों को ऐसे मामलों में अग्रिम जमानत देने की अनुमति प्रदान कर दी थी।