नई दिल्ली संसद पर आतंकी हमले के दोषी अफजल गुरु की फांसी के करीब दो माह बाद राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने सात अन्य दया याचिकाओं पर अपना फैसला सुना दिया है। उन्होंने पांच दोषियों की दया याचिका खारिज कर दी है। दो लोगों की सजा-ए-मौत आजीवन कारावास में बदल दी है।
दया याचिका खारिज होने वालों में सबसे ऊपर हरियाणा के सोनीपत का धर्मपाल है। उसे सबसे पहले फांसी पर लटकाया जाएगा, जिसकी पुष्टि अंबाला के जेल अधीक्षक ने भी कर दी है। धर्मपाल ने 1991 में एक लड़की से दुष्कर्म किया था, जिसके लिए 1993 में उसे 10 साल की सजा सुनाई गई थी। सजा के दौरान उसे पांच दिनों के लिए पैरोल पर छोड़ा गया। जेल से बाहर आए धर्मपाल ने पीड़ित लड़की के मां-बाप समेत पांच लोगों की हत्या कर दी थी। इसके लिए उसे मृत्युदंड की सजा सुनाई गई थी, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने भी बरकरार रखा था। धर्मपाल ने 1999 में राष्ट्रपति के समक्ष दया याचिका दाखिल की थी, जिसे अब खारिज कर दिया गया है। धर्मपाल फिलहाल रोहतक जेल में बंद है। उसे अगले एक-दो हफ्तों में कभी भी फांसी दी जा सकती है।
धर्मपाल के अलावा हरियाणा का एक अन्य चर्चित मामला सोनिया और संजीव का है, जिन्होंने अपने परिवार के आठ लोगों की जान ले ली थी। इसके अतिरिक्त उत्तर प्रदेश के तीन मामले और एक उत्तराखंड व कर्नाटक का था। इन सभी मामलों में गृह मंत्रालय ने गत फरवरी में राष्ट्रपति से दया याचिका खारिज करने की संस्तुति की थी। उस समय राष्ट्रपति ने कई साल तक फाइलें दबाए रखने वाले गृह मंत्रालय की अचानक जल्दबाजी पर नाराजगी भी जताई थी। अब करीब दो माह बाद उन दया याचिकाओं पर फैसला किया गया है। राष्ट्रपति भवन के सूत्रों ने इस बाबत सिर्फ इतना ही कहा कि अब दया याचिका संबंधी गृह मंत्रालय की कोई फाइल लंबित नहीं है।
इन दोषियों ने की थी दया की अपील
1. दुष्कर्म के दोषी हरियाणा के धर्मपाल ने पैरोल पर जेल से बाहर आने के बाद पीड़ित लड़की के परिवार के पांच सदस्यों की हत्या कर दी थी।
2. हरियाणा के ही पूर्व विधायक की बेटी सोनिया और उसके पति संजीव ने 2001 में हिसार में जहरीला पदार्थ देकर अपने परिवार के आठ लोगों की जान ले ली थी।
3. 1989 में दुष्कर्म और हत्या का दोषी उत्तराखंड का सुंदर सिंह।
4. उत्तर प्रदेश के जफर अली ने 2002 में पत्नी और पांच बेटियों की हत्या कर दी थी।
5. कर्नाटक के प्रवीण कुमार ने 1994 में एक ही परिवार के चार सदस्यों की हत्या कर दी थी।
6. उत्तर प्रदेश के गुरमीत सिंह ने 1986 में एक ही परिवार के 13 लोगों को मार डाला था।
7. उत्तर प्रदेश के सुरेश और रामजी ने अपने छोटे भाई के परिवार के पांच सदस्यों का कत्ल कर दिया था।
फांसी के लिए तैयारी शुरू
लखनऊ। उप्र के गृह गृह विभाग ने चारों दोषियों को फांसी के लिए आवश्यक तैयारी शुरू दी है। बरेली, वाराणसी और फतेहगढ़ के जिलाधिकारियों को पत्र भेजकर दया याचिका निरस्त होने सम्बंधित पत्रावली भेजी जा रही है। सम्बंधित कारागारों को भी इस संदर्भ में सूचित करने के लिए पत्रावली तैयार की जा रही है।
