शरद मिश्रा”शरद”
लखीमपुर खीरी:NOI- दुधवा के जंगलो को भले ही टाईगर रिजर्व की उपाधि मिल चुकी हो लेकिन यहाँ जानवर आज भी सुरछित नहीं है।
ताजे आंकड़े तो नहीं है लेकिन जिन 8 वर्षो के आंकड़े हमें मिले है वह इतना बताने के लिए काफी है की दुधवा में प्रतिवर्ष एक वनराज को शिकारियों ने अपना निशाना बनाया है हालाँकि इस दौरान पाँच बाघो की मौत और हुई लेकिन उनकी मौत का कारण हादसा बताया गया कुल मिलाकर वर्ष 2008 से 2016 तक बारह वनराज असमय काल के गाल में समा चुके है।
भारत नेपाल सीमा पर स्थित दुधवा नेशनल पार्क को 1987 में टाईगर प्रोजेक्ट में सामिल किया गया था।
1884 फिट के जंगलो को सुरछित कर दुधवा टाईगर रिजर्व का दर्जा दिया गया जिसके लिए भारी भरकम फौज सरकार ने यहाँ तैनात किया उद्देश्य साफ था की यहां बाघो का संरक्षण किया जायेगा लेकिन हकीकत इससे इतर निकली।
बताते चलें कि वर्ष 2009 में बांकेगंज नहर में संदिग्ध अवस्था में एक बाघ का शव मिला जबकि वर्ष 2010 में वन विभाग में परसपुर चौकी के पास एक बाघ का शव बरामद हुआ हालांकि उसकी मौत विधुत करेंट से बताई गयी लेकिन जिन हालात में बाघ का शव मिला वह किसी और तरफ इशारा कर रहा था।
इसी तरह वर्ष 2010 में किसुुनपुर रेंज संतगढ़ फार्म के पास एक तेंदुए का शव झाड़ियो में उलझा मिला यह बात अलग है की वर्ष 2008 से वर्ष 2017 तक आठ वनराजो की मौत के आंकड़े मिले है जिनकी मौत का कारण सड़क हादसा बताया गया है।
लगभग हर साल एक वनराज की मौत के चलते वनविभाग की घोर लापरवाही सामने आ रही है जो एक सोचनीय बिषय है जिससे वनविभाग की लापरवाही कही जाएगी और ये कहना गलत नही होगा कि वनविभाग की निष्क्रियता के चलते अपने ही घर में महफ़ूज नहीं जानवर।
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