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Saturday, December 21, 2024

आपराधिक मामलों के दोषियों पर चुनाव लड़ने पर लगे आजीवन प्रतिबंधः चुनाव आयोग

लखनऊ, शैलेन्द्र कुमार। जिस तरह से समाज में अपराध के मामले बढ़ते जा रहे हैं। और आपराधिक छवि वाली बड़ी-बड़ी हस्तियां ही सामने आ रही हैं। इससे सरकार और प्रशासन काफी परेशान है। यही नहीं आपराधिक मामलों में शामिल होने वाले ज्यादातर लोग राजनीति का रास्ता अपना रहे हैं। और उसमें शामिल होने पर उन पर प्रतिबंध भी बहुत कम समय का लगता है।

जिससे वह राजनीति में अपनी छवि बनाकर आपराधिक मामलों में पुलिस की पकड़ से दूर हो जाते हैं, जिससे पुलिस प्रशासन को उन तक पहुंचने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। वर्तमान कानूनी प्रावधान के मुताबिक, आपराधिक मामलों के दोषी पर सजा काटने के 6 वर्ष तक ही चुनाव न लड़ने पर पाबंदी है। जबकि चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में यह हलफनामा दाखिल किया है कि ऐसे आपराधिक मामले में दोषी नेताओं पर आजीवन चुनाव न लड़ने का प्रतिबंध लगाया जाय।

चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि आपराधिक मामले में दोषियों के चुनाव लड़ने पर आजीवन पाबंदी होनी चाहिए। उसका यह भी मानना है कि आपराधिक मामले में आरोपी नेताओं का ट्रायल एक वर्ष के भीतर पूरा हो जाना चाहिए। यही नहीं सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हलफनामें में चुनाव आयोग ने कहा कि वह निष्पक्ष चुनाव के लिए प्रतिबद्ध है।

वह इसका समर्थन करता है कि आपराधिक मामलों में 2 या उससे अधिक वर्ष की सजा पाने वालों पर चुनाव लड़ने की आजीवन पाबंदी होनी चाहिए। और भाजपा नेता अश्विनी उपाध्याय द्वारा दाखिल जनहित याचिका पर आयोग ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष अपना पक्ष रखा है। उसका कहना है कि स्वस्थ लोकतंत्र के लिए इस तरह की पाबंदी होनी चाहिए।

याचिकाकर्ता का कहना है कि कार्यपालिका और न्यायपलिका में ऐसी व्यवस्था है कि अगर कोई व्यक्ति आपराधिक मामले में दोषी ठहराया जाता है तो वह नौकरी से बर्खास्त हो जाता है वहीं विधायिका पर यह मापदंड लागू नहीं होता। याचिका में विधायिका में भी यही मापदंड तय करने की गुहार की गई है। याचिका में कहा गया कि मौजूदा स्थिति है कि दोषी ठहराए जाने और सजा काटने के दौरान भी दोषी राजनीतिक दल बना सकता है और वह दल का पदाधिकारी बन सकता है।

इतना ही सजा काटने के 6 वर्ष बाद भी दोषी फिर से चुनाव लड़ सकता है।
हलफनामे में आयोग ने कहा कि चुनाव सुधार को लेकर उन्होंने विस्तृत प्रस्ताव सरकार को सौंप दिया है। इनमें अपराध मुक्त राजनीति, रिश्वत को संज्ञेय अपराध बनाना, पेड न्यूज पर पाबंदी और मतदान के 48 घंटे पहले तक विज्ञापनों पर प्रतिबंध आदि शामिल हैं। बता दें कि

इन नेताओं का सजा में नाम है-

ओमप्रकाश चैटालाः 2013 में दिल्ली की कोर्ट ने अध्यापकों की गैर कानूनी भर्ती में हरियाणा के पूर्व सीएम ओम प्रकाश चैटाला को 10 साल की सजा सुनाई थी।

शशिकला नटराजनः सुप्रीम कोर्ट ने एआईएडीएमके नेता शशिकला को अधिक संपत्ति के 21 साल पुराने मामले में 4 साल की सजा सुनाई गई। और वह जेल में हैं।

लालू प्रसाद यादवः लालू यादव सालों तक बिहार के मुख्यमंत्री रहे हैं। उनका नाम भ्रष्टाचार के कई मामलों से जुड़ा, लेकिन चारा घोटाला में जेल जाना पड़ा और अपना पद छोड़ना पड़ा। इस समय वे जमानत पर बाहर हैं और अपनी पार्टी के सर्वेसर्वा भी हैं।

इस तरह से राजनीति की बड़ी हस्तियों पर आपराधिक मामले दर्ज हैं लेकिन वह फिर भी चुनाव लड़ सकती हैं। इसी पर चुनाव आयोग ने कड़ा रूख अपनाते हुए सुप्रीम कोर्ट में यह हलफनामा दाखिल किया है। चुनाव आयोग ने कहा कि अधिकतर सिफारिशों को विधि आयोग ने अपनी 244 और 255वीं रिपोर्ट को अप्रूव कर दिया है। फिलहाल यह केंद्र सरकार के विचाराधीन है। आयोग ने यह भी चुनाव लड़ने के लिए अधिकतम उम्र निर्धारित हो और न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता तय हो।

चुनााव लड़ने की न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता और अधिकतम उम्र तय करने के मामले पर कहा है कि यह विधायिका के कार्यक्षेत्र में है। इसके लिए संविधान में संशोधन की जरूरत है। बता दें कि अश्विनी उपाध्याय ने अपनी याचिका में गुहार लगाई है कि आपराधिक मामलों में दो वर्ष या इससे अधिक की सजा पाने वालों पर आजीवन चुनाव लड़ने क पाबंदी लगा दी जानी चाहिए। और साथ ही राजनेताओं के मामले का ट्रायल 1 वर्ष के भीतर पूरा हो जाना चाहिए।

देखा जाए तो चुनाव आयोग ने सही हलफनामा ही दाखिल किया है क्योंकि राजनीति में जो आपराधिक मामले के दोषी व्यक्ति होते हैं उन पर पुलिस प्रशासन को कार्यवाई करने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। सवाल यह उठता है कि इससे जनता को भी इस बात का डर रहता है कि अगर किसी राजनीति की बड़ी हस्ती ने उसके साथ कोई अन्याय किया है, तो क्या पुलिस प्रशासन रिपोर्ट दर्ज कर कोई कार्यवाई करेगा भी या नहीं? और ऐसे में यदि जनता शांत रह गई तो अत्याचार तो और बढ़ते ही जायेंगे। और इसका खामियाज़ा जनता को ही भुगतना पड़ेगा। लेकिन सुप्रीम कोर्ट इस बारे में क्या सोंचती है और इस पर क्या फैसला लेती है यह तो सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद ही पता चलेगा।

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