पिछली चुनाव आयोग में केवल इस मामले के याचिकाकर्ता, 21 विधायक और उनके वकीलों ने आमने-सामने खड़े होकर अपना पक्ष रखा था।
इससे पहले इस मामले की तीन बार बार सुनवाई हो चुकी है, जिसमें कांग्रेस, बीजेपी और दिल्ली सरकार ने आयोग को बताया कि आखिर क्यों उनको इस मामले में पार्टी बनाया जाना चाहिए? लेकिन आयोग ने इन तीनों की मांग को खारिज कर दिया था, जिससे अब याचिकाकर्ता और 21 विधायक आमने-सामने होंगे।
पिछली सुनवाई में 9 अगस्त को आप विधायकों ने आयोग को बताया था कि आखिर कैसे उनकी संसदीय सचिव के पद हुई नियुक्ति लाभ के पद के दायरे में नहीं आती और क्यों उनकी विधायकी रद न की जाए।
हालांकि आप विधायकों की मुश्किलें पहले ही बढ़ी हुई हैं क्योंकि राष्ट्रपति उस बिल को पहले ही लौटा चुके हैं, जिसके जरिए दिल्ली सरकार 21 संसदीय सचिव के पद को लाभ के पद के दायरे से बाहर निकालने का प्रयास कर रही थी, लेकिन अब चुनाव आयोग को तय करना है कि यह 21 विधायक लाभ के पद पर हैं या नहीं।