नई दिल्ली , एजेंसी। पश्चिम बंगाल के 7 निकायों में से 4 पर तृणमूल कांग्रेस की मुखिया ममता बनर्जी ने अपना परचम लहराया है, जबकि भाजपा के विस्तार में लगे अमित शाह का यहां बड़ा झटका दिया है। शाह की बहु-स्तरीय रणनीति, जिसमें नक्सलवाड़ी में यात्रा के बावजूद बंगाल ने भाजपा का राज्य के निकायों में सूपड़ा साफ कर दिया।
बीजेपी की जमीन से जुड़ने की रणनीति फेल
बंगाल दौरे के वक्त शाह आदिवासी के घर पहुंचे। 50 साल पुराने माओवादी आंदोलन के गढ़ में जनसंपर्क कार्यक्रम का हिस्सा बने, लेकिन बंगाल को शाह का साथ पसंद नहीं आया। अपनी रणनीति के तहत भाजपा ने बंगाल सरकार पर भ्रष्टाचार के मामले और कानून और व्यवस्था के मुद्दों पर जमकर हमला किया। इनमें नारद, सारदा और गुलाब घाटी जैसे घोटालों के मुद्दों को उठाया, लेकिन भाजपा की ये रणनीति भी काम नहीं आई।
ममता का वित्तीय प्रबंधन
2011 में वाम मोर्चा शासन के 34 साल बाद सत्ता में आने पर ममता को सार्वजनिक कर्ज का भारी बोझ मिला था, लेकिन फिर भी सीएम ममता बनर्जी ने वित्तीय प्रबंधन के जरिए स्थिति को बेहतर करने की लगातार कोशिश की। टीएमसी सरकार 2011 से 2016 के बीच राज्य पर बोझ को कम करने में काफी हद तक सफल हुई।
बीजेपी ने पार की हदें
ममता बनर्जी को लेकर बीजेपी के नेताओं ने कई बार शब्दों की सीमाओं को लांघा, लेकिन दीदी ने बड़ी ही शालीनता से उनके जवाब दिए। उन्होंने अपने सौम्य व्यवहार से लोगों को सोचने पर मजबूर कर दिया। अलीगढ़ में बीजेपी के यूथ विंग के नेता योगेश वार्ष्णेय ने कहा था कि जो भी ममता बनर्जी का सिर काट कर लाएगा उसे 11 लाख रुपए का इनाम दिया जाएगा। इस बयान पर ममता ने कहा कि मैं अपशब्द पर ध्यान नहीं देती। ये मेरे लिए आशीष की तरह हैं। वो जितना मुझे गालियां देंगे, उतना ही हम समृद्ध होंगे। ऐसे में ममता के लिए लोगों के दिलों मौजूद सहानुभूति और बढ़ी।
भाषाई लाभ
पश्चिम बंगाल सरकार राज्य के स्कूलों में दसवीं कक्षा तक बांग्ला भाषा की पढ़ाई अनिवार्य करने जा रही है। इनमें आईसीएसई और सीबीएसई बोर्डों से संबद्ध स्कूल भी शामिल हैं। इस फैसले के बाद अब छात्रों के लिए बांग्ला सीखना अनिवार्य होगा। वहीं दूसरी ओर बीजेपी ने सीबीएसई के स्कूलों में हिंदी अनिवार्य करने के लिए मुहिम चला रखी है। जिसका दक्षिण भारत में विरोध हो रहा है। ऐसे में भाषाई तौर बीजेपी से ज्यादा अपनापन लोगों को ममता दीदी में ही नजर आया है, और उन्होंने स्थानीय निकाय चुनावों में बीजेपी को धूल चटा दी।
बीजेपी नहीं बन पाई विकल्प
इस नगर निगम के चुनावों में बीजेपी की हार की एक बड़ी वजह ये है कि वो स्थानीय चुनावों में एक बेहतर विकल्प नहीं बन पाई। बीजेपी को सिर्फ तीन सीटों पर ही जीत हासिल हुई। जिसमें पुजाली की 16 सीटों में से 2 और एक रायगंज निकाय में एक सीट मिली। निकाय चुनाव के लिए बीजेपी ने आक्रामक प्रचार तो किया लेकिव वो एक विकल्प नहीं बन पाई।