कितनी तरह के फीवर सुने हो? येलो फीवर, टाइफाइड, कालाजार और न जाने क्या-क्या. लिस्ट अपडेट कर लो, नया फीवर मार्केट में आ गया है. इस फीवर का नाम है, मंकी फीवर. इसकी शुरुआत भारत में भी हो चुकी है.
गोवा के सतारी तालुका में 45 साल की एक औरत की डेथ हो गई. डॉक्टर्स का कहना है उन्हें मंकी फीवर था. अब तक इस बीमारी के निशान नॉर्थ गोवा में मिले हैं. महिला का गोवा मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल में इलाज़ चल रहा था. पांच दिनों तक इलाज़ चला. उन्हें बुखार था. साथ ही सांस लेने में परेशानी और लूज मोशन की भी शिकायत थी. डायरेक्टरेट ऑफ़ हेल्थ सर्विस के सीनियर अफ़सर का कहना है कि महिला की मौत एक्यूट रेस्पायरेट्री डिस्ट्रेस सिंड्रोम की वजह से हुई है. इस साल हमने 422 सैंपल टेस्ट किए थे. जिनमें 75 सैंपल पॉजिटिव पाए गए. फिलहाल इस बीमारी की जांच के लिए गोवा सरकार ने वल्पोई में एक कैंप लगा दिया है.
कहां से आया मंकी फीवर ?
मंकी फीवर की कहानी यास्नुर फॉरेस्ट से शुरू हुई थी. इसलिए इसे यास्नुर फॉरेस्ट डिजीज़ भी कहते है. ये पहली बार 1957 में लोगों के सामने आया था. अब तक सेंट्रल यूरोप, ईस्टर्न यूरोप और नॉर्थ एशिया में पाया गया है. भारत में ज्यादातर गोवा, कर्नाटक और केरल में देखा गया है. नीलगिरि और बांदीपुर नेशनल पार्क में भी कुछ केस देखे गए हैं. ये वायरस अधिकतर नवम्बर से मार्च के महीने में एक्टिवेट होता है. इस बीमारी की चपेट में सबसे पहले बंदर आए थे. अचानक से कर्नाटक के यास्नुर जंगल में बंदरों की संख्या कम होने लगी. तो खोजबीन शुरू हुई. पता चला कि ये एक तरह का वायरस है जो केवल बंदरों को ही नुकसान पहुंचा रहा है. जैसे ही कोई बंदर इसके संपर्क में आता है उसकी तबियत ख़राब होने लगती है और एक समय के बाद वो निपट जाता है. ये वायरस फ्लाविवायरस के समुदाय का था. नाम था टिक. इससे होने वाली बीमारी को टिक बॉर्न एन्सेफलाइटिस (टीबीई) कहते हैं. डॉक्टरों को उसी वक़्त अंदाजा हो गया था कि इंसान भी इसके चपेट में आने वाले है.
टिक वायरस
मंकी फीवर के लक्षण
हर आम बुखार की तरह इसमें भी हमारे शरीर का तापमान बढ़ जाता है. कमजोरी महसूस होती है. बदन में दर्द रहता है. साथ ही नाक, मुंह और मसूढ़े से खून भी आ सकता है.
मंकी फीवर का इलाज़
अभी तक लाइलाज है. डॉक्टर्स इलाज खोजने में लगे हैं. हम ज़्यादा से ज़्यादा सतर्कता बरत सकते हैं. वैक्सिनेशन और टिक इन्फेक्टेड जानवरों से बचना ही सबसे बेहतर उपाय है. ये कुछ हफ़्तों में भी ठीक हो सकता है और कई महीने भी लग सकते हैं.
अंदाजा लग रहा है कि आने वाले कुछ समय में ये तीन गुना बढ़ सकता है. हाल ही में महाराष्ट्र के कुछ इलाकों से भी इसकी शिकायतें आई हैं. महाराष्ट्र के सिंधुदुर्ग जिले में 15 लोग में यास्नुर डिजीज़ के लक्षण पाए गए हैं. इससे पहले 28 लोगों का ब्लड सैंपल भेजा गया था. जिनमें 18 लोग इससे ग्रसित थे. जिले के पास ही एक बंदर भी मृत पाया गया था. प्रिकॉशन लेते हुए जिले के एपिडीमीलॉजिस्ट प्रशांत सावडी ने कीटनाशक स्प्रे करने का आदेश दिया था.
ये स्टोरी दी लल्लनटॉप के साथ इंटर्नशिप कर रही आस्था ने की है.