—————
‘राष्ट्रपति द्वारा दया याचिका खारिज किये जाने सम्बंधित पत्रावली प्राप्त हुई है। शासन इसका परीक्षण कर रहा है। जेल मैन्युअल के हिसाब से कार्रवाई की प्रक्रिया शुरू कर दी गयी है।’
आरएम श्रीवास्तव
प्रमुख सचिव गृह, उत्तर प्रदेश शासन
जफर को नहीं मिली राष्ट्रपति से राहत
इटावा। पत्नी के चरित्र पर संदेह के बाद पांच बच्चों और पत्नी की हत्या करने वाले जफर को राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से राहत नहीं मिली। उन्होंने उसकी फांसी की सजा को बरकरार रखा। इसको लेकर दिन भर तरह-तरह की चर्चाएं रहीं।
कोतवाली सदर में 27 जुलाई 2002 की रात उस समय हड़कंप मच गया था, जब खून से सने चाकू समेत मोहम्मद जफर ने चिल्ला-चिल्ला कर कहा था कि उसने अपनी पत्नी तथा 5 लड़कियों को मौत के घाट उतार दिया। इससे पुलिस सकते में आ गई थी, अफसर शीघ्रता से वाह बस अड्डे के पास पुरोहितन टोला में जफर के घर पहुंचे थे। वहां जफर की करीब 35 वर्षीय पत्नी रोशनआरा खून से लथपथ, पास में उसकी 12 वर्षीय पुत्री रुबीना, आठ वर्षीय सबीना, छह वर्षीय मदीना, चार वर्षीय नगीना तथा दो वर्षीय अलशिया मृत पड़ी थी। जफर के साले मोहम्मद यासीन ने उसके खिलाफ अभियोग दर्ज कराया था। तत्कालीन अपर सत्र न्यायाधीश आईबी सिंह ने एक साल के अंदर दोनों पक्षों को सुनने के बाद 14 जुलाई 2003 को जफर के फांसी की सजा सुनाई थी। तभी से जफर अपने अधिवक्ता के माध्यम से फांसी से मुक्ति पाने के लिए प्रयासरत था, लेकिन उसकी यह हसरत पूरी नहीं हो सकी। जिला जेलर एसके अवस्थी ने बताया कि जफर फतेहगढ़ सेंट्रल जेल में कैद है। उसने राष्ट्रपति के यहां दया याचिका दायर कर रखी थी। सुना है कि दया याचिका खारिज हो गयी है। अभी लिखित आदेश नहीं आया है।
——————
‘बहनोई के लिए फांसी की सजा भी कम है साहब’
इटावा। जफर को अपराध की सजा दिलाने के लिए उसके साले मोहम्मद यासीन ने सेशन कोर्ट तक जमकर भाग दौड़ की थी। एक साल के अंदर फांसी की सजा सुनाये जाने पर उसने राहत महसूस की थी। राष्ट्रपति से 11 साल बाद दया याचिका खारिज होने पर देर से किया गया फैसला मान रहा।
मोहम्मद जफर ने पत्नी तथा पांच पुत्रियों की हत्या कर कोतवाली जाकर अपना अपराध स्वीकार कर लिया था। उसने पत्नी पर चारित्रिक आरोप लगाए थे, इसी के तहत हत्या-दर-हत्या करके अपना शक मिटाया था। दया याचिका खारिज होने पर मोहम्मद यासीन की तलाश की गई तो उसका भाई मोहम्मद वसीम मिला, जिसने बताया कि भाई यासीन जफर के पुत्र जाहिद और बेटे के साथ हत्याकांड के बाद दिल्ली चला गया। वे सभी वहां काम कर रहे हैं। वसीम का कहना है कि राष्ट्रपति का फैसला काफी समय बाद हुआ है, इससे पुराने जख्म फिर से ताजा हो गए। हालांकि बहनोई को मिली फांसी की सजा बरकरार रहने पर उसने राहत की सांस ली। वसीम का कहना है कि बहन के साथ पांच भांजियों की हत्या करने वाले बहनोई पर अब कोई रहम नहीं है।
