इरफान शाहिद NOI।
देश मे जान का खतरा हम सबको है कोरोना वायरस कब किसको अपना शिकार बना ले कहा नही जा सकता इसी के मद्देनजर देश मे लाकडाउन की घोषणा भी की जा चुकी है खुद हमारे देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाथ जोड़कर लोगो से निवेदन किया था कि वो 14 अप्रैल तक अपने घर से ना निकलें उन्होंने तो यहां तक कहा कि राज्य सरकारें ये सुनिश्चित करें कि सभी लोगो के घर घर ज़रूरी सामान पहुंचाया जाए लेकिन दिल्ली में जो हुआ उसको देख के आंसू आ गए।
आंसू इसलिए आये क्योंकि पलायन का ऐसा दर्शय बटवारे के बाद पहली बार दिखा जहां लोगों की आंखों में आंसू थे गोद मे मासूम था और कांधे पर अपना सामान लिए ये सभी लोग अपने घर जाने को आतुर हैं क्योंकि उन्होंने देख लिया कि सरकारी कथनी और करनी में बहुत ज़्यादा अंतर है और यही वो अंतर है जो उन्हें जान जाने के डर के बावजूद दर बदर होने को मजबूर कर रहा है।यहां हम दिल्ली में ही बदइंतज़ामी की बात करें तो ये गलत होगा क्योंकि यूपी और अन्य राज्य भी इससे अछूते नही हैं।
दिल्ली से जा रहे लोगों ने कहा कि 4 दिन से उन्हें खाने को नही मिला तो वो घर ना जाये तो क्या यही भूख से मर जाये जबकि वहां की सरकार कहती है कि लाखों लोगों के खाने और रहने की व्यवस्था की गई है बताइये अगर व्यवस्था होती तो क्या पलायन करने वाला वर्ग पागल है जो अपनी जान को जोखिम में डालेगा।
अब यूपी में आइए यहां के मुख्यमंत्री जी ने कहा था कि कोई भी अपने घर से बाहर नही निकलेगा सबके घर सब्ज़ी दूध व ज़रूरी सामान पहुंचेगा लेकिन ज़मीनी हक़ीक़त इससे बिल्कुल जुदा है यहां खाने का सामान तो क्या मोहल्ले को सेनिटाइज तक नही किया जा रहा राशन लेने निकलो तो दुकानदार लुटता हुआ नजर आता है मजबूरी का फायदा उठवाना हमारी लाचारी बन गया है क्योंकि खाएंगे नही तो जिएंगे कैसे।
तो यहां बस बताना यही था कि खबर में ऊंची ऊंची बातें करने वाली हमारी सरकारें वास्तव में उस बात पर बिल्कुल भी अमल नही करती जिनकी उनको ज़िम्मेवारी दी जाती है एक अकेले प्रधानमंत्री की आवाज़ पे जब सारा देश जनता कर्फ्यू को सफल बना सकता है तो 21 दिन का लाकडाउन क्या चीज़ है बशर्ते राज्य सरकार केंद्र सरकार से लिए गए पौसों का सही इस्तेमाल तो करे।केवल और केवल बयानबाज़ी से ज़िन्दगी नही संभलती पर हां शायद कुर्सी ज़रूर संभल सकती है जो बात हमरी सरकारें बेहतर तरीके से जानती हैं तभी तो ये खेल खेलती हैं।