लखनऊ,दीपक ठाकुर। चैत्र नवरात्र का छठा दिन माँ कात्यायनी के नाम रहता है कहा जाता है कि जब दानव महिषसुर का अत्याचार पृथ्वी लोक में बढ़ गया था तब भगवान ब्रह्मा,विष्णु,महेश तीनो ने अपने अपने तेज का अंश दे कर महिषासुर के विनाश के लिए एक देवी को उत्पन्न किया था जिनसे महिषासुर का अंत संभव हुआ था और महर्षि कात्यायन ने सर्वप्रथम इनकी उपासना की थी जिस कारण इन्हें कात्यायनी कहा जाने लगा।
शेर की सवारी हाथों में तलवार आँखों में गुस्सा पर भक्तों के लिए प्रेम अपार यही खासियत है माँ कात्यायनी की जिनकी नवरात्र के छठे दिन पूजा अर्चना की जाती है।
इसी अवसर पर माँ पूर्वी देवी में माँ का श्रंगार हरे वस्त्रोँ से किया गया जैसे वस्त्रों का रंग वैसे ही आभूषण और मंदिर परिसर में फूलों की हुई सजावट से मन प्रफ्फुल्लित हो उठा माँ का आज का स्वरूप भले रुद्र अवतार का था पर माँ के चेहरे की मुस्कान ने सभी भक्तों को मोहित कर रखा था।
मंदिर परिसर में उपस्थित सभी महिलाएं माँ की सुन्दर सुन्दर भेंट गा कर माँ को प्रसन्न करती नज़र आई तो वही जो भेंट गा ना सकी उन्होंने तालियां बजा कर माँ के दरबार में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई।
शेर पे सवार हो के आजा शेरावाली माँ ,पर करो मेरा बेड़ा भवानी जैसे भजनों पर तो भक्त भावुक तक होते दिखाई दिए।श्रीमती मंजू शुक्ला,रेखा शुक्ला सहित कई महिला भक्तों ने आज माँ की भेंट सुनाई व आयोजन में प्रमुखता से कार्य भी किया।
लगभग 2 घण्टे चले भेंटों के समागम के बाद माता रानी की भव्य आरती हुई जिसमें प्रमोद शुक्ला सहित सभी भक्त शामिल हुए।षष्टी के दिन माँ से मनवांछित फल पाने वाले कई भक्तों ने माँ के श्रंगार में विशेष योगदान दिया।
षष्ठी के दिन जन्म लेने वाली नन्ही भक्त पंखुड़ी भी अपनी दादी माँ के साथ मंदिर माँ के दर्शन करने पहुंची जिसने अपनी मीठी आवाज़ में सिर्फ इतना कहा कि जय माता दी।
पूर्वी देवी मंदिर में स्थापित माँ की मूर्ती की खूबसूरत छठा ही ऐसी है कि कोई भी माँ के जयकारे लगाये बिना नहीं रह पाता।हर दिन की तरह आयोजन की समाप्ति पर यहाँ विशेष भोग का प्रसाद भी वितरित किया गया।एक बार आप भी बोलिये कात्यायनी माँ की जय।।