नई दिल्ली, एजेंसी। 12वीं कक्षा के बाद उच्च शिक्षा में दाखिले की रेस में बढ़ती प्रतिस्पर्धा के चलते सरकार मॉडरेशन मार्क्स या ग्रेस मार्क्स की पॉलिसी को खत्म करने की तैयारी कर रही है। एचआरडी मिनिस्ट्री देशभर के राज्य शिक्षा बोर्ड और सीबीएसई से इस संबंध में बैठक में चर्चा करेगी। यदि विभिन्न शिक्षा बोर्ड को ये सुझाव पसंद आता है तो दिल्ली विश्वविद्यालय समेत अन्य विश्वविद्यालयों की सौ फीसदी कटऑफ पर विराम लग जाएगा।
सूत्रों के मुताबिक देशभर में छात्रों के बीच दाखिले के लिए बढ़ते तनाव को देखते हुए इस पॉलिसी को खत्म करने की तैयारी है। मंत्रालय इस मामले में पिछले सिंतबर में सीबीएसई समेत विभिन्न शिक्षा बोर्ड से उनकी राय मांग रहा है। 24 अप्रैल को आयोजित होने वाली यह तीसरी बैठक है।
मॉडरेशन मार्क्स या ग्रेस मार्क्स विभिन्न शिक्षा बोर्ड छात्रों को दस से पंद्रह मार्क्स के तहत देता है। इन मार्क्स को देने के चलते छात्र विश्वविद्यालयों में दाखिले की रेस में आगे बढ़ते हैं और इन्हीं मार्क्स से राहत के चलते डीयू समेत अन्य विश्वविद्यालयों का कटऑफ हाई हो जाता है। अधिकतर बोर्ड 75 फीसदी से ऊपर के छात्रों को यह मार्क्स देते हैं, जिसके बाद उनके मार्क्स में बढ़ोतरी हो जाती है।
राज्य और केंद्र सरकार के बीच सहमति
यदि इस बैठक में राज्यों और केंद्र सरकार के बीच सहमति बन जाती है तो आम एवरेज वाले छात्रों को भी बड़े विश्वविद्यालयों में दाखिला लेने का सपना पूरा हो जाएगा। इस पॉलिसी को खत्म करने से छात्रों का हाई कट-ऑफ का तनाव भी कम हो जाएगा। आपको बता दें कि सीबीएसई इस मामले में सरकार के साथ है लेकिन जब तक राज्य शिक्षा बोर्ड सहयोग नहीं देंगे, इस पॉलिसी को खत्म करने से कोई लाभ नहीं होगा।
पिछले सत्र डीयू में दाखिले के दौरान श्रीराम कॉलेज ऑफ कॉमर्स में तमिलनाडू के छात्रों को सबसे अधिक सीट मिली थी। क्योंकि इन सभी छात्रों को मॉडरेशन मार्क्स का लाभ मिला था। वहीं, मंत्रालय ने पिछले दिनों राज्यसभा में एक सवाल के जवाब में बताया था कि डीयू के कॉलेज में दक्षिण के भारतीय विद्या भवन स्कूल के 33 छात्रों को डीयू में दाखिला मिला था, जो कि ग्रेस मार्क्स के चलते हुआ था। इन्हीं मॉर्क्स के चलते आईआईटी जैसे संस्थानों में छात्रों को लाभ होता है, हालांकि आम एवरेज छात्र पिछड़ जाते हैं।