नई दिल्ली। पांच साल के दौरान स्कूलों में मिड डे मील के 90 प्रतिशत नमूने फेल हो गए। इसके बावजूद कार्रवाई के नाम पर जुर्माना लगाकर औपचारिकता पूरी की जाती रही। समय रहते कार्रवाई होती तो शायद दो दिन पहले देवली के एक स्कूल में वितरण के लिए लाए गए मिड डे मील में चूहे मिलने जैसी घटना नहीं होती।
दिल्ली सरकार के शिक्षा निदेशालय के आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2010 से वर्ष 2014 तक 2244 सैंपल लिए, जिनमें से 1995 फेल हुए। पांच वर्ष में 48 लाख रुपये से ज्यादा की राशि मिड डे मील आपूर्तिकर्ताओं को दी गई।निदेशालय के अनुसार वर्ष 2010 में जांच के लिए भेजे 352 नमूनों में से 333 फेल हुए। 2011 में 585 में से 541 सैंपल, 2012 में 559 नमूने लिए गए, जिनमें से 500 फेल हुए। वर्ष 2013 में 626 सैंपल लिए गए, जिनमें से 502 फेल हुए। वर्ष 2014 में केवल 142 नमूने ही लिए गए। इनमें से भी 119 फेल हो गए।
निदेशालय ने अवगत कराया है कि जिन आपूर्तिकर्ताओं के सैंपल फेल हुए उन पर नियमानुसार जुर्माना लगाया। सूत्रों के मुताबिक जुर्माना अलग से लेने के बजाय आपूर्ति कर्ता को किए जाने वाले भुगतान से ही काटा गया। निदेशालय ने घटिया मिड डे मील देने वालों के खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई करने के बजाय वर्ष 2014 के बाद कितने नमूने लिए और कितने फेल हुए, इसकी जानकारी देने में ही आनाकानी शुरू कर दी।
आरटीआइ कार्यकर्ता राजहंस बंसल ने इसके लिए सूचना के अधिकार का इस्तेमाल किया। सात माह में तीन रिमाइंडर भी भेजे, लेकिन कोई जवाब देने के बजाय विभाग ने चुप्पी साध ली है। मिड डे मील की गुणवत्ता को लेकर लगातार वरिष्ठ अधिकारियों को अवगत करा रहा हूं। 21 जनवरी, 2015 एवं 28 फरवरी, 2016 को मैंने अपराध निरोधक शाखा को लिखित में शिकायत देकर दोषियों के खिलाफ मामला दर्ज कर एक्शन टेकन रिपोर्ट देने का आग्रह किया, मगर कुछ नहीं हुआ।
अब शिक्षा निदेशालय से पिछले दो साल के दौरान लिए गए नमूने ओर उनके नतीजे की रिपोर्ट आरटीआइ के तहत मांगी। तीन बार रिमाइंडर भी भेजे हैं, लेकिन अब वे कोई जवाब देने को तैयार नहीं हैं।