नई दिल्ली. किसान इस समय अपनी मांगों को लेकर सड़कों पर है। वह सरकारों से अपनी फसला का वाजिब दाम मांग रहे हैं। जिससे कि व0ह कर्ज के मकड़जाल से निकल सके। हालात यह है कि कर्ज में फंसे किसान को आत्महत्या ही उससे निकलने का रास्ता दिख रहा है। पिछले 40 दिनों में पंजाब में करीब 23 किसानों ने आत्मयाहत्या कर चुके हैं। वहीं मंदसौर में भी दो दिन पहले तीन किसानों ने कर्ज के बोझ में आत्महत्या की है। एनएसएसओ के आंकड़ों के अनुसार साल 2015 में देश के 52 फीसदी किसान परिवारों पर कर्ज है। देश में एग्रीकल्चर सिस्टम किसानों के लिए इस तरह खराब हो चुका है कि साल 2015 में 8 हजार से ज्यादा किसानों ने आत्महत्या की है। इसमें से करीब एक तिहाई से ज्यादा महाराष्ट्र से हैं। अगर आत्महत्या के आंकड़ों में कृषि मजदूरों को भी शामिल किया जाय, तो यह 8 हजार से बढ़कर 12 हजार से ज्यादा हो जाता है। ऐसे में समझा जा सकता है कि कर्ज का जाल किसान के लिए कितना गंभीर हो चुका है। देश के किसानों पर मौजूदा समय में लगभग 9 लाख करोड़ रुपए का कर्ज है।
आखिर क्यों है महाराष्ट्र सबसे आगे
कर्ज के बोझ तले अपने हाथों जान देने वाले किसान सबसे ज्यादा 3,030 किसान महाराष्ट्र से ही हैं। बीते सालों में महाराष्ट्र के सबसे बड़े सूबे मराठवाड़ा में लगातार कई सालों तक पड़ा सूखा भी जिम्मेदार रहा। लेकिन, जानकार बहुत हद तक इसके पीछे सरकारी कारगुजारी को भी मानते हैं। दरअसल, महाराष्ट्र में दलहन, गन्ना के अलावा बहुत बड़ी संख्या बागवानी से भी जुड़ी है। बागवानी (फल, सब्जी) की फलसों पर मौसम के साथ-साथ मार्केट में उठापटक का सबसे ज्यादा प्रभाव पड़ता है। एग्री इकोनॉमिस्ट देविंदर शर्मा ने बताया कि बागवानी की मुख्य फसलों के लिए कोई एमएसपी या मार्केट इन्टरवेंशन प्राइस की कोई व्यवस्था नहीं है। ऐसे में ज्यादातर किसान औने-पौने दामों पर ही फसल बेचने को मजबूर होते हैं। इससे वे समय-समय पर कर्ज अदायगी नहीं कर पाते हैं। इसके जैसे हालात ही तेलंगाना और कर्नाटक जैसे राज्यों के भी हैं।
चिंताएं बढ़ाता पंजाब
एनसीआरबी के ही साल 2016 के शुरूआती 3 महीनों के आंकड़ों में पंजाब राज्य चिंताएं बढ़ाने वाला है। ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार इस दौरान देश के 10 राज्यों में कुल 116 किसानों ने आत्महत्या की है। इसमें से 57 किसान महाराष्ट्र से हैं जबकि, 56 किसान पंजाब राज्य से। अनाज का कटोरा कहे जाने वाले पंजाब के इन आंकड़ों ने सरकार के सामने चिंताएं खड़ी कर दी हैं। शर्मा के अनुसार पंजाब राज्य में सबसे ज्यादा आत्महत्या करने वाले किसान कपास उगाने वाले हैं। यहां किसानों को पहले जीएम कपास के अधिक पैदावार के झांसे में डाला गया और फिर बैंकों से ज्यादा से ज्यादा लोन दिया गया। इसी बीच कपास की फसल आधे से ज्यादा बर्बाद हो गई तो किसान कर्ज देने में नाकामयाब हुए। लिहाजा उन्होंने मौत को गले लगाना ही मुनासिब समझा।
किसानों की आत्महत्याएं
2014-5,660
2015-8,007
कृषि क्षेत्र में बढ़ी आत्महत्याएं
एनसीआरबी ने अपनी रिपोर्ट में किसानों के अलावा कृषि क्षेत्र में काम करने वाले मजदूरों की आत्महत्याओं का भी जिक्र किया था। इस रिपोर्ट के अनुसार साल 2014 में 6710 मजदूरों ने आत्महत्या की थी, जबकि साल 2015 में यह संख्या 4595 रही। इस लिहाज से इस दरम्यान इनमें 31 फीसदी की कमी आई है। बावजूद इसके कृषि क्षेत्र में किसानों और मजदूरों की आत्महत्याओं में 2 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। रिपोर्ट के अनुसार साल 2014 में कुल 12360 आत्महत्याएं हुई थीं। जबकि, इसके अगले साल यह आंकड़ा 12602 पर पहुंच गया।
आय दोगुनी करने से भी नहीं सुधरेंगे हालात
सरकार मौजूदा लगभग 4.1 फीसदी कृषि विकास दर के आधार पर साल 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने पर काम कर रही है। लेकिन, इसके विपरीत किसानों की आत्महत्या में जो बढ़ोतरी हुई है वह इस विकास दर से 10 गुना है। जी हां, नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की रिपोर्ट के अनुसार साल 2014 में 5660 किसानों के मुकाबले साल 2015 में 42 फीसदी अधिक 8007 किसानों ने आत्महत्या की है। इस तरह के आंकड़ों के बीच सरकार अपने लक्ष्य को पाना मुश्किल साबित हो सकता है। वहीं, एग्री इकोनॉमिस्ट देविंदर शर्मा ने बताया कि सरकारी इकोनॉमिक्स सर्वे 2015 की रिपोर्ट के अनुसार देश के 17 राज्यों में किसानों की सालाना आय 20000 रुपए है। ऐसे में 40000 रुपए सालाना यानी 3500 रुपए महीना से किसानों के हालात सुधरेंगे यह कहना भी कठिन है।