मानव जीवन और पर्यावरण को हमेशा से ही एक दूसरे का पूरक कहा जाता है। बगैर पर्यावरण के हम जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते हैं। आज दुनिया भर में ग्लोबल वार्मिंग एक प्रमुख पर्यावरणीय मुद्दा बनते जा रहा है। विश्व अर्थ दिवस भी पर्यावरण के प्रति जागरूकता पैदा करता है।
नई दिल्ली: पर्यावरण प्रेमी, पर्यावरण संरक्षण के प्रति अपनी प्रतिबद्धता जाहिर करने के लिए समर्थन प्रदर्शित करते हैं। 22 अप्रैल 1970 को पहली बार दुनिया में विश्व पृथ्वी दिवस मनाया गया था और इस मौके पर लगभग 20 लाख अमेरिकी लोगों ने, एक स्वस्थ, स्थायी पर्यावरण के लक्ष्य के साथ भाग लिया। पृथ्वी दिवस अमेरिका और दुनिया में लोकप्रिय साबित हुआ। 1990 में 22 अप्रैल के दिन पूरी दुनिया में पुनः चक्रीकरण के प्रयासों की सराहना की गई तथा रियो डी जेनेरियो में 1992 के यूएन पृथ्वी सम्मलेन के लिए मार्ग प्रशस्त किया। पृथ्वी दिवस के नेटवर्क के माध्यम से, कार्यकर्ता राष्ट्रीय, स्थानीय और वैश्विक नीतियों में हुए बदलावों को आपस में जोड़ सकते हैं।
प्रतिवर्ष 22 अप्रैल को मनाए जाने वाले पृथ्वी दिवस (अर्थ डे) की शुरुआत एक अमेरिकी सीनेटर गेलॉर्ड नेल्सन ने की थी। 1969 में सांता बारबरा, कैलिफोर्निया में तेल रिसाव की भारी बर्बादी को देखने के बाद उन्होंने इसकी शुरूआत की थी। 1970 से 1990 तक यह पूरे विश्व में फैल गया और 1990 से इसे अंतरराष्ट्रीय दिवस के रुप में मनाया जाने लगा। यह एक ऐसा कार्यक्रम है जिसे प्रतिवर्ष अरबों लोग मनाते हैं और यह शायद उन कार्यक्रमों में से एक है जिसे सर्वाधिक तौर पर मनाया जाता है।
औद्योगीकरण के बाद कार्बन डाई आक्साइड का उत्सर्जन पिछले 15 सालों में कई गुना बढ़ गया है। इन गैसों का उत्सर्जन आम प्रयोग के उपकरणों, फ्रिज, कंप्यूटर, स्कूटर, कार आदि से है।
इस समय विश्व में प्रतिवर्ष 10 करोड़ टन से ज्यादा प्लास्टिक का उत्पादन हो रहा है जिसमें लगातार बढ़ोत्तरी हो रही है। भारत भी इससे अछूता नहीं रहा है। प्लास्टिक न केवल हमारे लिए बल्कि पूरे समुद्री और थलीय प्राणी भी इसके प्रभाव से अछूते नहीं रहे हैं।
ग्रीन हाउस गैसें भी अंततः ग्लोबल वार्मिंग के लिए जिम्मेदार होती हैं। इनमें नाइट्रस आक्साइड, मीथेन, क्लोरो-फ्लोरो कार्बन, वाष्प, ओजोन शामिल हैं।
मौसम चक्र में हो रहे लगातार बदलाव से पर्यावरण पर लगातार खतरा मंडरा रहा है । पूरे विश्व में गर्मियां लंबी होती जा रही हैं, और सर्दियां छोटी।
हम भी दे सकते हैं योगदान
जी हां, पृथ्वी दिवस में एक आम नागरिक भी अपना एक छोटा किंतु महत्वपूर्ण योगदान दे सकता है। जिस तरह से आज हर तरह से प्रकृति का दोहन जारी है उससे वैश्विक स्तर पर हमारे भविष्य के लिए चिंता होना स्वाभाविक है। जिस तरह से शहरीकरण बढ रहा है और पेड़ों का अंधाधुंध कटान जारी है उससे ग्लोबल वार्मिंग आज एक वैश्विक संकट बनते जा रहा है। हम खुद के जरिए भी इसमें योगदान दे सकते हैं। जैसे- वृक्षारोपण कर, प्लास्टिक को ना कह कर, ईंधन से चलने वाले वाहनों का न्यूनतम प्रयोग कर आदि। प्राकृतिक संसाधनों का जिस तरह से दोहन हो रहा है वो खुद हमारे ही भविष्य पर संकट खड़े कर रहा है। इसलिए ध्यान रखिए कि पृथ्वी दिवस को एक ही दिन नही बल्कि हर रोज मनाने की जरूरत है।