लखनऊ, मो इरफान शाहिद। गाय का खयाल रखना उनको सम्मान देना उनके प्रति आदर का भाव रखना ये सब तब बेमानी लगता है जब हमको गाय या यूं कहें कि ऐसे पशुओं से कोई हानि पहुंचती है तब आप सब शायद मेरी बात से सहमत होंगे कि हमारी सरकारें ऐसे सड़क पर घूम रही गाय को लेकर बोलने में जितनी संवेदनशील दिखती है क्या वास्तव में वो है? इसपे एक बड़ा सवालिया निशान इसलिए लगता है कि यही गाय हमको कई बार ऐसे ज़ख्म दे जाती है जो शायद किसी के लिए भुला पाना भी मुश्किल हो जाता है इसका कारण जो मेरी समझ मे आ रहा है वो ये है कि हमारी सरकारें उनके रखरखाव पर लाखों खर्च करने वाली योजनाएं तो बना डालती हैं पर उनको सही मोकामा पर कैसे ले जाएं शायद इसका उन्हें इल्म नही रहता।
आप सबके साथ भी शायद ऐसा होता हो कि जब आप अपनी बाइक से कुछ खरीदारी करने निकले और कुछ सामान आपने अपनी दिग्गी में डाल रखा हो तभी अचानक से कोई गाय आकर आपके सामन को तितर बितर कर देती है और आप सिवाय हट हट कहने के कुछ नही कर पाते।
ये तो चलिए सामान के नुकसान की बात हुई जो ठीक है होता है कोई बड़ी बात नही पर बड़ी बात ये दिखाई देती है कि जब आप सड़क पर अपने वाहन से जा रहे हो और रास्ते पे गाय का झुंड खड़ा हो और वो आपस मे भीड़ रही हो तो कब वो आपकी तरफ आ जाये इसका कोई भरोसा नही लेकिन यहां सिर्फ गाय ही नही बल्कि सांड भी उस झुंड में शामिल होते है जिनके कारण ही हमारा आपका नुकसान होता है नुकसान भी कोई छोटा नही कहिए कि अचानक ये आपस के झगड़े को छोड़ कर आपको ही निशाना बना लें कोई भरोसा नही इनका यही वजह है कि राहगीर इन्हें दूर से देख कर ही सुरक्छित स्थान तलाशने लगता है और जो ऐसा नही कर पाता वो ऊपरवाले को याद करता है।
ऊपर जिन दो घटनाओं का ज़िक्र किया है उससे आप सभी सहमत होंगे ऐसा मुझे लगता है तो अब आप ही बताइये कि गाय या अन्य पशुओं के हित की बात करने वाली सरकार और उसका विभाग ऐसी घटनाओं पर क्यों नही कुछ कर पाता क्या आवारा पशु कह देने से ही काम खत्म हो जाता है अगर हां तो इनके संरक्षण की बात करना और उसपे बाकायदा मोटा खर्चा करना आप कहाँ तक सही मानते हैं आप ही बताइये? आपको सवाल के साथ छोड़ रहा हूँ जवाब तलाशने की कोशिश मेरे साथ आप लोग भी तो करिये क्योंकि मामला गंभीर है।