लख़नऊ, दीपक ठाकुर। चीन को ना जाने क्यों अपनी ताकत का बेजा घमंड सा होने लगा है जो उसकी भारत के प्रति दिखाई देने वाली गतिविधियों से प्रतीत भी हो रहा है हालांकि हमारे प्रधानमंत्री की युद्ध ऐसी कोई मंशा नही है यही कारण रहा जो मोदी जी चीन की यात्रा भी खुले मन से बेहत स्वस्थ वातारण में कर के आ चुके है पर लगता है की चाइना भी अपने दोस्त पाकिस्तान की तरह पीठ में छुरा घोपने की ही नीयत रखता है।
अगर चीन की नीयत में कोई खोट ना होता तो वो भारत की ज़मीन पर अपने सैनिक तैनात करने की बुरी हरकत ना करता और तो और उसकी नापाक हरकत इस क़दर उतारू है जैसे वो चाहता है कि भारत पर कब्ज़ा कर लेगा और भारत चुपचाप बैठा रहेगा जो उसकी सोच है शायद यही वजह है कि बीते लगभग डेढ़ महीने में तक़रीबन 140 बार वो लद्दाख बॉडर पर अपनी सेना को भारतीय सीमा रेखा के अंदर तक दाखिल करने की कोशिश कर चुका है।
उधर भारत चीन को 1962 से वर्तमान समय मे भारत की बदली हुई स्थिति बता कर डरा रहा है तो वही चीन भारत को 1962 के युद्ध मे हुए नुकसान की याद दिलाता नज़र आ रहा है साथ ही ये भी कह रहा है कि इस बार अंजाम उससे भयानक होगा मतलब ये की भारत और चीन के बीच वाक युद्ध अपने चरम पर पहुंच चुका है जिसके सैनिक युद्ध मे परिवर्तन होने का खतरा मंडराने लगा है।चीन कहता है भारत के ऊपर निर्भर है कि वो युद्ध चाहता है या शांति और शांति से उसका तात्पर्य ये है कि वो अपनी मनमानी करता रहे और भारत खामोश रहे।
भारत वाकई अब 1962 वाला भारत नही है ये चीन को समझाने के लिए हमारे सैनिक भी आतुर हैं तभी बॉडर पर चीनी सेना के सामने डट कर खड़े हैं लेकिन चीन अभी तक 1962 मे ही जी रहा है शायद तभी हमारे धैर्य की परीक्षा ले रहा है जिस दिन बात हद से ज़्यादा गुज़री उसी दिन उसे ये अंदाज़ा भी हो जाएगा कि जिस जगह व्यापार कर के चीन जी रहा है वो जगह और वहां की सेना में उसे धूल चटाने का भी मापदा है।
तो कहना यही है चाइना से के सम्भाल लो खुद को इससे पहले की हम तुमसे संभलने का मौका भी छीन लें।