लखनऊ, दीपक ठाकुर। उत्तर प्रदेश में किसानों की समस्या को सभी सरकार ने उस वक़्त प्राथमिता दी जब उसे उसका रिटर्न वोट बैंक के रूप में दिखाई देता था मगर कुर्सी पे आते ही सरकार जय जवान जय किसान के नारे को ही दर किनार करती नज़र आती रही है और लगता है आती भी रहेगी।
वैसे तो पूरे देश मे किसान परेशान है क्योंकि ना ही उसे उसकी फसल का सही पैसा मिलता है और ना ही सरकार की तरफ से कोई मदद और अगर कुछ मिलता है तो वो है कोरा आश्वासन।यही कारण है कि किसान आर्थिक और मानसिक रूप से प्रताड़ित हो कर आत्महत्या को मजबूर हो जाता है।
उत्तर प्रदेश में इस बार के विधान सभा के चुनाव में किसानो की कर्ज़ माफी का मुद्दा काफी चर्चा का विषय रहा भाजपा ने इस मुद्दे को बड़े जोर शोर से प्रसारित भी किया जिसपर अन्य दलों ने पहले से ही ये दलील देना शुरू कर दी थी कि कर्ज़ माफी सिर्फ चुनावी लालीपाप है इसको साकार रूप नही दिया जा सकता।
खैर इसी मुद्दे का लाभ भाजपा को चुनाव में मिल गया और सत्ता भाजपा के हाथ आ गई फिर शुरू हुआ वादे को पूरा करने का मामला कई बैठकों के बाद ये निर्णय लिया गया कि उन किसानो के ही कर्ज़ माफ होंगे जो एक लाख के सरकारी कर्ज़ेदार हैं।सरकार ने इसके लिए भी बड़े पैमाने पर तामझाम के साथ ये घोषणा घोषणा पत्र के साथ कर भी दी जिससे उन किसानों को राहत महसूस हुई जो एक लाख के कर्ज़ेदार थे।
मगर असल बात तो तब सामने आई जब उनको माफी के नाम पर मज़ाक जैसा ही कुछ लगने लगा खबरे जो निकल कर आ रही हैं उसपर यकीन किया जाए तो किसानों का कहीं 3 रुपया तो कहीं 27 रुपया का ही कर्जा माफ हुआ है मतलब ये के सरकारी आदेश के बावजूद सरकारी विभाग किसानों की फिरकी ले रहा है जिससे किसान बदहाली के साथ साथ मानसिक रूप से प्रताड़ित भी हो रहा है ज़िम्मेदार लोगों का कहना है कि देखा जाएगा कि गलती कैसे और कहां हुई फिर कुछ बता पाएंगे।
ये सब देख कर अब किसान खुद को ठगा सा महसूस करने लगा है पहले गोलमोल घुमा के कहा कि कर्जा माफ हो जाएगा फिर एक लाख पर सहमति भी बनाई और हुआ कहीं 3 तो कहीं 27 रुपये का कमाल है घोषणा करने में जितना दिमाग लगाया जाता है उतना ही उसपर अमल करने में भी लगाया जाए तो सरकार फजीहत से बची रहे और किसान परेशानी से नही तो वो तो यही समझेगा कि सरकार बदल गई पर उनके साथ होने वाला सरकारी खेल नही बदला।