हिसाम सिद्दीकी
लखनऊ! योगी आदित्यनाथ के सत्ता संभाले छः महीने से ज्यादा हो चुके हैं लेकिन अभी तक उनका रवैय्या संवैधानिक ओहदे पर बैठे वजीर-ए-आला जैसा न होकर हिन्दू महासभा और हिन्दू युवा वाहिनी के लीडर जैसा ही दिखता है। हर हफ्ते दो हफ्ते मे वह ऐसी कोई तकरीर कर देते हैं जो हिन्दू और मुसलमान के दरम्यान नफरत में इजाफा करने की वजह बनती है। सोलह अगस्त को लखनऊ के एक जलसे में तकरीर करते हुए उन्होने कह दिया कि अगर सडकों पर ईद की नमाज को हम नहीं रोक सकते तो पुलिस थानों में कृष्ण जनमाष्टमी के जलसों को कैसे रोक सकते हैं। उनकी इस बात से ऐसा मैसेज गया जैसे थानों में कृष्ण जन्माष्टमी का जलसा मनाए जाने की मुखालिफत मुसलमान करते हैं।
जन्माष्टमी का जलसा जिलों की पुलिस लाइन और थानों में आजादी के पहले से होते आए हैं कभी किसी मुसलमान ने उनपर एतराज नहीं किया बल्कि बढ-चढ कर उन जलसों में हिस्सा लिया। पुलिस लाइन में जन्माष्टमी के प्रोग्राम देखने शहरों के हिन्दू-मुसलमान सब न सिर्फ जाते हैं बल्कि बडी तादाद में मुसलमान भी जलसों को कामयाब बनाने नुमायां किरदार अदा करते है। उत्तर प्रदेश के गांव-गांव में कृष्ण जन्माष्टमी का जुलूस निकलता है जिसे आम जबान में ‘राम ढोल’ कहा जाता हैं। राम ढोल के जुलूसों में गांव के हिन्दू मुसलमान दोनो शामिल होते हैं और आपस में चंदा करके बच्चों में मिठाई तक तकसीम करते हैं। इसके बावजूद योगी आदित्यनाथ का यह कहना कि सडक पर ईद की नमाज नहीं रोक सकते तो थानों मे जन्माष्टमी के जलसों पर पाबदी क्यो लगाएं न सिर्फ गलत है बल्कि हिन्दुओं को मुसलमानों के खिलाफ भडकाने वाला है। उन्होने कहा कि पिछली ‘यदुवंशियों’ की सरकार ने थाने में जन्माष्टमी के जलसे करने पर पाबदी लगाई थी। समाजवादी पार्टी के लीडरान ने उनकी इस बात को सफेद झूट करार देते हुए कहा कि अगर पिछली सरकार ने ऐसी कोई पाबंदी लगाई थी तो योगी आर्डर की कापी दिखाएं ठोस सुबूत दे वर्ना गलत बयानी करने के लिए अवाम से माफी मांगे।
इसी मौके पर योगी आदित्यनाथ ने कहा कि कावडियों के जुलूस में डीजे बजाने पर पिछली सरकार ने पाबंदी लगाई थी इस बार हमने वह पांबदी हटा ली क्योंकि ‘शिवजी की यात्रा’ मे डमरू, ढोल और चिमटे नहीं बजेंगे तो और क्या बजेगा। योगी आदित्यनाथ ने डमरू, ढोल और चिमटों को डीजे से मिला दिया। डीजे बजाने पर पाबंदी पिछली सरकार ने अदालत के एक आर्डर के मुताबिक लगाई थी। बनारस में हिन्दुओं के जरिए चलाए जाने वाले एक एनजीओ सत्या फाउंडेशन ने अदालत में एक पीआईएल दाखिल करके डीजे बजाने पर पाबदी लगाने का मतालबा किया था। सत्या फाउंडेशन का कहना था कि अक्सर कांवडिये डीजे पर भोडा डांस करते हैं और द्विअर्थी (जूमानी) गाने बजा कर समाज में तनाव तो पैदा ही करते हैं भगवान शिव और कावड दोनों की तौहीन भी करते हैं। इसी पटीशन पर अदालत ने डीजे बजाने पर पाबंदी लगाई थी।
योगी के इन बयानात से बमुश्किल एक हफ्ता पहले योगी सरकार ने प्रदेश के मदरसों को एक सर्कुलर भेज कर हिदायत दी थी कि यौम ए आजादी (15 अगस्त) के मौके पर मदरसों मे तिरंगा फहराया जाए कौमी तराना (जनगण मन) और कौमी गीत (वंदे मात्रम) लाजिमी तौरपर गाया जाए। पूरे प्रोग्राम की वीडियो बनवाकर सुबूत के तौर पर सरकार को भेजा जाए सरकार के इस सर्कुलर नेें मदरसों के प्रोग्रामों से नावाकिफ बडी तादाद में हिन्दुओं के जेहनो में यह डाल दिया कि मुसलमानों के मदरसों में तो यौम ए आजादी के मौेके पर कौमी परचम (तिरंगा) तक नहीं फहराया जाता। क्योंकि मुसलमानों को तिरंगे और मुल्क से कोई मोहब्बत नहीं है। हालांकि मदरसों मे यौम ए आजादी और यौम ए जम्हूरिया (26 जनवरी) को कौमी परचम फहराने का सिलसिला बहुत पुराना है।
दूसरी तरफ योगी के वजीरों और मेम्बरान असम्बली का हाल यह है कि चंद वजीरों के अलावा न तो किसी को कौमी गीत (वंदे मात्रम) याद है न कौमी तराना (जन गण मन)! मदरसों को सर्कुलर जारी करने वाले अकलियती तरक्की की वजारत के वजीर बलदेव औलख से एक टीवी चैनल ने पूछ लिया कि क्या उन्हें वंदेमात्रम याद है अगर याद है तो सुना दें। टीवी के एंकर ने औलख से यहां तक कहा कि आप सिर्फ दो लाइनें ही सुना दीजिए तो औलख दो लाइनें भी नहीं सुना पाए क्योंकि उन्हें आता ही नहीं था। फिर मदरसों के साथ यह ढोग क्यों.