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Thursday, December 26, 2024

कांग्रेस में राहुल गांधी के भविष्य पर उठा सवाल 



नई दिल्ली।उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस गठबंधन की शर्मनाक हार ने गांधी परिवार की साख को नुकसान पहुंचाया है। इस पराजय ने राहुल गांधी के नेतृत्व के साथ प्रियंका गांधी को भी सवालों के घेरे में ले लिया है क्योंकि चुनाव से पहले प्रियंका के राजनीतिक कौशल की बातें की जा रही थीं। राहुल ने पंजाब प्रदेश कांग्रेस लीडरशिप से जिन कैप्टन अमरिंदर सिंह को हटाने के लिए जोर लगाया था, उन्हीं अमरिंदर ने 2013 में कर्नाटक में विजय के बाद कांग्रेस को किसी प्रदेश में पहली जीत दिलाई है।

कांग्रेस को दरअसल सिंह के साथ मणिपुर के दिग्गज नेता इबोबी सिंह और गोवा में पार्टी के कुछ सीनियर नेताओं का शुक्रगुजार होना चाहिए, जिनका राहुल के नई पीढ़ी के नेताओं के साथ प्रयोगों को लेकर टकराव रहा। गोवा और मणिपुर में त्रिशंकु विधानसभा की स्थिति बनी तो है, लेकिन दोनों जगहों पर सीटों के मामले में कांग्रेस BJP से आगे है।


अमेठी में मिली हार कांग्रेस के लिए है अलार्म 
अगर उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में BJP की जीत ने उसे 2019 के लोकसभा चुनाव के लिए बढ़त दी है, तो अपने गढ़ अमेठी तक में कांग्रेस की शर्मनाक हार ने यह सवाल उठा दिया है कि राहुल 2019 में अपनी लोकसभा सीट भी बचा पाएंगे या नहीं। UP में समाजवादी पार्टी (SP) और कांग्रेस के गठबंधन के पीछे राहुल और प्रियंका का योगदान गिनाया जा रहा था, लिहाजा सवाल भी राहुल के नेतृ्तव पर ही उठ रहे हैं कि वह भविष्य की लड़ाइयों के लिए पार्टी को तैयार कर सकते हैं या नहीं।

कांग्रेस में राहुल को झेलना पड़ सकता है विरोध
आने वाले दिनों में पार्टी के भीतर असंतोष की आवाजें उठ सकती हैं। एक कांग्रेस महासचिव ने हमारे सहयोगी अखबार इकनॉमिक टाइम्स से कहा, ‘क्या टिप्पणी की जाए? मैंने आपसे पहले ही कहा था कि हम लोग UP में अपने लिए शर्मनाक स्थिति और तबाही को दावत देने वाला प्रयोग कर रहे थे।’ सोनिया गांधी कांग्रेस अध्यक्ष हैं, लेकिन 2012 से पार्टी असल में राहुल के निर्देशन में काम कर रही है। 2012 के मुकाबले कांग्रेस शासित राज्यों की संख्या घटी ही है। कई राज्यों में पार्टी दूसरे दलों की पिछलग्गू बन गई है। बिहार में राष्ट्रीय जनता दल और जनता दल यूनाइटेड, पश्चिम बंगाल में लेफ्ट पार्टियों और तमिलनाडु में AIADMK के साथ चिपकी हुई है। पार्टी के सूत्रों का कहना है कि राहुल ने UP में जिस तरह कदम बढ़ाए, उससे दिल्ली और UP में कई कांग्रेस नेता हैरान-परेशान थे।

समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन के पक्ष में नहीं थे वरिष्ठ नेता
पहले तो राहुल ने सभी अनुभवी नेताओं को किनारे कर चुनावी रणनीति तैयार करने की जिम्मेदारी प्रशांत किशोर को दे दी, फिर उन्होंने संगठन के स्तर पर बिना किसी तैयारी के ‘किसान यात्रा’ शुरू कर दी। इसके साथ ही उन्होंने UP में शीला दीक्षित को बतौर मुख्यमंत्री उम्मीदवार पेश कर दिया था। जब राहुल को महसूस हुआ कि प्रयोग सही दिशा में नहीं जा रहा है, तो बीच में ही उन्होंने समाजवादी पार्टी से गठबंधन का निर्णय कर लिया, जबकि कांग्रेस के वरिष्ठ नेता आगाह कर रहे थे कि SP को सत्ता विरोधी रुझान से जूझना होगा। साथ ही, दोनों दलों में कटुता का पुराना इतिहास रहा है और ऐसे गठबंधन से BJP को गैर यादव OBC को एकजुट करने का खुला मैदान मिल जाएगा। प्रियंका गांधी भी इस गठबंधन में अपने भाई की मदद करने के लिए बैक रूम सपोर्टर के रूप में सक्रिय हुई थीं और इस घटनाक्रम को कांग्रेस के लोगों ने प्रमुखता से हाईलाइट किया था।

राहुल पर रहा फोकस, बाकी वरिष्ठ नेता किनारे
सोनिया गांधी ने चुनाव प्रचार किया नहीं, लिहाजा कांग्रेस का समूचा प्रचार अभियान इस तरह डिजाइन किया गया, जिसमें राहुल (अखिलेश यादव के साथ) ‘अकेले योद्धा’ के रूप में पेश किए जाएं। कुछ सूत्रों का कहना है कि इन परिस्थितियों में कई वरिष्ठ नेताओं ने पूरा जोर ही नहीं लगाया।

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