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Friday, December 27, 2024

सपा-कांग्रेस के गठबंधन में उड़ जाएगी भाजपा, न यकीन हो तो देखें ये आंकड़े

लखनऊ, NOI । वर्ष 2012 के चुनाव में सहारनपुर की नकुड़ सीट पर 84,498 वोट लेकर भी कांग्रेस के इमरान मसूद, बसपा के धर्मसिंह सैनी से चार हजार से ज्यादा वोटों से हार गए थे। यहां सपा के फिरोज आफताब को 29 हजार से अधिक मत मिले थे। यदि उनके वोट जोड़ दिए जाएं तो इमरान बड़े अंतर से चुनाव जीत जाते।
यह स्थिति अकेले नकुड़ नहीं, सहारनपुर जिले की नगर, सहारनपुर, रामपुर मनिहारन समेत अधिकतर सीटों पर थी। सहारनपुर ही क्यों, प्रदेश में ऐसी सीटों की संख्या दो दर्जन से ज्यादा है, जहां सपा और कांग्रेस के वोट मिलकर चुनाव का नतीजा बदल सकते थे।

मौजूदा चुनाव में सपा और कांग्रेस का गठबंधन वोटों के इसी गणित को ध्यान में रखकर किया गया है। राजनीतिक प्रेक्षक मानते हैं कि दोनों दलों के वोट एक-दूसरे को ट्रांसफर हो जाएं तो चुनाव में चौंकाने वाले परिणाम आ सकते हैं। हालांकि उनका कहना है कि गठबंधन तभी लाभदायक होता है जब जमीनी स्तर पर इसका माहौल बना हो।

कांग्रेस-सपा गठबंधन की दो है प्रमुख वजहें

सपा ने 2012 के विधानसभा चुनाव में पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई थी लेकिन 2017 आते-आते उसे गठबंधन की जरूरत महसूस होने लगी। सपा ने कांग्रेस को गठबंधन में लगभग 100 सीटें दी हैं। इस गठबंधन की दो प्रमुख वजह मानी जा रही है।

पहली, 19 फीसदी से ज्यादा मुस्लिम वोटों को सहेजने की कोशिश, जिन पर मायावती मजबूती से दावा जता रही हैं। दो सेकुलर दलों की दोस्ती से मुसलमानों में यह विश्वास पैदा करने की कोशिश की गई है कि वे ही प्रदेश में भाजपा का विकल्प हैं। दूसरी, एक-दूसरे के वोटों को ट्रांसफर कराकर सीटों की संख्या बढ़ाना।

कांग्रेस को 2012 के विधानसभा चुनाव में 29.15 प्रतिशत और कांग्रेस को 11.63 फीसदी वोट मिले थे। यदि इनके वोट जोड़ दिए जाएं तो 40.78 प्रतिशत बैठते हैं। 2017 के चुनाव में इस वोट बैंक में कुछ कमी आए तो भी सत्ता का रास्ता नहीं रुकेगा।

प्रदेश में पिछली कई सरकारें 30 प्रतिशत के आसपास वोट लेकर बनी हैं। वोट बैंक में एक से डेढ़ प्रतिशत की कमी या बढ़ोतरी सीटों में बड़ा अंतर पैदा कर देती है। गठबंधन से इस वोट बैंक को बढ़ाया जा सकता है।

पहले भी कारगर रहे हैं गठबंधन

विधानसभा चुनाव 1993 : सपा-बसपा गठबंधन सत्ता पर हुआ काबिज
1993 के विधानसभा चुनाव में सपा ने पहली बार बसपा के साथ गठबंधन किया था। यह प्रयोग सफल रहा। तब उत्तराखंड नहीं बना था। सपा 256 और बसपा 164 सीटों पर चुनाव लड़ी थी।

दोनों का वोट बैंक मिला तो उन्होंने क्रमश: 109 व 67 सीटें जीतीं। उनका वोट प्रतिशत क्रमश: 19.94 और 11.12 फीसदी रहा। यानी 33.30 प्रतिशत वोट मिला। सपा-बसपा की गठबंधन सरकार में मुलायम सिंह सीएम बने थे।