——————
आटो चलाकर करता था गुजारा
पत्नी व बेटियों की मौत का जिम्मेदार जफर आटो चलाकर अपने परिवार का पालन पोषण करता था। पत्नी के चरित्र पर एक बार उसने शक किया जो बढ़ता ही चला गया। उसके मोहल्ले के लोग आज भी उस घटना को सुनकर सिहर जाते हैं।
फांसी पाने वाली पहली महिला होगी सोनिया
हिसार [मणिकांत मयंक]। हरियाणा के पूर्व विधायक रेलूराम हत्याकांड में राष्ट्रपति के पास पड़ी सोनिया व संजीव की दया याचिका खारिज होने के बाद देश में पहली बार किसी महिला को फांसी की सजा दी जाएगी। दया याचिका खारिज करने के फैसले को न्याय की जीत मानते हुए फांसी की सजा के याचिकाकर्ता अब जल्द फांसी की तारीख तय करने के लिए अदालत में अर्जी लगाने की तैयारी कर रहे हैं। सोनिया-संजीव फिलहाल अंबाला जेल में बंद हैं।
मालूम हो कि इसके पहले पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी हत्याकांड में दोषी नलिनी सिंह को सुप्रीम कोर्ट द्वारा फांसी की सजा सुनाई गई थी। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने हस्तक्षेप कर नलिनी सिंह को फांसी से राहत दिलवाई थी। तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल के पास पहुंची दया याचिका पर उन्होंने पैरवी की थी। रेलूराम हत्याकांड मामले में पीड़ित पक्ष के वकील लाल बहादुर खोवाल ने बताया कि दोनों हत्यारों को फांसी की तिथि तय करने केलिए तय जून की तिथि से पहले अदालत में अर्जी लगाई जाएगी। उधर, रेलूराम के भाई व याचिकाकर्ता राम सिंह ने भी दया याचिका खारिज होने पर संतोष जताया है।
संपत्ति के लालच में खिलाया जहर
23 अगस्त, 2001 को हिसार के प्रभुवाला गांव में पूर्व विधायक रेलूराम की बेटी सोनिया व दामाद संजीव ने संपत्ति के लालच में परिवार के आठ लोगों की जहरीला पदार्थ खिलाकर हत्या कर दी थी। इसमें रेलूराम पूनिया के अलावा उनकी पत्नी कृष्णा, बेटा सुनील, बहू शकुंतला, बेटी प्रियंका, चार साल के पोते लोकेश, ढाई साल की पोती शिवानी और डेढ़ महीने की प्रीति शामिल है। 31 मई, 2004 को सेशन जज की अदालत ने फांसी की सजा सुनाई थी। 2 अप्रैल, 2005 को हाई कोर्ट ने सजा को उम्रकैद में बदला। 15 फरवरी, 2007 को सुप्रीम कोर्ट ने सेशन जज की सजा बरकरार रखने का फैसला दिया। 23 अगस्त, 2007 को समीक्षा याचिका सुप्रीम कोर्ट से खारिज हुई। सेशन जज ने 26 नवंबर, 2007 को फांसी देने की तिथि मुकर्रर की। समीक्षा याचिका खारिज होने के बाद सोनिया व संजीव ने राष्ट्रपति के पास दया के लिए याचिका लगाई। सोनिया-संजीव का एक बेटा भी है जो उत्तर प्रदेश के सहारनपुर में अपने दादा-दादी के पास है।
जेल से भागने की कोशिश की थी
जेल में बंद संजीव-सोनिया ने पूर्व में पाकिस्तानी जासूस व कुछ अन्य कैदियों के साथ सुरंग खोद कर भागने की कोशिश की थी। उनकी इस कोशिश में पाकिस्तान के साहिवाल के मसूद अख्तर, पश्चिम बंगाल के आनंद पिंटो व राजन गौड़ सहित कुछ अन्य कैदी भी शामिल थे। अंबाला के बलदेव नगर थाने में यह मुकदमा दर्ज किया गया था