पारसमणि अग्रवाल :- NOI।
शीर्षक पढ़ के आपको थोड़ा सा अटपटा जरूर लग रहा होगा कि खुशहाली को जीनें और सीखने के लिए स्कूल भी होंगे? जी हां, सही पढ़ रहे है अतीत के आंकड़ो के स्तम्भ को धराशाई कर वर्तमान खुशहाली के नये आंकड़ो को गढ़ भविष्य में ऐसे स्कूल खोलने के अवसरों को बड़े ही जोरों-शोरों से न्यौता दे रहा है जहॉ खुशियों को जीना सिखाया जाएगा, अब अजीब लग रहा न, लेकिन ये हम नहीं कह रहे ये बात हाल में ही आए संयुक्त राष्ट की ओर से जारी विश्व प्रसन्नता रिपोर्ट स्पष्ट कहती प्रतीत हो रही है कि वह दिन दूर नहीं जब ये आसानी से सुनने को मिल जाएगा कि ‘‘ए चाचा, इत्तो मुंह काए बनाए, चलो खुशहाली सीखने स्कूल चलें
आपको बता दें कि संयुक्त राष्ट की ओर से जारी विश्व प्रसन्नता रिपोर्ट 2019 में भारत अपने स्तर में बढ़ोत्तरी करने के बजाए प्रसन्नता के ग्राफ में गिरावट पाया है जो कि बेहद ही चिंतनीय एवं विचारणीय है। रिपोर्ट में भारत को 140 वां स्थान मिला जबकि पिछले साल 133 वें स्थान पर था। एक साल में ही इतने पायदान नीचे खिसक जाना हमारे जिम्मेदार, हमारे समाज और हम सब के लिए आत्ममंथन की आवश्यकता को मजबूती प्रदान कर रहा ह्रै। खुशहाली एवं प्रसन्ननता के मामले में लगातार पिछड़ना हमारे देश के लिए शुभ संकेत नहीं है क्योंकि तनाव से मुक्त होकर खुशहाली और प्रसन्नता हर कोई चाहता है।
विचार करना होगा, समय रहते रणनीति बनानी होगी और धरातल पर परीक्षण करना होगा कि आखिर खुशहाली के मामले में हम पिछड़ते जा रहे है? कहां कमियां रह रही है हमारी समाज निर्माण की नीतियों में, कहां कमी रह रही है हमारी शासन व्यवस्था में ? किन कदमों इसको सुधारा जा सकता है क्योंकि एक अच्छे देश का निर्माण पत्थर और चट्टानों से नहीं बल्कि उस देश के खुशहाल नागरिकों से होता है।