आज हिन्दी साहित्य के प्रमुख साहित्यकारों में से एक सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ की जयंती है. उन्हें हिंदी के छायावादी युग का महाकवि माना जाता है और उनका जन्म पश्चिम बंगाल के मेदिनीपुर जिले में 1896 में हुआ था. उन्होंने हाई स्कूल तक हिन्दी संस्कृत और बांग्ला का स्वतंत्र अध्ययन किया था. उनकी प्रमुख कृतियों में परिमल, अर्चना, सांध्य काकली, अपरा, गीतिका, आराधना, दो शरण, रागविराग, गीत गुंज, अणिमा, कुकुरमुत्ता शामिल है.
उन्होंने अपने जीवन में काव्य, उपन्यास, निबंध, पुराण कथा, अनुवाद आदि की रचना की है. वे जयशंकर प्रसाद, सुमित्रानंदन पंत और महादेवी वर्मा के साथ हिन्दी साहित्य में छायावाद के प्रमुख स्तंभ माने जाते हैं. उन्होंने कहानियां, उपन्यास और निबंध भी लिखे हैं, लेकिन उनकी ख्याति विशेषरुप से कविता के कारण है. साल 1918 से 1922 तक महिषादल राज्य की सेवा की और उसके बाद संपादन स्वतंत्र लेखन और अनुवाद कार्य किया.
इसके बाद उन्होंने कई पत्रिकाओं में काम किया और अपने निधन तक ही उन्होंने लिखना जारी रखा. उन्होंने दलित-शोषित किसान के साथ हमदर्दी का संस्कार अपने अबोध मन से ही अर्जित किया. 15 अक्तूबर 1961 को इलाहाबाद में उनका निधन हुआ.
उनकी प्रमुख कृतियां-
काव्यसंग्रह- जूही की कली, अनामिका (1923), परिमल (1930), गीतिका (1936), द्वितीय अनामिका (1938), तुलसीदास (1938), कुकुरमुत्ता (1942), अणिमा (1943), बेला (1946), नये पत्ते (1946), अर्चना(1950), आराधना 91953), गीत कुंज (1954), सांध्यकाकली, अपरा, बादल राग.
उपन्यास- अप्सरा, अलका, प्रभावती (1946), निरुपमा, कुल्ली भाट, बिल्लेसुर बकरिहा.
कहानी संग्रह- लिली, चतुरी चमार, सुकुल की बीवी (1941), सखी, देवी.
निबंध- रवीन्द्र कविता कानन, प्रबंध पद्म, प्रबंध प्रतिमा, चाबुक, चयन, संग्रह.
पुराण कथा- महाभारत.
अनुवाद- आनंद मठ, विष वृक्ष, कृष्णकांत का वसीयतनामा, कपालकुंडला, दुर्गेश नन्दिनी, राज सिंह, राजरानी, देवी चौधरानी, युगलांगुल्य, चन्द्रशेखर, रजनी, श्री रामकृष्ण वचनामृत, भारत में विवेकानंद और राजयोग का बांग्ला से हिन्दी में अनुवाद.