उत्तर प्रदेश में लखनऊ के सत्ता के गलियारे में लोगों की शिवपाल सिंह यादव के सेक्युलर मोर्चा के गठन के बाद समाजवादी पार्टी से दूर हुए या नाराज चल रहे उन नेताओं पर अब सबकी नजर टिक गई है. ये वो नेता हैं, जो कभी सपा के दिग्गजों में शुमार थे और जिन्हें शिवपाल का करीबी माना जाता रहा है. दरअसल सेक्युलर मोर्चा की बुधवार को जारी प्रवक्ताओं की लिस्ट में सपा से निकाले गए नेताओं को तरजीह दिए जाने के बाद इन कयासों को आधार मिल गया है. माना जा रहा है कि पार्टी से दूर हुए या नाराज शिवपाल खेमे के लोग सेक्युलर मोर्चा का रुख कर सकते हैं. वैसे खुद सेक्युलर मोर्चा से जुड़े नेता इस बात की तस्दीक कर रहे हैं कि कई नेता उनके संपर्क में हैं.
सेक्युलर मोर्चा के प्रवक्ताओं की इस लिस्ट पर गौर करें तो इनमें पूर्व विधायक शारदा प्रताप शुक्ला भी हैं. शारदा प्रताप शुक्ला 2017 के विधानसभा चुनाव में टिकट कटने के बाद सपा के विरोध में उतरे थे, जिसके बाद उन्हें पार्टी से बाहर कर दिया गया था. इनके अलावा लिस्ट में शादाब फातिमा, दीपक मिश्र, नवाब अली अकबर, सुधीर सिंह, प्रोफेसर दिलीप यादव, अभिषेक सिंह आशू, मोहम्मद फरहत रईस खान और अरविंद यादव के नाम शामिल हैं.
राजनीतिक विश्लेषकों की नजर अब सपा से दूरी बनाने वाले नेताओं पर टिक गई है. इनमें सबसे बड़ा नाम अम्बिका चौधरी का है, जो पिछले विधानसभा चुनावों में सपा छोड़ सीधे बसपा पहुंच गए. मुलायम के करीबी माने जाते रहे अम्बिका चौधरी को चुनाव हारने के बाद सपा ने विधानपरिषद की सदस्यता से भी नवाजा. अखिलेश सरकार में मंत्री भी रहे. लेकिन सपा में परिवार के झगड़े और यूपी विधानसभा चुनाव के दौरान अम्बिका चौधरी ने बसपा का दामन थाम लिया.
कुछ यही हाल मुख्तार अंसारी और उनके परिवार का भी रहा. इस परिवार को सपा में शामिल कराने के हिमायती शिवपाल सिंह यादव ही रहे. लेकिन अखिलेश ने सीधे इंकार कर दिया. पारिवारिक झगड़े में मामला बिगड़ता चला गया और आखिरकार मुख्तार अंसारी ने दोबारा बसपा का दामन थामा. इसी तरह नारद राय, ओम प्रकाश सिंह आदि नामों पर भी चर्चाओं का बाजार गर्म है.
उधर सेक्युलर मोर्चा से जुड़े नेता बताते हैं कि अभी पार्टी रजिस्ट्रेशन प्रॉसेस में है. इसमें थोड़ा समय लग रहा है. सपा से नाराज और दूरी बनाने वाले तमाम नेता पूरे प्रदेश से शिवपाल सिंह यादव के संपर्क में हैं. इसके अलावा कई नाम ऐसे भी हैं, जो प्रदेश की राजनीति को अलग ही दिशा देने में सक्षम हैं. लेकिन फिलहाल रजिस्ट्रेशन प्रॉसेस पूरा होने का इंतजार किया जा रहा है. ज्वाइनिंग आदि की प्रक्रिया इसके बाद शुरू होगी.
वैसे खुद शिवपाल के बयानों से सपा को तोड़ने की मंशा साफ जाहिर होती है. मंगलवार को एक कार्यक्रम में शिवपाल ने महाभारत का जिक्र करते हुए इशारों ही इशारों में अखिलेश यादव की तुलना कौरवों से कर दी. उन्होंने कहा कि पांडवों ने कौरवों से पांच गांव मांगा था. मैंने तो सिर्फ सम्मान मांगा था. यह एक धर्मयुद्ध है, जिसमें जीत धर्म और सत्य की होती है. ये लड़ाई समाजिक परिवर्तन और न्याय की है. असली राजनीति का मतलब सेवा भाव है.
शिवपाल यादव ने कहा, “साथ वही हैं, जिनको मैंने ज्यादा नहीं दिया. मैं आपस में नहीं लड़ना चाहता था. हमारे लोग मेरे विरोधी की मदद कर रहे थे. बहुत से लोग बेईमानी से ले गए. कुछ लोग गलत काम करना चाहते थे. जो द्वार पर आए उसे कुछ मिलना चाहिए. मैंने श्रीकृष्ण की तरह दे दिया, लेकिन वे सुदामा नहीं निकले.”