काबुल। तालिबान ने अफगानिस्तान के शहर काबुल सहित कई शहरों को अपने कब्जे में ले लिया है। तालिबानियों के डर के कारण अफगानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति अशरफ गनी देश छोड़कर यूएई भाग गए गए हैं।
अफगान संकट के बीच अशरफ गनी के भाई हशमत गनी अहमदजई ने तालिबानियों के साथ हाथ मिला लिया है और उनके साथी हो गए हैं। मीडिया रिपोर्ट की मानें तो हशमत गनी ने तालिबानी आतंकी संगठन की हर संभवव मदद भी करने का भरोसा जताया है। कुचिस की ग्रैंड काउंसिल के प्रमुख हशमत गनी अहमदजई ने तालिबान नेता खलील-उर-रहमान और धार्मिक विद्वान मुफ्ती महमूद जाकिर की उपस्थिति में तालिबान के लिए अपने समर्थन की घोषणा की। वहीं हशमत ने एक इंटरव्यू में कहा कि भारत के पास तालिबान से राजनीतिक संबंध बनाए रखने के अलावा कोई विकल्प नहीं है।
طالبان کا کہنا ہے کہ @ashrafghani کے بھائی حشمت غنی احمد زئی نے طالبان کی حمایت کا اعلان کیا ہے۔ طالبان رہنما خلیل الرحمٰن اور دینی عالم مفتی محمود ذاکری اس موقع پر موجود ہیں۔ ویڈیو مفتی ذاکری نے جاری کی ہے۔ pic.twitter.com/MmBIsRqwa4
— Tahir Khan (@taahir_khan) August 21, 2021
उन्होंने संदेश दिया कि दुनिया तालिबान को स्वीकार करे भले ही उसका समर्थन न करे। हशमत ने अफगानिस्तान के उपराष्ट्रपति ने एनडीटीवी के साथ बातचीत में हशमत गनी ने कहा कि उन्होंने अस्थिरता से बचने के लिए तालिबान को स्वीकार किया। गनी ने यह भी कहा कि तालिबान के हाथ में अफगान सरकार की बागडोर सौंपने में मदद करने के लिए उन्होंने अफगानिस्तान में रुकने का फैसला किया। उन्होंने यह भी कहा कि मैंने कभी भी तालिबान का समर्थन नहीं किया।
हश्मत गनी के तालिबान के साथ मिलने से अशरफ गनी के लिए शर्मनाक स्थिति पैदा हो गई है। वहीं इससे पहले ही अशरफ गनी चार गाड़ियों में पैसा भरकर भागने का आरोप लग चुका है। हालांकि पूर्व राष्ट्रपति अशरफ गनी ने इन आरोपों का खंडन किया था और कहा था कि वे अपने जूते तक नहीं पहन पाए थे।
उन्होंने कहा कि अफगानिस्तान से जाने के लिए मजबूर होना पड़ा। अशरफ गनी ने बुधवार को अफगानिस्तान के लोगों के लिए एक वीडियो संदेश जारी करके कहा था कि काबुल को तालिबान ने घेर लिया था और वह रक्तपात को रोकने के लिए देश छोड़कर गए।
पूर्व राष्ट्रपति गनी ने कहा कि अगर मैं वहीं रहता तो एक बार फिर अफगान के एक चुने हुए राष्ट्रपति को वहाँ की जनता की आंखों के सामने फांसी पर लटका दिया जाता। गनी पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नजीबुल्लाह के संदर्भ में ऐसा कह रहे थे। जिनके शव 27 सितंबर 1996 को काबुल में एक खंभे से लटका मिला था।