लखनऊ,न्यूज़ वन इंडिया-दीपक ठाकुर। स्कूल शिक्षा का वो मंदिर होता है जहाँ हम अपने बच्चों को काबिलियत का पाठ पढ़ाने भेजते है,हम अपने बच्चों को अच्छी से अच्छी शिक्षा कैसे दी जाए इसके लिए उनके जन्म से ही सोचते है और तब तक उसमे लगे रहते हैं जब तक हमारा बच्चा स्कूल जाने लायक नही हो जाता।
फिर बात आती है उसके दाखिले की जिसमे हम ऐसे स्कूल पर भरोसा करना पसंद करते हैं जो हमसे ये कहता है कि वो हमारे बच्चे को अपना बच्चा समझ कर अपने स्कूल में शिक्षा देंगे बच्चा जब तक स्कूल में रहेगा वो हमारी निगरानी में रहेगा और स्कूल के समय तक सारी ज़िम्मेवारी हमारी होगी।
ये बात समझाने के लिए निजी स्कूल काफी ताम झाम भी करते है मसलन बड़ी बड़ी होल्डिंग और अन्य विज्ञापनो के द्वारा ये साबित करने में कोई कोर कसर नही छोड़ते के उनका स्कूल ही आपके बच्चे के लिए बेस्ट है ज़ाहिर है अपने खर्च की अदायगी भी बच्चो के अभिभावकों से ही होती है लेकिन फिर भी अभिभावक बच्चो को उस स्कूल में डाल देता है ये सोचकर कि चलो उनके बच्चे को बेहतर शैक्षिक ज्ञान तो मिलेगा साथ ही वहां उसका मन भी लगा रहेगा क्योंकि ये स्कूल का वादा था।
मगर स्कूल में हो रही हालिया घटनाओं ने इस बात पर प्रश्नचिन्ह लगा दिया है कि क्या वाकई निजी स्कूल अपने बच्चों को बहेतर शिक्षा बिना किसी बर्डन के दे पा रहे हैं? तो यहां उन घटनाओं को देखते हुए मेरा जवाब है कि नही निजी स्कूल सिर्फ ढकोसले बाज़ी में वक्त ज़ाया करते है ना के बच्चों के सुनहरे भविष्य को बनाने में क्योंकि अगर ऐसा होता तो स्कूल में छुट्टी कैसे हो इसके लिए बच्चा ही बच्चे का दुश्मन ना बनता।
आपका हमारा बच्चा भी पड़ता है निजी स्कूल में तो क्या हमने आपने कभी ये गौर किया है कि स्कूल एडमिशन लेते वक्त क्या बोलता था और उसके बाद क्या कर रहा है? आपने अपने बच्चों की किताबें और बस्ते का बोझ कभी ठीक से महसूस किया है कि कैसे इतना बोझ इस नन्हे कंधों पर टिका रहेगा और कैसे उसके दिमाग मे इतने टेढ़े सवालों के जवाब आएंगे?
यकीन मानिये इन निजी स्कूलों ने शिक्षा को एक व्यापार बना डाला है और हमारे बच्चों को अपना हथियार वो बच्चो से उनकी क्षमता से अधिक काम लेते है जिसका नतीजा वही होता है जो गुरुग्राम के रेयान स्कूल में हुआ और लखनऊ के ब्राइट लैंड स्कूल में।एक दहशत सी भर दी जाती है इन स्कूलों में काम को लेकर और सज़ा भी ऐसी के बच्चे शर्मिंदगी से जान तक दे डालते है।
यहां सतर्क रहने की ज़रूरत हर अभिभावक को कई बार ये कहा गया है कि दिखावे में ना आये लेकिन देखा देखी और बाहरी चमक धमक आंखों को ऐसा अंधा कर देती है कि सबकुछ जानते हुए भी अनजान बनकर हम अपना भविष्य उनको दे बैठते है जो व्यापार करने में लगा है ना के आपका भविष्य संवारने में इसलिए करिये वही जो आपको सही लगे और सुगमता से मिले खुद को परेशान करने वाला काम परेशानी के सिवा कुछ भी नही देता।शायद आप हमारे कहने का मतलब समझ गए हो अगर समझें हैं तो सोचियेगा ज़रूर क्योंकि यहां लुटेरों का कुछ नही लुट रहा लुट तो वो रहा है जो सब कुछ गंवा कर सुंदर भविष्य की आशा कर रहा था।