मुंबई। ‘हिम्मतवाला’ ने 1980 में साउथ की फिल्मों का हिंदी रीमेक बनाने की प्रेरणा दी थी। इस फिल्म के बाद रीमेक फिल्मों की बाढ़ सी आ गई थी और जितेंद्र, श्रीदेवी, कादर खान, शक्ति कपूर और असरानी को लगभग हर फिल्म में लिया जा रहा था।
सफल फिल्म का रीमेक बनाना आसान है। लेकिन साजिद खान के कंधों पर ज्यादा बड़ी जिम्मेदारी थी क्योंकि उन्हें फिल्म में मसाले के साथ-साथ अजय और तमन्ना को जितेंद्र और श्रीदेवी के बराबर भी पेश करना था और ये भी लाजिमी था कि उनकी फिल्म के हर पहलू पर सभी पैनी नजर रखेंगे।
सबसे बड़ा सवाल ये है कि क्या साजिद खान ‘हिम्मतवाला’ में के. राघवेंद्र राव की ‘हिम्मतवाला’(1983) के जादू को दोहरा पाए, जो खुद एक तेलगू फिल्म की रीमेक थी? मैं आपको शुरुआत में ही बता दूं कि दोनों ‘हिम्मतवाला’ लगभग एक सी भी हैं और नहीं भी। दोनों फिल्मों का आधार एक ही है। साजिद ने दो सबसे ज्यादा पॉपुलर गानों को फिल्म में रखा है वहीं फिल्म के कुछ हिस्सों में बदलाव भी किया है और कुछ घटनाएं अपनी तरफ से जोड़ी हैं। फिल्म के दोनों संस्करण में समानता है मसाला फिल्में पसंद करने वाले दर्शकों तक मनोरंजन पहुंचाना।
चलिए अब बात करते हैं नई ‘हिम्मतवाला’ की। ये सिर्फ मनोरंजन, मनोरंजन और मनोरंजन के लिए है। अंदाज से लेकर खतरनाक एक्शन सीन्स और चीख कर बोले गए भड़कीले संवादों तक, वो सबकुछ जो आप ‘हिम्मतवाला’ में देखते हैं, आपको 80 के दशक की याद दिलाता है। मां-बेटे का ड्रामा, विलेन-हीरो की झड़प, हीरोइज्म, यहां तक की अजय की एंट्री, सबकुछ 80 के दशक के अंदाज में है। तो आप पहले ही सावधान हो जाईये, ‘हिम्मतवाला’ नई बोतल में पुरानी शराब मात्र है। अगर आप फिर भी मसाला फिल्म देखना चाहते हैं और 80 के दशक के एंग्री यंग मैन को देखना चाहते हैं तो हो सकता है साजिद मनोरंजन के नाम पर जो पर्दे पर पेश करते हैं उसे देखकर आपका दम घुटने लगे।
‘हिम्मतवाला’ कहानी है एक बेटे (अजय देवगन) की जो अपने पिता (अनिल धवन) के साथ हुई नाइंसाफी का गांव के सरपंच (महेश मांजरेकर) से बदला लेने गांव आता है।
‘हिम्मतवाला’ बुरे और अच्छे के बीच की लड़ाई की वही पारंपरिक कहानी है जिसमें मसाला फिल्म की हर चीज डाली गई है। साजिद कोशिश करते हैं कि जिन्होंने पुरानी ‘हिम्मतवाला’ देखी है या जिन्होंने नहीं भी देखी है, उन्हें ढाई घंटे पैसा वसूल मनोरंजन मिले। लेकिन बदकिस्मती से आप जो पर्दे पर देखते हैं वो नीरस और एकरसता से भरा हुआ है। आप कुछ नए की उम्मीद करते हैं लेकिन ऐसा कुछ होता नहीं है। ऐसी मसाला फिल्मों से किसी को एतराज नही है, लेकिन फिल्म में कुछ ऐसा भी तो होना चाहिए जो आपको बांधे रखे। ऐसा सिर्फ फिल्म के आखिरी में होता है जब मां (जरीना वहाब) को अजय की असली पहचान पता चलती है।
जब सिनेमा में सीटियां नहीं बजती, तालियां नहीं पिटती तो आप समझ जाइये कि फिल्म के साथ कुछ तो गड़बड़ है। समस्या ये है कि साजिद ने कुछ भी नहीं किया, कुछ भी नया या अलग करने की कोशिश नहीं की। जिसकी वजह से ‘हिम्मतवाला’ फिल्म के रुप में नाकाम साबित होती है। रोमांस में आग नहीं है, ड्रामा में गहराई नहीं है, यहां तक की एक्शन भी साधारण है। ‘हिम्मतवाला’ में ऐसा कुछ भी नहीं है जिसकी वजह से आप इसे दोबारा देखें।
दो पुराने गानों के अलावा फिल्म में एक और गाना ‘बम पे लात’ है। फिल्म की शुरुआत में दिखाया गया गाना ‘थैंक गॉड इट्स फ्राइडे’ सोनाक्षी की मौजूदगी के बाद भी साधारण है। साजिद-फरहाद के डायलॉग हमेशा हिट रहे हैं और ‘हिम्मतवाला’ में भी बीच-बीच में कुछ डायलॉग्स अच्छे हैं। खासतौर से लोगों को परेश रावल के संवाद पसंद आएंगे। एक्शन साधारण है और हम हाल की कई फिल्मों में इससे बेहतर देख चुके हैं।
अजय गुजरे जमाने के हीरो के अवतार में सहज लगे हैं। अपने गंभीर किरदारों के लिए पहचाने जाने वाले अजय ने अच्छा काम किया है। वो नाचते हुए भले ही अजीब लगें लेकिन वो दुश्मनों के सामने दहाड़ते हुए अच्छे लगते हैं। तमन्ना, जिन्हें श्रीदेवी को टक्कर देनी थी वो अच्छी तो दिखती हैं लेकिन एक्टिंग में कमजोर हैं। महेश मांजरेकर अपने किरदार के मुताबिक खौफ नहीं जगा पाते। फिल्म में परेश रावल सबसे बेहतरीन हैं जिन्हें कुछ मजेदार संवाद मिले हैं। जरीना वहाब का काम भी अच्छा है खासतौर से आखिरी के दृश्यों में। अजय की बहन का किरदार निभाने वाली अभिनेत्री ने भी अच्छा काम किया है। रितेश देशमुख फिल्म में मेहमान कलाकार हैं।
ओह, मैं तो भूल ही गया, फिल्म में बाघ भी है, जो क्लाइमेक्स में असली ‘हिम्मतवाला’ साबित होता है!
कुलमिलाकर फिल्म के तौर पर ‘हिम्मतवाला’ नाकाम साबित होती है। फिल्म की खासियत सिर्फ बड़े स्टार्स और जोर-शोर से किया गया प्रचार है जो कुछ भीड़ जुटा सकता है। ‘हिम्मतवाला’ ऐसी फिल्म है, जिसने आपसे ढेर सारे मनोरंजन का वादा किया है, लेकिन आखिर में ये निराश ही करेगी।