नई दिल्ली। खुद को गरीबों की हिमायती बताने वाली उत्तर प्रदेश की समाजवादी सरकार ने पिछले ढाई साल से भी कम समय में साढ़े चार सौ करोड़ रुपये से ज्यादा की रकम महज अपनी छवि बनाने के लिए विज्ञापनों पर लुटा दी। खास बात ये है कि जैसे-जैसे चुनाव का समय नजदीक आता जा रहा है अखिलेश यादव के नेतृत्व वाली ये सरकार विज्ञापनों पर होने वाले खर्च में और बढ़ोतरी करती जा रही है। मसलन 2014-15 में सरकार ने पूरे वित्तीय वर्ष में जितना पैसा सरकारी विज्ञापनों पर बहाया था, उतना इस वित्तीय वर्ष के पहले चार महीने में ही खर्च कर दिया गया। सपा सरकार में सरकारी पैसे की इस तरह शाहखर्ची के सामने उससे पूर्व की मायावती सरकार में हुआ खर्च बौना लगता है।
गौरतलब है कि यूपी में अगले साल की शुरुआत में ही विधानसभा चुनाव होने हैं। चुनावी सर्वे बताते हैं कि अखिलेश यादव सरकार के खिलाफ इस बार वैसा माहौल नहीं है जैसा की मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व वाली पिछली सपा सरकार के खिलाफ था। यही वजह है कि पार्टी और सरकार को लगता है कि वो एक बार फिर सत्ता में वापसी कर सकती है। इसके लिए जरूरी है कि जनता के बीच अपनी छवि ज्यादा से ज्यादा निखारी जाए और किए गए कार्यों का जमकर ढिंढोरा पीटा जाए। सरकार की ये मंशा अखबारों, टीवी चैनलों में आ रहे उसके विज्ञापनों में साफ झलकती है। सरकार काफी पहले से इस दिशा में काम शुरू कर चुकी है, नतीजा ये कि दो साल चार महीने में ही सरकार ने साढ़े चार सौ करोड़ रुपये के विज्ञापन दे डाले हैं।
यूपी में इस समय कई इलाकों में काफी विपरीत हालात हैं। कहीं सूखे की समस्या है तो और कहीं लोग बाढ़ के संकट से जूझ रहे हैं। बुंदेलखंड की बदहाली तो जैसे कभी न खत्म होने वाली समस्या बन चुकी है। ऐसे माहौल में सरकार का अपने काम का ढिंढोरा पीटने में इस तरह का बेतहाशा खर्च सवालों के घेरे में है। समाजवादी पार्टी की सरकार ने वित्तीय वर्ष 2014-15 में 127 करोड़ रुपये विज्ञापन में खर्च किए थे। लेकिन अगले ही साल यानी कि वित्तीय वर्ष 2015-16 में इसमें पूरे 75 करोड़ रुपये की वृद्धि कर दी गई और सरकार ने तकरीबन 200 करोड़ रुपये सरकारी विज्ञापनों पर खर्च किए। जैसे कि यही काफी नहीं था। इस वित्तीय वर्ष की शुरुआत के चार महीने में ही सरकार ने 125 करोड़, 48 लाख रुपये विज्ञापनों पर लुटाए। यानी दो साल चार महीने में सरकार 457 करोड़ 48 लाख के विज्ञापन दे चुकी है। अभी चुनाव में कुछ महीने बाकी हैं और आचार संहिता लगने से पहले अगर सौ-डेढ़ सौ करोड़ रुपये इस मद में और लुटा दिए जाएं तो कोई हैरानी नहीं होनी चाहिए।
गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने अपने पांच साल के पूरे कार्यकाल में सजावटी विज्ञापनों पर 122 करोड़ रुपये खर्च किए थे। हालांकि यह खर्च सूचना विभाग के विज्ञापन का था। लखनऊ विकास प्राधिकरण और अन्य विभागों का खर्च इसमें शामिल नहीं है। माया ने 2007 -08 में 13 करोड़ 38 लाख 66 हजार 905 रुपये, वर्ष 2008-09 में 20 करोड़ 12 लाख 46 हजार 174 रुपये, वर्ष 2009-10 में 17 करोड़ 86 लाख 52 हजार 427 रुपये, वर्ष 2010-11 में 33 करोड़ 1 लाख 17 हजार 407 रुपये और वर्ष 2011-12 में 37 करोड़ 50 लाख 825 रुपये व्यय किया गया। इस पैसे से राज्य सरकार के विकास कार्यक्रमों, योजनाओं, नीतियों और उपलब्धियों की जानकारी जनसामान्य को दी गई। ये जानकारी खुद अखिलेश सरकार ने विधानसभा में दी थी।
बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य से जब आईबीएनखबर ने इस बारे में बात की तो उन्होंने कहा कि सरकार और सपा को 2017 में इस पैसे का हिसाब देना होगा। इस मामले को लेकर हम जनता के बीच जाएंगे। राज्यपाल महोदय को भी हम इस सब से अवगत कराएंगे। मुख्यमंत्री से इसका जबाव मांगा जाएगा। बुंदेलखंड को भूलकर सरकार समाजवादी पार्टी का प्रचार करने में लगी हुई है।
इस बारे में जब समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी से बात की गई तो उनका कहना था कि सरकार अब तक विज्ञापन पर कितना खर्च कर चुकी है इस बात की मुझे कोई जानकारी नहीं है। विज्ञापन के लिए हमारे यहां एक अलग विभाग है। विज्ञापन का हिसाब-किताब सचिव स्तर के अधिकारी रखते हैं।