नई दिल्ली- एम्स में दस लावारिस मुर्दो का घुटना बदलकर नया घुटना प्रत्यारोपण (प्रतिस्थापन, रिप्लेसमेंट) किया गया। असल में इसका मकसद देश के उन इलाकों के डाक्टरों को इस तकनीक से अवगत कराना है, जो घुटना रिप्लेसमेंट करते तो हैं, पर अधूरे ज्ञान के कारण मरीजों का घुटना खराब हो जाता है। इसलिए देश-विदेश के 71 डाक्टरों ने मुर्दो का घुटना बदलकर जाना कि कैसे जिंदा लोगों में बिना खामियों के कृत्रिम घुटना लगा सकेंगे। ताकि वे सामान्य रूप से अपने पैरों पर चल सकें। इन डाक्टरों में पांच केन्या, जॉर्डन व नेपाल के थे।
यह पूरा ऑपरेशन एम्स अर्थोपेडिक्स विभाग के घुटना रिप्लेसमेंट सर्जन अतिरिक्त प्रोफेसर डा. सीएस यादव के निदेशन में हुआ। डाक्टरों का कहना है कि वीडियो फुटेज व व्याख्यान देकर ही घुटना रिप्लेसमेंट बताया जाता है। इसका एक कारण प्रयोग के लिए शवों का नहीं मिलना व तकनीक का आभाव है। इसलिए डाक्टर विदेश से पढ़कर आते थे। अब एम्स के पास ऐसी तकनीक है। एम्स मॉचरी से लावारिस शव भी मिल जाता है। इसका महत्व इस बात से समझा जा सकता है कि एम्स में भी इससे पहले मात्र चार बार ऐसा प्रयोग हुआ था। रविवार को पांचवीं बार मुर्दो में नया घुटना लगाया गया। डा. सीएस यादव ने बताया कि एम्स के फारेंसिक विभाग ने दस शव उपलब्ध कराए। शवों की मांसपेशियां अकड़ जाने से घुटने मुड़ते नहीं। इसलिए रिप्लेसमेंट नहीं हो पता। ये शव करीब 10-20 दिन पुराने हैं। जिसे फारेंसिक विशेषज्ञों ने केमिकल से समान्य रखा है। इन मुर्दो का घुटना निकालकर डाक्टरों ने मेटल से बना कृत्रिम घुटना लगाया। ये डाक्टर एमबीबीएस या पीजी के छात्र नहीं, बल्कि प्रैक्टिसनर डाक्टर थे। 25 प्रोफेसरों ने सर्जरी में उनकी मदद की। जिसमें दो इंग्लैंड, एक दुबई, एक नेपाल के अलावा एम्स, दिल्ली-एनसीआर, मुंबई, जयपुर, हैदराबाद, चंडीगढ़ व हरियाणा के विशेषज्ञ थे।
डा. सीएस यादव ने कहा कि दूसरे जगहों पर डाक्टर मरीजों का घुटना रिप्लेस तो करते हैं पर प्रयोग के अभाव में मरीज का घुटने में खामियां आ जाती है। डा. एस रस्तोगी ने बताया कि मुर्दो में घुटना लगाकर डाक्टरों नी (घुटना) रिप्लेसमेंट सीखा। पटना पीएमसीएच से आए डा. एके मानव ने बताया कि ऐसे प्रायोगिक अभियान में हर अर्थोपेडिक सर्जन को शामिल होना चाहिए।