प्लने में पीएम मोदी के साथ बैठी ये महिला कोई और नहीं बल्कि जानी मानी अनुवादक गुरदीप चावला हैं। पीएम मोदी के भाषणों के पीछे ज्यादातर इन्हीं की आवाज होती है।
साल 2014 में देश के पीएम बनने के बाद से देश में निवेश लाने के लिए पीएम मोदी लगातार विदेशों के दौरे कर रहे हैं। अब सवाल ये उठता है कि आखिर विदेशी दौरों पर पीएम मोदी उस देश के नेताओं से बात कैसे करते हैं, जबकि पीएम मोदी को गुजराती, हिंदी और अंग्रेजी के अलावा और कोई भाषा नहीं आती है। जबकि पीएम मोदी का भाषण ना सिर्फ भारत बल्कि विदेशों में भी काफी लोकप्रीय है। ऐसे में जबभी पीएम मोदी हिंदी में भाषण देते हैं तो वर्ल्ड लीडर उनकी बातों को कैसे समझ पाते हैं। तस्वीर में पीएम मोदी के साथ विमान में सफर कर रही महिला कोई और नहीं बल्कि देश की जानी मानी भाषा अनुवादक गुरदीप चावला हैं। जब भी पीएम मोदी कहीं हिंदी में भाषण देते हैं तो गुरदीप परदे के पीछे बैठ उस भाषण का अंग्रेजी में लाइव अनुवाद करती हैं जिससे विदेशी मेहमानों और राजनेताओं को पीएम मोदी का भाषण समझ में आता है।
मेडिसन स्कवॉयर गार्डन में भी किया था अनुवाद
2014 में मेडिसन स्कवॉयर गार्डन के कार्यक्रम में भी थीं जहां पीएम मोदी ने करीब 18 हजार भारतीयों को संबोधित किया. गुरदीप चावला पीएम मोदी के साथ उन्हीं के विशेष विमान से वाशिंगटन गईं। वहां उन्होंने पीएम मोदी और राष्ट्रपति ओबामा के बीच बातचीत का भी ट्रांस्लेशन किया।
2010 में ओबामा के लिए किया था अनुवाद
साल 2010 में बराक ओबामा की टीम ने उन्हें राष्ट्रपति ओबामा के पहले भारत दौरे के लिए बुलाया उस वक्त पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के साथ उनकी द्वीपक्षीय मुलाकात होनी थी।
यूएम ने पीएम मोदी के भाषण का किया था अनुवाद
तीन साल पहले संयुक्त राष्ट्र में पीएम मोदी का जोरदार भाषण तो आपके जहन में होगा जब उन्होंने संयुक्त राष्ट्र के मंच से आतंकवाद पर पाकिस्तान को जमकर लताड़ा था। उस दौरान आपको पीएम मोदी बोलते हुए सुनाई दे रहे थे लेकिन दुनिया जिसकी आवाज सुन रही थी वो थीं, गुरदीप चावला। जी हां, गुरदीप चावला पीएम मोदी के भाषण का अंग्रेजी में अनुवाद कर रही थीं और दुनिया गुरदीप चावला के माध्यम से पीएम मोदी का भाषण सुन रही थी।
देश की जानी मानी अनुवादक हैं गुरदीप
दरअसल गुरदीप चावला 27 साल से भाषा अनुवादक हैं। उन्होंने 1990 में उनका चयन संसद में भाषा अनुवादक के तौर पर हुआ था। वहां उन्होंने 1996 तक काम किया. इसके बाद उन्होंने नौकरी छोड़ दी क्योंकि उनके पति की अमेरिका में नौकरी लग गई और उन्हें अमेरिका जाना पड़ा। गुरदीप याद करते हुए कहती हैं कि अनुवादक के तौर पर उनकी जो ट्रेनिंग संसद में हुई, वो किसी भी प्रोफेशनल स्कूल में सिखाई नहीं जा सकती।
काम के वक्त करना पड़ता है 100 फीसदी फोकस
गुरदीप चावला करती हैं कि भाषा अनुवादक के सामने सबसे बड़ा चैलेंज ये होता है कि उसे वर्ल्ड लीडर के भाषण पर 100 फीसदी फोकस करना पड़ता है और फिर उसी परिपेक्ष और अंदाज और टोन में रूपांतरित करना पड़ता है. उन्होंने कहा कि यहां कोई लाइफलाइन नहीं होती है।