उत्तर प्रदेश – बिहार, झारखंड और ओडिशा में बेरोजगारों की फौज भले ही लगातार बढ़ती जा रही हो, लेकिन सरकारें इसे लेकर कतई गंभीर नहीं हैं। ग्रामीण बेरोजगारों को रोजगार की योजना मनरेगा तक से इन सरकारों ने मुंह फेर लिया है। उत्तर प्रदेश ने तो अपने ढीले रवैये से सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं। यहां सिर्फ एक फीसद ग्रामीण परिवारों को ही मनरेगा में सौ दिन का रोजगार दिया जा सका है। राज्य की लगभग डेढ़ हजार ग्राम पंचायतों में तो एक दिन का भी काम नहीं कराया गया है। उत्तर प्रदेश सरकार के आला अफसरों के साथ केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश ने समीक्षा बैठक में प्रदेश सरकार को खरी खरी सुनाई।
केंद्र सरकार भी इन चारों राज्यों के हीलाहवाली भरे रवैए से आजिज आ गई है। बीते साल में उत्तर प्रदेश ने अपने हिस्से के निर्धारित धन का केवल तिहाई खर्च किया है। मनरेगा में उसे जहां 6790 करोड़ रुपये खर्च करने चाहिए थे, उसकी जगह उसने 2632 करोड़ रुपये व्यय किए हैं। निर्धारित लक्ष्य के मुकाबले मात्र 40 फीसद ग्रामीण बेरोजगारों को रोजगार दिया गया है। हद तो यह है कि केवल एक फीसद परिवारों को ही सालभर में सौ दिन का रोजगार दिया गया है। जयराम ने सभी प्रदेश सरकारों को चार माह का समय देकर अपना खर्च बढ़ाने की मोहलत दी है। इसमें विफल रहने पर इन राज्यों के चालू साल के बजट में कटौती होनी तय है।
उत्तर प्रदेश में और भी कई तरह की अनियमितताओं व लापरवाही का नमूना सामने आया है। राज्य की 50 हजार ग्राम पंचायतों में से लगभग डेढ़ हजार ग्राम पंचायतों में एक दिन का भी रोजगार नहीं दिया गया। यानी यहां कोई काम नहीं कराया गया। सीमांत व मझोले किसानों के खेतों पर काम कराने की छूट का कोई खास लाभ यहां के लोगों को नहीं मिल पाया है। समीक्षा बैठक में पेश आंकड़े के मुताबिक राज्य के केवल 15 फीसद ऐसे किसानों को ही यह लाभ मिल पाया है। पिछले तीन सालों में उत्तर प्रदेश में अनुशासनहीनता के चलते मनरेगा को धक्का लगा है, जिसका खामियाजा भी ग्रामीण बेरोजगारों को ही भुगतना पड़ेगा। गरीबों व पिछड़ों की पैरोकार समाजवादी पार्टी सरकार ने मनरेगा में लापरवाही के मामले में अपनी पूर्ववर्ती बसपा को भी पीछे छोड़ दिया है।