लखनऊ, शैलेन्द्र कुमार। राजनीति के कठिन रास्तों पर चलकर जिन्होंने भी राजनीति में अपना मान और सम्मान बनाया है। उन्होंने पहले बहुत ही कठिनाईयों का सामना किया है और फिर राजनीति में सम्मान पाने के हकदार बने हैं। राजनीति का रास्ता किसी के लिए भी उतना आसान नहीं होता है जितना कि लोग समझते हैं। राजनीति में स्वयं अपनी एक पहचान बनाना और उसको कायम रखना और लगातार कदम दर कदम उस पर चलते हुए बुलंदियों को पाना बहुत ही कठिन काम होता है।
और जिसने भी जनता के दिल में अपनी छवि बनाई है, वह ऊंचाईयों को छूने में कामयाब रहा है और मिसाल कायम की है, लेकिन जिसने नहीं उसे अपने लक्ष्य में हार को सामना ही करना पड़ा है। क्योंकि राजनीति में जनता का सबसे अहम रोल है और आप को ऊंचाईयों तक ले जाती है और वही आपको जमीन पर रखती है।
सी ही मिसाल के तौर पर हमारे देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जनता के सामने पहले मुख्यमंत्री और फिर प्रधानमंत्री बनकर आये। जिन्होंने अपने संर्घषों से जनता का दिल जीता और चाय बेचने वाले की अपनी छवि से देश के प्रधानमंत्री की छवि में नजर आये। और ठीक ऐसी ही मिसाल पीएम मोदी की ही पार्टी से उत्तर प्रदेश के डिप्टी सीएम बनने जा रहे केशवप्रसाद मौर्य ने भी दी है, कि लगातार संर्घष से किसी भी ऊंचाई हो हासिल किया जा सकता है।
बता दें कि केशवप्रसाद का आरंभिक जीवन बेहद काफी संर्घषशील रहा है। उनके पिता एक साधारण किसान परिवार से थे और चाय की दुकान चलाते थे। भाईयों का भी कोई बड़ा व्यवसाय नहीं था। और किशोरावस्था तक केशव प्रसाद मौर्य चाय की दुकान पर अपने पिता का सहयोग करते थे और अखबार विके्रता का काम भी करते थे। किशोरावस्था में ही केशवप्रसाद मौर्य राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ से जुड़ गए।
संघ से जुड़ने के बाद केशव ने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा। जब केशव राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक थे तब उन्हें पारिश्रमिक के तौर पर चंद रूपये मिला करते थे। तंगहाली के बीच केशव भगवा झंडा उठाए रहे। उन्होंने विश्व हिन्दू परिषद और बजरंग दल में विभिन्न पदों पर कार्य किया।
वर्ष 2002 में भाजपा के टिकट पर पहली बार इलाहाबाद शहर पश्चिमी की सीट से विधानसभा चुनाव में भाग्य आजमाया था, लेकिन हार गए थे। 2005 में शहर पश्चिम विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में भी उन्होंने भाग्य आजमाया था। इसके बाद वर्ष 2012 में अपने पैतृक क्षेत्र सिराथू से विधानसभा का चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की। बस यहीं से उनके भाग्य का सितारा बुलंदी की ओर चला गया। विहिप के प्रमुख अशोक सिंहल के बेहद करीबी केशव प्रसाद मौर्य को भाजपा नेे 2014 में इलाहाबाद जिले की ही फूलपुर लोकसभा सीट से प्रत्याशी बनाया।
और उन्होंने तीन लाख से अधिक मतों से विजय हासिल की। भाजपा जब विधानसभा चुनाव की तैयारी करने लगी तो पिछड़ें मतों को लामबंद करने के लिए 08 अप्रैल 2016 को पार्टी ने केशवप्रसाद मौर्य को प्रदेशाध्यक्ष नियुक्त कर उन्हें बड़ी जिम्मेदारी सौंप दी, जिसे उन्होंने 2017 के विधानसभा चुनाव में पार्टी को प्रचंड बहुमत से जीत दिलाकर सही साबित कर दिया। उसका उन्हें अब उप मुख्यमंत्री का पद नवाज कर इनाम दिया गया।
केशव प्रसाद मौर्य मुख्यमंत्री नहीं बने, इससे उनके समर्थकों को जरूर मायूसी हुई लेकिन उनके पिता श्यामलाल इससे ही खुश थे कि बेटा उपमुख्यमंत्री होगा राजधानी का। यही नहीं प्रदेश के उपमुख्यमंत्री बनने जा रहे फूलपुर सांसद केशव प्रसाद मौर्य के राजनीतिक जीवन में टर्निंग प्वांइट मसीही धर्म प्रचारक पीटर यांग्रीन का विरोध करना रहा। पीटर यांग्रीन 2013 में इलाहाबाद में धर्म प्रचार के लिए आए थे।
हिंदूवादी संगठन उसके विरोध में खड़े थे। विरोध की कमान केशव ने संभाल ली। तब वह सिराथू से भाजपा विधायक थे। और इसके लिए उन्हें जेल भी भेजा गया। जहां उनसे मिलने पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह और विहिप संरक्षक अशोक सिंहल मिलने गए। और इन्हीं उतार चढ़ाव के बीच अशोक सिंहल ने वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में फूलपुर संसदीय क्षेत्र से केशव की खुलकर पैरवी की। टिकट मिलने पर वह सांसद चुने गए। फिर प्रदेश अध्यक्ष बनाए गए और अब उप मुख्यमंत्री बन रहे हैं।
केशव प्रसाद मौर्य ने जितना भी संर्घष राजनीति में रहकर किया है। उसका फल उन्हें आज उप मुख्यमंत्री के रूप में मिल रहा है। केशव प्रसाद मौर्य ने बता दिया है कि संघर्षों से कुछ भी किया जा सकता है। किसी भी मंजिल को हासिल किया जा सकता है। और उन्होंने जो भी संघर्ष और काम राजनीति में रहकर किया है। उसके इनाम के रूप में आज उन्हें उत्तर प्रदेश का उप मुख्यमंत्री बनाया जा रहा है।