लखनऊ, दीपक ठाकुर। उत्तर प्रदेश में मासूम बच्चों की जान अस्पतालों में सुरक्षित नही है ये बात खुद अस्पताल के आंकड़े बता रहे हैं यहां सरकारी अस्पतालों में इलाज करा रहे बच्चे ठीक हो पाएंगे या नही इसकी कोई गारंटी नही है पर हां मौत के बाद उनके कारणों पर दलील क्या देनी है इसमें हमारा सरकारी तंत्र काफी मज़बूती से अपने तथ्य रखने में लगा दिखाई दे रहा है परिस्थिति इतनी विकट है कि मुख्यमंत्री जी भी झुलाये बैठे हैं जांच करा कर अपना पल्ला झाड़ते नज़र आ रहे हैं।
अभी अगस्त में गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कालेज में बच्चो की बेतहाशा मौत हुई वजह लापरवाही की सामने आई मगर सरकार की ओर से बयान आया कि कमी विभाग की नही महीने की थी अगस्त में बच्चो के मरने का आंकड़ा ऐसा ही रहता है कमाल है सरकार का भी स्वास्थ के नाम पर वोट मांगती है मोटा पैसा भी उसे दुरुस्त करने को देती है पर सुविधा देने में फेल हो जाती है खैर अब फरुखाबाद के सरकारी अस्पताल की बात ले लीजिए पिछले एक महीने में 49 बच्चो की मौत हो गई और पिछले 48 घण्टों में लगभग 24 बच्चो की मौत की बात सामने आ रही है दोनों जगह वजह एक ही नज़र आ रही है और सरकारी बयान में भी कुछ खास फर्क नही नज़र आ रहा है।
अब सवाल ये है कि हमारी सरकार अपने वादों पर खरा उतरने में क्यों नाकाम साबित हो रही है क्यों सरकार अपनी कमी को छिपाने के लिए अजीबो गरीब तथ्यों को हवा दे रही है सरकार आखिर सरकारी अस्पतालों पर सख्ती क्यों नही कर पा रही है।सवाल तो कई है जो उन मासूमो के परिजन पूछ रहे हैं कि इलाज के बदले मौत देने का खेल कब तक चलेगा कब तक आपके फेलियोर से मां की गोद सुनी होती रहेगी कब तक उत्तर प्रदेश बच्चो की मौत को लेकर सुर्खी में बना रहेगा बताइये आखिर कब तक??