विधानसभा चुनाव 1996 : सफल नहीं रहा कांग्रेस-बसपा का मेल
1996 के विधानसभा चुनाव में बसपा और कांग्रेस ने गठबंधन करके चुनाव लड़ा। बसपा 296 और कांग्रेस 126 सीटों पर लड़ी, लेकिन उन्हें क्रमश: 67 व 33 सीटें ही मिल पाईं।

लोकसभा चुनाव 2014 : भाजपा-अपना दल का रहा जलवा
2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने अपना दल के साथ गठबंधन किया था। 42.3 फीसदी वोट शेयर के साथ उन्हें लोकसभा की 73 सीटें मिलीं। उस चुनाव में भाजपा ने 328 विधानसभा सीटोंऔर अपना दल ने 9 विधानसभा सीटों पर बढ़त बनाई थी। इसे दोहराना भाजपा के लिए चुनौती है।

ऐसी सीटों पर बदल जाते हैं चुनावी नतीजे

वाराणसी कैंट : भाजपा की ज्योत्सना श्रीवास्तव 57918 (विजयी), कांग्रेस के अनिल श्रीवास्तव 45066 और सपा के अशफाक अहमद डबलू 37922

तिलहर (शाहजहांपुर): भाजपा के रोशनलाल वर्मा 71122 (विजयी), सपा के अनवर अली उर्फ जकीउर्रहमान 60415, कांग्रेस की सुनीत कोविद 37137

सिकंदराबाद (बुलंदशहर): भाजपा की बिमला सोलंकी 45799 विजयी, सपा के बदरुल इस्लाम 43535, कांग्रेस के जितेंद्र यादव 36101

शिवपुर (वाराणसी) बसपा के उदयलाल मौर्य 54482 (विजयी), सपा डॉ. पीयूष यादव 36048 कांग्रेस के वीरेंद्र सिंह 32518

सिकंदरा (आगरा) : बसपा के इंद्रपाल सिंह 54482 (विजयी), सपा के कमलेश पाठक 46271, कांग्रेस के लल्ला मान सिंह 14541

सहारनपुर नगर: भाजपा के राघव लखनपाल 85170 (विजयी), कांग्रेस के सलीम अहमद 72544, सपा के मजाहिर हसन 19755

सहारनपुर : बसपा के जगपाल सिंह 80670 (विजयी), कांग्रेस के अब्दुल वाहिद 63557, सपा के सरफराज खान 43018

रामपुर मनिहारन: बसपा के रवींद्र सिंह मोल्हू 77274 (विजयी), कांग्रेस के विनोद तेजियान 50668, सपा के विश्वदयाल छोटन 47492।

नकुड़ (सहारनपुर): बसपा के धर्म सिंह सैनी 88828 (विजयी), कांग्रेस के इमरान मसूद 84498, सपा के फिरोज आफताब 29441।

फरेंदा (महराजगंज) भाजपा के बजरंग बहादुर सिंह 47921 (विजयी), कांग्रेस के वीरेंद्र चौधरी 35586, सपा के श्याम नारायण 26006

रातों-रात नेताओं के टोपी बदलना दुर्भाग्यपूर्ण

लखनऊ विश्वविद्यालय के सेवानिवृ‌त्त प्रोफेसर डॉ. एसके द्विवेदी का कहना है कि राजनीति में विचारों का पतन हो गया है। अब नीति नहीं, सीटों की बात हो रही है। सपा-कांग्रेस का गठबंधन हो या एनडी तिवारी जैसे वयोवृद्ध कांग्रेसी का भाजपा में जाना, दोनों ही अवसरवादी कदम हैं। रातों-रात नेताओं के टोपी बदलना दुर्भाग्यपूर्ण है। यह राजनीति में नैतिक पतन की पराकाष्ठा है।

कोई भी गठबंधन न्यूनतम साझा कार्यक्रम के आधार पर बनना चाहिए। सिर्फ चुनाव में सीटों की संख्या बढ़ाने के लिए नहीं। दो दलों के गठबंधन से उनका वोट ट्रांसफर हो जाएगा, यह गणित के फॉर्मूले की तरह तय नहीं होता। जनतांत्रिक व्यवस्था में दोष न आए, इसकी जिम्मेदारी राजनीतिक दलों की है। पर अफसोस, उनका इस तरफ ध्यान नहीं है। ऐसे में मतदाता ही चुनाव में अवसरवादी और स्वार्थी नेताओं को जवाब देगा।

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