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Friday, January 3, 2025

अच्छे दिन हुए पूरे, गुजरात में नहीं चलेगा मोदी का जादू

​तमाम मीडिया चैनलों ने चुनाव पूर्व के अपने सर्वे में यह घोषणा कर दी है कि जीत भाजपा की होगी, पर इस पर यक़ीन भाजपा नेताओं को भी नहीं हो रहा है…

मनोज कुमार झा

अगले महीने होने जा रहा गुजरात विधानसभा चुनाव राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ और भाजपा के लिए अग्निपरीक्षा के समान है। वैसे, तमाम मीडिया चैनलों ने चुनाव पूर्व के अपने सर्वे में यह घोषणा कर दी है कि जीत भाजपा की होगी, पर इस पर यक़ीन भाजपा नेताओं को भी नहीं हो रहा है। बढ़ते दबाव को देखते हुए प्रधानमंत्री लगातार वहां दौरे कर रहे हैं, वहीं कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल के दौरे भी जारी हैं और उनकी लोकप्रियता बढ़ती जा रही है। गुजरात में राहुल की छवि सुधरती नज़र आ रही है और लोग कह रहे हैं कि अब वे राजनीतिक रूप से परिपक्वता दिखा रहे हैं।

दूसरी तरफ, अमित शाह जैसे भाजपा के रणनीतिकार को कई जगहों पर भारी विरोध का सामना भी करना पड़ रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सभाओं में भी आशा के अनुरूप भीड़ नहीं जुट रही है। मोदी-मोदी की पुकार मंद पड़ गई है।

दरअसल, गुजरात में भाजपा को लेकर मतदाताओं में जो निराशा की भावना दिखाई पड़ रही है, वह मोदी सरकार की तीन साल में लागू की गई नीतियों का परिणाम है जो शुरू से ही पाखंड और धूर्तता पर आधारित रही।

गुजरात एक ऐसा राज्य है जो लगभग दो दशकों से भाजपा-शासित है। नरेंद्र मोदी कहीं भी विकास के गुजरात मॉडल की ही बात करते हैं। सन् 2014 में केंद्र की सत्ता पर काबिज होने के पहले उनकी षडयंत्रपूर्ण राजनीति का एकमात्र क्षेत्र गुजरात ही था। वहां उन्होंने जो दंगा-फसाद, सुनियोजित हत्याएं और फर्जी काउंटर करवाए, उसे लेकर पूरी दुनिया में उनकी बदनामी हो गई और अमेरिका जैसे देश ने उन्हें वीज़ा जारी करने से मना कर दिया था। उस समय कोई सोच नहीं सकता था कि नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री बन जाएंगे। ये और इनके मुख्य सहयोगी अमित शाह की छवि पूरे देश में बहुत ही खराब थी। ये दंगाइयों के संरक्षक ही नहीं, स्वयं दंगों में शामिल बताए जाते थे। अमित शाह को तो उनके आपराधिक कार्यों के लिए तड़ीपार तक कर दिया गया था। लेकिन कांग्रेस से नाराज वोटरों ने भाजपा के प्रचारतंत्र के जाल में फंस कर और इस मूर्खतापूर्ण बात पर विश्वास करके कि उनके खाते में 15 लाख रुपए आ जाएंगे और यह काला धन पकड़े जाने से संभव होगा, भाजपा को जिता दिया।

मतदाताओं का यह सोचना था कि एक बार भाजपा के नरेंद्र मोदी को आजमा कर देखते हैं, यह भ्रष्टाचार का विरोधी है, लेकिन भाजपा की जीत के पीछे सबसे बड़ा कारक सांप्रदायिक ध्रुवीकरण था। जीत में इसी की भूमिका थी, साथ में आक्रामक प्रचार जिसके लिए अडानी-अंबानी जैसे उद्योगपतियों ने अपना खजाना खोल दिया था। बावजूद, मत प्रतिशत में भाजपा ज्यादा आगे नहीं बढ़ सकी। विकल्पहीनता के शून्य से यह पैदी हुई, लेकिन सत्ता हाथ में आते ही यह बेकाबू हो गई। इसने जो भी योजनाएं चलाईं, वो कांग्रेस की ही योजनाएं थीं, महज नाम बदल दिया। हर जगह ऐसे-ऐसे मुद्दे खड़े किए, जिससे ख़तरनाक स्थितियां पैदा हो गईं। लव जिहाद से लेकर गो-गुण्डागीरी तक इन्होंने जैसा आतंक मचाया, वैसा पहले कभी नहीं देखा गया था।

मोदी ने अपनी ही पार्टी के बड़े नेताओं को खुद के लिए चुनौती मानते हुए दरकिनार कर दिया और दंगों व अन्य असामाजिक गतिविधियों में विश्वस्त साबित रहे अमित शाह को लेकर ही सारे फैसले करने लगे। न काला धन आया, न महंगाई घटी, भ्रष्टाचार क्या मिटता, पार्टी में ही बड़े-बड़े भ्रष्टाचारी शामिल कर लिए गए और पहले से भी भाजपा में भ्रष्ट तत्व की कम नहीं थे। अपने हर फैसले से मोदी एंड कंपनी ने देश के महज दो उद्योगपतियों अंबानी-अडानी को फायदा पहुंचाया और प्रधानमंत्री पद की गरिमा को नष्ट कर दिया। करदाताओं के पैसे पर विदेशों में मोदी-मोदी करने वाले भाड़े के आदमी जुटाए। हर ऐसा काम किया जो शर्मनाक था, पर सांप्रदायिकता का ज़हर भाजपा-संघ ने इतना फैलाया कि यूपी में इन्हें जीत मिली और खुलेआम मुसलामानों के खिलाफ ज़हर उगलने वाला योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बन गया।

मोदी ने गुजरात को विकास का मॉडल कहा, पर उनके विरोधी उसे हिन्दुत्व की प्रयोगशाला मानते हैं। जहां तक विकास का सवाल है, वहां किसी भी दृष्टि से विकास नहीं हुआ है, विकास का महज शोर मचाया गया है। विकास सिर्फ सांप्रदायिक चेतना का हुआ है जो लंबे समय से राज्य में भाजपा की सत्ता का आधार बना रहा।

नरेंद्र मोदी जब तक गुजरात के मुख्यमंत्री रहे, विरोधियों ही नहीं, भाजपा में भी अपने प्रतिद्वन्द्वियों से निपटने के लिए साजिशों का सहारा लेते रहे। पूरी नौकरशाही और पुलिस तंत्र को उन्होंने अपनी साजिशों में शामिल किया।

गुजरात में नरेद्र मोदी की जो राजनीति रही है, वह पूरी तरह विरोधियों के सफाये पर आधारित रही। पर जब ये केंद्र में आए

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